INDIA गठबंधन के कुछ दलों ने मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर राहुल गांधी के आरोपों पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार की प्रतिक्रिया पर असंतोष जताया है. इन दलों के कुछ नेताओं ने कहा है कि राहुल गांधी से इस्तीफा मांगने वाले बयान और आरोपों के बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाने की संसदीय प्रक्रिया पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है. इस चर्चा ने स्वाभाविक रूप से राजनीतिक गरमी को और बढ़ा दी है.
भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्णय के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त या अन्य आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया वैसी ही है जैसी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए अपनाई जाती है. इसे महाभियोग (Impeachment) नहीं कहा जाता, बल्कि हटाने का प्रस्ताव कहा जाता है.
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यह प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन - लोकसभा या राज्यसभा - से शुरू किया जा सकता है. लोकसभा के 100 सदस्य या राज्यसभा के 50 सदस्य हस्ताक्षरित शिकायत के साथ हटाने का प्रस्ताव ला सकते हैं.
जांच समिति का गठन
पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचारी के मुताबिक, जब सदन में ऐसा प्रस्ताव आता है तो उस सदन के अध्यक्ष (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) तीन सदस्यीय समिति बनाते हैं. इस समिति की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के एक जज करते हैं, इसमें किसी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक नामी वकील को भी शामिल किया जाता है.
यह समिति आरोपों की जांच करती है और फिर अपनी रिपोर्ट सदन के सामने रखती है. सदन इस रिपोर्ट पर चर्चा करता है और आवश्यकता पड़ने पर आरोपी अधिकारी को भी तलब कर सकता है. अधिकारी को अपनी बात रखने का पूरा अवसर दिया जाता है.
प्रस्ताव पारित करने का गणित
सीईसी को हटाने का प्रस्ताव केवल साधारण बहुमत से पारित नहीं होता, बल्कि इसके लिए दोनों ही सदनों में दो स्तर पर बहुमत जरूरी होती है.
संविधान में क्या प्रावधान है?
संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने का स्पष्ट प्रावधान किया गया है. इसमें कहा गया है कि उन्हें केवल उसी प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है, जैसे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है. इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण शर्त है कि पूरी प्रक्रिया एक ही सत्र में पूरी होनी चाहिए.