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मर्दों ने उड़ाई खिल्‍ली तो औरतों ने खोद डाला कुआं

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने कभी अपनी चर्चित कविता 'वह तोड़ती पत्‍थर' में ऐसी स्‍त्री का चित्रण किया था जो भरी दोपहरी में इलाहाबाद के पथ पर हथौड़े से पत्‍थर तोड़ रही होती है. निराला की वह नायिका इन दिनों मध्य प्रदेश के खालवा में है. लेकिन यहां हथौड़े की हर चोट से ना सिर्फ पत्थर बल्कि पुरुषों का अभिमान भी चूर-चूर हो रहा है.

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कुएं की खुदाई करती महिलाएं
कुएं की खुदाई करती महिलाएं

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने कभी अपनी चर्चित कविता 'वह तोड़ती पत्‍थर' में ऐसी स्‍त्री का चित्रण किया था जो भरी दोपहरी में इलाहाबाद के पथ पर हथौड़े से पत्‍थर तोड़ रही होती है. निराला की वह नायिका इन दिनों इलाहाबाद से चलकर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल खालवा में पहुंच गई है. लेकिन समय के साथ थोड़ा फर्क भी आया है, क्‍योंकि यहां हथौड़े की हर चोट से न सिर्फ पत्थर बल्कि पुरुषों का अभिमान भी चूर-चूर हो रहा है.

'कुआं खोदना महिलाओं के बस की बात नहीं है.' संभव है इस वाक्‍य से हम में से कई लोग सहमत हों, लेकिन खंडवा जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र खालवा के ग्राम लंगोटी में महिलाओं के मिजाज देखकर आपको अपनी धारणा बदलनी ही पड़ेगी. जी हां, बीते कई दिनों से पानी की समस्या से परेशान लंगोटी की 20 महिलाओं ने हर ओर से मदद की आस खत्‍म होने पर खुद ही इलाके में 25 फिट गहरा कुआं खोद डाला है.

ढाई किलोमीटर दूर से लाना पड़ता था पानी
यूं तो करीब दो हजार की आबादी वाले इस गांव में पानी के तीन-चार स्रोत हैं, लेकिन जरूरत के आधार पर वो नाकाफी हैं. खासतौर पर बड़े मोहल्ला में समस्या कुछ ज्यादा ही गहरी थी. हैंडपम्‍प सूख चुके हैं लिहाजा यहां की महिलाओं को लगभग ढाई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था. महिलाओं ने अपनी इस परेशानी की हर स्तर पर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. यहां तक कि घर के पुरुषों ने भी इस मामले में उनका साथ नहीं दिया.

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हिम्‍मत, एकता और मेहनत
बताया जाता है कि जब महिलाओं ने हर ओर से मदद की आस खत्‍म होते पाया तो मिलकर कुआं खोदने की ठानी. हालांकि गांव वालों ने इस बात को लेकर उनकी खूब हंसी उड़ाई कि यह औरतों के बस की बात नहीं है. लेकिन पक्के इरादों वाली 20 महिलाओं ने अपने दम पर चट्टानों के बीच 25 फिट के करीब खुदाई कर डाली और धरती का सीना चीर पानी निकाल दिखाया.

गांव की मिश्रीबाई कहती हैं, 'गांव में पानी की समस्या को देखते हुए हम 20 महिलाओं ने समूह बनाकर कुआं खोदा. इसके लिए गांव की ही एक महिला ने अपने बाड़े में हमें जमीन दी. गांव की पंचायत ने हमारी कोई सुनवाई नहीं की और पुरुषों ने तो हमारी हंसी उड़ाई.'

पुरुषों का दम्‍भ टूटा
महिलाओं के साहस से मिली सफलता से गांव में पुरुषों का दम्भ भी टूटा है. अब वे ना सिर्फ उनके प्रयास की तारीफ कर रहे हैं बल्कि अब उनके अभियान का हिस्सा बनना चाहते हैं. लेकिन अब महिलाएं उन्‍हें शामिल नहीं करना चाहती हैं. खास बात यह भी है कि ये सभी महिलाएं आदिवासी समाज से हैं जो अनपढ़ हैं, लेकिन अनुभव से वे अपने रास्ते निकालना सीख गई हैं. कुआं खोदने वाली महिलाओं में 20 साल से लेकर 70 साल तक की महिलाएं शामिल हैं.

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'बढ़ा है महिलाओं का आत्‍मविश्‍वास'
इस मुहिम में महिलाओं का साथ देने वाले एनजीओ 'स्‍पंदन' की प्रमुख सीमा प्रकाश कहती हैं, 'जब तक पानी नहीं आया था तब तक जरूर थोड़ी निराशा थी, लेकिन अब महिलाओं का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि वे हर चुनौती का सामना कर सकती हैं.

कुंए को पक्‍का बनाने में कौन करेगा खर्च?
गांव के निवासी रमेश गुहारे के मुताबिक महिलाओं ने शुरुआत में पुरुषों से सहयोग का आग्रह किया था लेकिन तब उन्होंने सवाल किया कि हमें क्या मिलेगा? वे बिना मजदूरी के काम करने को तैयार नहीं थे. एनजीओ ने 3 किलो चावल प्रति महिला प्रति दिन देने का सहयोग किया, जिसके बाद महिलाएं काम को राजी हुईं. लेकिन अब कुंए को पक्‍का करना है, इसमें बहुत खर्च होगा लेकिन खर्च कौन करेगा इसको लेकर सवाल है?

इश्‍तेहारों में सिमट कर रह गए मंत्रीजी
महिलाओं के साझा श्रम से मिली यह सफलता अब लोगों को भी प्रेरित कर रही है. लेकिन पंचायत से लेकर शासन और प्रशासन की बेरुखी पहले की तरह ही है. हैरानी की बात यह है कि प्रदेश शासन के प्रभावशाली मंत्री विजय शाह यहां सबसे ज्यादा विकास का दावा करते रहे हैं. जाहिर है प्रदेश शासन की महिला सशक्तिकरण की योजनाएं यहां सिर्फ इश्तहारों तक सीमित है.

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हालांकि गांव के पंचायत सचिव आसिफ खान कहा कहना है कि शासन को गांव की सारी स्थितियों से अवगत करा दिया गया था, ऐसे में जो निर्देश होंगे वैसा ही काम किया जाएगा.

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