अमेरिका ने भारतीय चमड़ा उत्पादों पर आयात शुल्क को 60% तक बढ़ा दिया है जो चीन पर लगाए गए शुल्क से दोगुना और पाकिस्तान (19%) व बांग्लादेश (20%) से कहीं ज्यादा है. इस फैसले ने कानपुर की चमड़ा इंडस्ट्री को गहरे संकट में डाल दिया है, जहां हर साल 2000 करोड़ रुपये का चमड़ा निर्यात अमेरिका को होता है. कारोबारी डर जता रहे हैं कि इस बढ़ोतरी से उनका पूरा निर्यात ठप हो सकता है.
अमेरिकी खरीदार पीछे हट रहे
कानपुर के चमड़ा निर्यातक और फैक्ट्री मालिक जफर इकबाल ने बताया कि नए टैरिफ की वजह से शिपमेंट रुक गए हैं क्योंकि अमेरिकी खरीदार ऑर्डर से पीछे हट रहे हैं. उन्होंने बताया कि मई में जब टैरिफ 10% था, तब हमने आधा खर्च उठाकर ऑर्डर बचाए. लेकिन अब इतना भारी शुल्क कोई नहीं झेल सकता. हमारे पांच कंटेनर तैयार हैं लेकिन अब क्या करें, समझ नहीं आ रहा.
इंडस्ट्री पर दोहरी मार
निर्यातक नैयर जमाल ने बताया कि नमामि गंगे जैसे पर्यावरण नियमों की वजह से इंडस्ट्री पहले ही मुश्किलों से जूझ रही थी. अब टैरिफ की यह मार और भारी पड़ रही है. फिर भी उन्होंने सरकार के रुख का समर्थन किया और कहा कि अमेरिका के दबाव के सामने नहीं झुकना चाहिए.
10 लाख नौकरियों पर खतरा
चमड़ा कारोबारी जावेद इकबाल ने चेतावनी दी कि यह टैरिफ वृद्धि कानपुर और पड़ोसी उन्नाव में करीब 10 लाख लोगों की नौकरियों को खतरे में डाल सकती है. पाकिस्तान, चीन, वियतनाम और कंबोडिया पर कम टैरिफ की वजह से अमेरिकी खरीदार अब वहां का रुख कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम सरकार के साथ हैं, भले ही इसके लिए हमें भारी नुकसान उठाना पड़े.
त्योहारी ऑर्डर के बावजूद उत्पादन ठप
चमड़ा एक्सेसरीज की निर्यातक प्रेरणा वर्मा ने बताया कि नई नीति को लेकर असमंजस की स्थिति है, जिससे उत्पादन लगभग रुक गया है. हाल के वर्षों में मांग पहले ही 60% तक कम हो चुकी है और कुछ यूनिट्स को मजदूरों की छंटनी करनी पड़ी है. काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (सेंट्रल रीजन) के चेयरमैन असद इराकी ने बताया कि क्रिसमस के ऑर्डर मिले हैं, लेकिन अमेरिकी बाजार के लिए उत्पादन रुक गया है.
उन्होंने दो-तीन दिन पहले दिल्ली में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की थी, जहां 25% टैरिफ की स्थिति में ब्याज सब्सिडी जैसे राहत उपायों पर चर्चा हुई थी. लेकिन अब 50% टैरिफ के साथ ये उपाय नाकाफी हैं. इराकी ने कहा कि खरीदार और विक्रेता 5-10% अतिरिक्त लागत को संभाल सकते हैं, लेकिन इतनी भारी बढ़ोतरी किसी के बस की नहीं.