26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर देश ने लोकतंत्र की सबसे अहम किताब भारत के संविधान को सलाम किया. संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित मुख्य समारोह में एक साझा संदेश था कि संविधान भारत की लोकतांत्रिक विरासत और नागरिक अधिकारों की नींव है लेकिन यह दिन भी सियासी टकराव से अछूता नहीं रहा.
कार्यक्रम के मंच से दूर, विपक्ष ने सरकार पर तीखा वार किया. कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने RSS का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि "मनुस्मृति मानने वाले लोग मजबूरी में आज संविधान की बात कर रहे हैं." खड़गे ने आगे कहा कि आजादी की लड़ाई में जिनकी विचारधारा अनुपस्थित रही, वे आज संविधान पर भाषण दे रहे हैं.
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सरकार ने इस बयान को गैर-ज़िम्मेदाराना बताया. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि संविधान का सम्मान शब्दों में नहीं, आचरण में दिखता है और हर संस्था व प्रक्रिया की गरिमा बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है.
विवाद केवल संसद तक सीमित नहीं रहा. मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर भी विपक्ष हमलावर दिखा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने BLOs पर दबाव, जल्दबाजी और मौतों का मुद्दा उठाया, जबकि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए. विपक्ष का आरोप है कि संस्थानों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ रहा है.
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इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों के नाम पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने 2015 से संविधान दिवस की शुरुआत, संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के कार्यक्रम और लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया. अयोध्या में राम मंदिर पर ध्वजारोहण के दौरान भी उन्होंने भारत को "लोकतंत्र की जननी" बताया और सभ्यतागत जागरण पर जोर दिया.
दिलचस्प यह भी है कि भारत के संविधान की मूल प्रति में राम दरबार की चित्रकारी मौजूद है, एक ऐसा तथ्य जिसने राजनीतिक विमर्श को और गहरा किया. आखिर सवाल वही, क्या संविधान राजनीतिक हथियार बन रहा है, या लोकतंत्र की सेहत पर वास्तविक चिंता जताई जा रही है?