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तेजस्वी यादव के कैंपेन का शेड्यूल तैयार, लेकिन नहीं हो पा रहा ऐलान... क्या सीट शेयरिंग का पेच वजह?

बिहार में वोटर अधिकार यात्रा संपन्न हुए 10 दिन हो गए हैं. तेजस्वी यादव के कैंपेन का आगे का शेड्यूल भी तैयार है, लेकिन इसका ऐलान नहीं हो रहा है. क्या इसके पीछे सीट शेयरिंग का पेच है?

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तेजस्वी यादव के 13 जिलों के दौरे का प्लान तैयार (File Photo: PTI)
तेजस्वी यादव के 13 जिलों के दौरे का प्लान तैयार (File Photo: PTI)

बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंशन रिवीजन यानी SIR कराया. एसआईआर के विरोध में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली. लगा ऐसा कि महागठबंधन चुनावी मोड में आ चुका है, लेकिन इस यात्रा को संपन्न हुए 10 दिन गुजर चुके हैं और तेजस्वी यादव बिहार में कैंपेन का अपना अगला शेड्यूल तक जारी नहीं कर पाए हैं. महागठबंधन में सीट शेयरिंग का सवाल भी जस का तस बना हुआ है.

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक तेजस्वी यादव 15 सितंबर से बिहार के उन जिलों के दौरे पर निकलने की तैयारी में हैं, जहां वोटर अधिकार यात्रा नहीं पहुंची थी. वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव और राहुल गांधी बिहार के 25 जिलों का दौरा कर चुके हैं, इसके अलावा बिहार के 13 जिले ऐसे हैं, जहां तेजस्वी यादव चुनाव की घोषणा होने से पहले पहुंचना चाहते हैं. तेजस्वी के इस दौरे को लेकर पार्टी ने तैयारी भी कर रखी हैं, लेकिन अब तक शेड्यूल जारी नहीं होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या तेजस्वी 13 जिलों के दौरे से पहले महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर फंसा पेच सुलझा लेना चाहते हैं या शेड्यूल का ऐलान नहीं किए जाने के पीछे कोई और वजह है? दरअसल, महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर कोऑर्डिनेशन कमेटी की कई बैठकें हो चुकी हैं लेकिन किसी फॉर्मूले पर सहमति नहीं बन सकी है. बंद कमरे में हर दल के अपने-अपने दावे आ रहे हैं, लेकिन फॉर्मूला नहीं. 6 सितंबर को तेजस्वी यादव ने कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी.

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इसके बाद VIP नेता मुकेश सहनी ने 15 सितंबर तक सीट शेयरिंग पर ऐलान और डिप्टी सीएम की उम्मीदवारी की घोषणा की डेडलाइन तय कर दी. इस बैठक के बाद 9 सितंबर को दिल्ली में कांग्रेस नेताओं की अलग से बैठक हुई. बिहार कांग्रेस के नेताओं ने मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ घंटों मंथन किया. इस बैठक के बाद बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने सीट शेयरिंग को लेकर किसी डेडलाइन के अंदर घोषणा की बात को खारिज कर दिया.

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बिहार कांग्रेस के प्रभारी ने कहा कि कांग्रेस भी जल्द से जल्द सीट शेयरिंग चाहती है, लेकिन इसे किसी डेडलाइन में बांधना ठीक नहीं होगा. उधर तेजस्वी यादव भी लगातार यही कह रहे हैं कि सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत चल रही है और जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता, तब तक मीडिया के सामने इससे जुड़ी जानकारी नहीं दी जा सकती. कांग्रेस ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.

जाहिर है, कांग्रेस इससे कम सीटों पर मानने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि, महागठबंधन में नए दलों की एंट्री की वजह से आरजेडी और कांग्रेस, दोनों को कुछ सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है. बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू खुद कह चुके हैं कि पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे दलों के महागठबंधन में शामिल होने के बाद सबको एडजस्ट करना होगा.

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साल 2020 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की VIP ने एनडीए से चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं, लिहाजा उन्हें भी सीटें देनी होंगी. लेफ्ट के दलों को भी उनके मजबूत इलाकों में सीटें देनी तय हैं, इसमें भाकपा माले सबसे अहम दावेदार होगी.

2020 की गलती नहीं दोहराना चाहते तेजस्वी

महागठबंधन की तरफ से सीएम कैंडिडेट के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा भले ही आधिकारिक तौर पर नहीं हो पाई हो, लेकिन यह बात सभी दल मानते हैं कि अगर महागठबंधन जीता, तो सीएम वही बनेंगे. सीट शेयरिंग पर सहमति बने बगैर कांग्रेस सीएम कैंडिडेट को लेकर तेजस्वी के नाम पर सहमति देगी, इसकी उम्मीद भी ना के बराबर है. वहीं तेजस्वी यादव 2020 के विधानसभा चुनाव में की गई गलती को नहीं दोहराना चाहते. तेजस्वी यादव हर सहयोगी दल को उसकी जमीनी ताकत के हिसाब से ही सीटें देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.

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वहीं, कांग्रेस भी पुरानी गलतियों से सीख लेकर नई शर्तों के साथ एडजस्टमेंट चाहती है. 2020 के चुनाव में महागठबंधन 15 सीटें और 11150 वोट के अंतर से तेजस्वी यादव की अगुवाई में सरकार बनाने से चूक गया था. 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस के खराब प्रदर्शन पर ही महागठबंधन की हार का ठीकरा फोड़ा गया. आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं ने भी खुलकर कहा था कि कांग्रेस ने क्षमता से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसका खराब प्रदर्शन ही सत्ता में आते-आते चूक जाने का कारण बना.

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कांग्रेस का भी अपना है तर्क

कांग्रेस का इसे लेकर अपना तर्क है. बिहार कांग्रेस के प्रभारी इस बार खुले तौर पर कह रहे हैं कि एनडीए जिन सीटों पर मजबूत है, वहां केवल कांग्रेस ही नहीं लड़ेगी बल्कि अन्य सहयोगी दलों को भी उम्मीदवार उतारना होगा. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि 2020 में उन्हें ऐसी सीटें दी गई थीं, जहां एनडीए की स्थिति बेहद मजबूत थी. इस बार कांग्रेस सीट शेयरिंग की मेज पर एनडीए के स्ट्रॉन्ग होल्ड में हर दल से उम्मीदवार उतारने की शर्त के साथ बातचीत कर रही है. महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान इस बात का संकेत बताई जा रही है कि अंतिम तस्वीर साफ होने में अभी और वक्त लग सकता है.

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कांग्रेस महागठबंधन में नए सहयोगियों के आने के कारण कुछ सीटों पर समझौता करने के लिए तैयार है, लेकिन उसका फोकस इस बात पर भी है कि किसी भी हाल में सीटों की संख्या 60 से नीचे न जाए. महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर आधिकारिक रुप से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन जिस संभावित फॉर्मूले की चर्चा है उसके मुताबिक आरजेडी 130 से 135 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. सूत्रों की मानें तो आरजेडी 130 से 135, कांग्रेस 52 से 56, मुकेश सहनी की वीआईपी को 18 से 20 और लेफ्ट पार्टियों को 30 से 35 सीटें मिल सकती हैं.

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