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मोहन मरकाम की जगह दीपक बैज को छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान, पढ़ें Inside Story

पार्टी और सरकार के बीच समन्वय की कमी दिखाई देने लगी थी, क्योंकि मरकाम ने रवि घोष के स्थान पर अपने करीबी अरुण सिसौदिया को इकाई में ले आए. सूत्रों के अनुसार ये एक ऐसा कदम जिसका मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता विरोध कर रहे थे.

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छत्तीसगढ़ में मोहन मरकाम की जगह दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है
छत्तीसगढ़ में मोहन मरकाम की जगह दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे ही सूबे में सियासी उठापटक शुरू हो गई है. दरअसल, छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेम सिंह टेकाम ने  कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा के बीच उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. प्रेमसाय सिंह टेकाम की जगह  मोहन मरकाम को शिक्षामंत्री बनाया जा सकता है. बताया जा रहा है कि मरकाम आज सुबह 11.30 बजे मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. 
 
वहीं, टेकाम ने कहा कि किसी को कैबिनेट में रखना या किसी को हटाना मुख्यमंत्री का विवेक है, मुझे बताया गया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ( AICC) ने निर्देश दिया है कि मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस्तीफे की उचित प्रक्रिया का उन्होंने पालन किया. दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस नेता मोहन मरकाम को एक दिन पहले ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था. 

दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री पद पर प्रमोट करने के कुछ दिनों बाद आदिवासी चेहरे मोहन मरकाम की जगह एक अन्य आदिवासी नेता और बस्तर सांसद दीपक बैज को लाने के फैसले से सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं. सूत्रों के अनुसार मोहन मरकाम को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की संभावना है. वह आज सुबह 11:30 बजे राजभवन में शपथ लेंगे. हालांकि आजतक इंडिया ने मार्च में ही इस फेरबदल के बारे में खुलासा कर दिया था.

पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम का कार्यकाल एक साल से अधिक समय पहले समाप्त हो गया था, लेकिन वह अभी भी प्रदेश में पार्टी संगठन का नेतृत्व कर रहे थे, हालांकि मोहन मरकाम और सीएम भूपेश बघेल के बीच मतभेद के बीज अगस्त 2021 में ही पड़ गए थे, जब दिल्ली में सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच 2.5-2.5 साल के सीएम फॉर्मूले की बात सामने आई थी.

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बघेल और मरकाम के बीच कब शुरू हुई अदावत?

नाम न छापने की शर्त पर एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि सीएम भूपेश बघेल ने मौखिक रूप से तत्कालीन पीसीसी प्रमुख मोहन मरकाम से टीएस सिंह देव के खिलाफ सीएम के शक्ति प्रदर्शन के लिए कुछ विधायकों को दिल्ली भेजने के लिए कहा था. हालांकि कुछ विधायक दिल्ली भी गए. लेकिन इस मामले को तूल पकड़ने से रोकने के लिए तत्कालीन छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पुनिया ने मोहन मरकाम को फोन किया और उनसे आधिकारिक बयान देने को कहा कि छत्तीसगढ़ के किसी भी विधायक को राजनीतिक परेड के लिए एआईसीसी में आमंत्रित नहीं किया गया है. मरकाम ने ईमानदारी से निर्देशों का पालन किया, जिससे उनके और बघेल के बीच खटास पड़ गई. बाद में मरकाम को गद्दी से हटाने के लिए कई प्रयास किए गए.

मरकाम ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ खोला मोर्चा

ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां अंदरूनी कलह जनता के सामने आई. मार्च में बजट सत्र के दौरान, मरकाम ने राज्य के कोंडागांव जिले में जिला खनिज फाउंडेशन के तहत स्वीकृत कामों में पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया और जांच की मांग की. मरकाम द्वारा मुद्दा उठाए जाने के बाद राज्य के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रवींद्र चौबे ने आश्वासन दिया कि मामले की राज्य स्तरीय अधिकारी से जांच कराई जाएगी.

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कुमारी शैलजा ने पलट दिए थे फैसले

इतना ही नहीं, हाल ही में मरकाम द्वारा लिए गए कुछ संगठनात्मक फैसलों को मौजूदा प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने पलट दिया था. पार्टी और सरकार के बीच समन्वय की कमी दिखाई देने लगी थी, क्योंकि मरकाम ने रवि घोष के स्थान पर अपने करीबी अरुण सिसौदिया को इकाई में ले आए. सूत्रों के अनुसार ये एक ऐसा कदम जिसका मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता विरोध कर रहे थे.

जब पोस्टर से 'गायब' हो गए थे मरकाम

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रकाश चंद्र होता ने कहा कि बड़ी आपत्ति रायपुर जिले के प्रभारी के रूप में पूर्व महासचिव (संगठन) अमरजीत चावला की नियुक्ति थी. जबकि मरकाम खेमे ने इसे एक समझौता फार्मूले के रूप में बताया था. इस कदम का विरोध करने वाले लोग चाहते थे कि चावला को किसी भी प्रमुख संगठनात्मक जिम्मेदारी से हटा दिया जाए. इसके अलावा एक और घटना सामने आई, जब रायपुर में आयोजित 85वें पूर्ण सत्र से पहले स्वागत समिति के प्रमुख होने के बावजूद मोहन मरकाम की तस्वीरें पोस्टर और होर्डिंग्स से गायब थीं. रातभर की कवायद के बाद उनका चेहरा बैनरों पर लगाया गया. ये एक तरह का डैमेज कंट्रोल था. 

कौन हैं नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज?

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दीपक बैज की छवि एक तटस्थ नेता की है. इतना ही नहीं, कोई भी खेमा उनका समर्थन नहीं कर रहा है. 2000 के दशक के मध्य में कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई से अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले बैज ने 2019 में पीएम मोदी के पक्ष में मजबूत लहर के बीच बस्तर संसदीय सीट से जीत हासिल की थी. उनकी पदोन्नति आगामी चुनावों में कितना असर दिखाती है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

 

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