भारत द्वारा पाकिस्तान में किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद देशभर में युद्ध की खबरें सुर्खियों में हैं. घरों में चल रहे टीवी चैनलों पर बम धमाकों की आवाजें, मौत की खबरें और पाकिस्तान की प्रतिक्रियाएं हर वक्त यही फ्लैश हो रहा है. इस सबके बीच ऐसे लोग जो पहले से एंजायटी या पैनिक अटैक से जूझ रहे हैं, उनके लिए ये खबरें पैनिक अटैक की वजह बन सकती हैं. यही नहीं, मॉक ड्रिल और बंकर में रहकर जान बचाने वाली खबरें सामान्य वयस्कों में भी वार एंजायटी के लक्षण दे रही हैं. आइए जानते हैं कि War Anxiety क्या होती है और इससे बचने का क्या उपाय होता है. अगर आप भी ऐसे लक्षण महसूस कर रहे हैं तो एक्सपर्ट की ये सलाह जरूर मानें.
क्या होती है वार एंजाइटी
हावर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार War Anxiety जिसे कभी-कभी न्यूक्लियर एंजायटी भी कहा जाता है. ये एक आम मानसिक प्रतिक्रिया है जो हमें युद्ध या संघर्ष से जुड़ी खबरों और तस्वीरों को देखकर होती है. यूक्रेन युद्ध की खबरें जो दो साल लंबी महामारी के बाद आई थीं, इन खबरों ने लोगों को बहुत प्रभावित किया. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि हम पहले से ही थकान, चिंता और कंट्रोल की कमी जैसी मानसिक स्थिति से गुजर रहे थे.
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की एक पोल में 80% लोगों ने माना कि रूस-यूक्रेन युद्ध की खबरों ने उन्हें गहरा मानसिक तनाव दिया है. सामूहिक हिंसा से जुड़ी चिंता का लंबे समय में क्या असर होता है, इस पर वैज्ञानिक अब भी शोध कर रहे हैं. फिनलैंड में हुई एक स्टडी में पाया गया कि जो किशोर न्यूक्लियर वार को लेकर चिंतित थे, उनमें पांच साल बाद आम मानसिक रोगों (जैसे एंजायटी और डिप्रेशन) का खतरा अधिक था.
मीडिया कवरेज ज्यादा खोजते हैं एंजायटी पीड़ित लोग
रिसर्च में पाया कि जो लोग पहले से एंज़ायटी के शिकार होते हैं. वे ऐसे संकटों की मीडिया कवरेज को ज्यादा खोजते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति और बिगड़ सकती है. ये एक चिंता और जानकारी की लत का दुष्चक्र बन जाता है यानी जितना ज्यादा देखो, उतनी ज्यादा घबराहट. मनोचिकित्सकों के अनुसार जो लोग पहले से ही एंग्जायटी या पैनिक अटैक से जूझ रहे हैं, उनके लिए ऐसी खबरें ट्रिगर का काम करती हैं. हर घंटे फ्लैश होती युद्ध की खबरें, धमाकों की आवाजें और संभावित हमलों की आशंका उनके मानसिक स्वास्थ्य को और भी कमजोर बना रही हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
IHBAS दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश बताते हैं कि लगातार नकारात्मक खबरें देखने से मस्तिष्क में स्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जिससे नींद में कमी, चिड़चिड़ापन और पैनिक अटैक जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वहीं, बच्चों के लिए युद्ध की खबरें और धमाकों की आवाजें बेहद भयावह होती हैं. वे इन घटनाओं को समझ नहीं पाते और कई बार उनके मन में डर बैठ जाता है. इससे उन्हें नींद में डरावने सपने आना, बिस्तर गीला करना और सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि बच्चों के लिए यह जरूरी है कि उन्हें सुरक्षित माहौल मिले. माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ समय बिताएं, उन्हें समझाएं और उनके डर को दूर करने की कोशिश करें. डॉ सत्यकांत कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि युद्ध और संघर्ष की खबरें बच्चों और वयस्कों दोनों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं.
एक स्टडी के अनुसार युद्धग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में PTSD (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) के लक्षण पाए गए हैं जिसमें डर, चिंता और सामाजिक गतिविधियों से दूरी शामिल है. यूक्रेन में युद्ध के दौरान, बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तीन गुना बढ़ गई हैं जिसमें अवसाद, चिंता और नींद की समस्याएं प्रमुख हैं. ऐसे में आज जब भारत में युद्ध की तैयारियों को लेकर वार से पहले की तैयारी जैसे मॉक ड्रिल की खबरें, सोशल मीडिया में तैरतीं बम धमाकों वाली रील्स मेंटल हेल्थ पर गहरा असर डाल सकती हैं. इसलिए जो लोग पहले से ही एंजायटी से जूझ रहे हैं, ऐसे लोगों के लिए एक्सपर्ट कई सुझाव दे रहे हैं. इन सुझावों को गंभीरता से सभी को फॉलो करना चाहिए.
मानिए ये जरूरी सुझाव
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अनिल शेखावत सलाह देते हैं कि आप ऐसे माहौल में मीडिया की खपत सीमित करें.दिनभर समाचार देखने से बचें और केवल विश्वसनीय स्रोतों से ही जानकारी प्राप्त करें. इसके अलावा सकारात्मक गतिविधियों में शामिल हों. आपको योग, ध्यान और परिवार के साथ समय बिताने से भी मेंटल हेल्थ सही रखने में मदद मिलेगी. सबसे जरूरी है कि हम अपने बच्चों के साथ संवाद करें. उन्हें समझाएं कि वे सुरक्षित हैं और उन्हें डरने की जरूरत नहीं है. अगर फिर भी चिंता या घबराहट की समस्या बढ़ रही है तो मनोचिकित्सक से सलाह लें.