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OBC के बाद अब ब्राह्मणों पर बीजेपी की नजर, वाजपेयी-मुखर्जी-उपाध्याय के सहारे साधने का प्लान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को लखनऊ में राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का लोकार्पण करेंगे. इस प्रेरणा केंद्र में जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा लगी है. माना जा रहा है कि इन तीनों ब्राह्मण चेहरों के बहाने बीजेपी ब्राह्मण समाज को सियासी संदेश देने की कवायद में है.

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राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन (Photo-PTI)
राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन (Photo-PTI)

उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव भले ही 14 महीने दूर हो, लेकिन सियासी बिसात अभी से बिछाई जाने लगी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बिगड़े राजनीतिक समीकरण को बीजेपी दुरुस्त करने में जुट गई है. केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ओबीसी समाज को दोबारा साधने का दांव चल चुकी है. अब पार्टी की नजर अपने कोर वोटबैंक ब्राह्मण समुदाय को मजबूती से जोड़े रखने की है.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर पीएम मोदी लखनऊ बने राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का लोकार्पण करेंगे. इस प्रेरणा स्थल में जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की विशाल प्रतिमाएं लगाई गई हैं, जिनकी ऊंचाई 63 मीटर है.  

लखनऊ के 65 एकड़ में बने राष्ट्र प्रेरणा स्थल में लगी प्रतिमा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की है. तीनों नेता देश की राजनीति के बड़े ब्राह्मण चेहरे रहे हैं और बीजेपी उन्हें अपना आदर्श मानती है. ऐसे में जनसंघ के इन तीनों नेताओ के बहाने ब्राह्मण समाज को सियासी संदेश देने की कवायद मानी जा रही है.

लखनऊ से अटलजी का गहरा नाता

जनसंघ से लेकर बीजेपी तक के संस्थापक रहे अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ कर्मभूमि रही है. 1954 में लोकसभा के लिए एक उपचुनाव में जनसंघ उम्मीदवार के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार लखनऊ चुनाव मैदान में उतरे थे. हालांकि, वो पहली बार 1991 में पहली बार सांसद बने थे, जिसके बाद से लगातार 2004 तक पांच बार सांसद चुने गए. लखनऊ से सांसद रहते हुए देश के प्रधानमंत्री बने. लखनऊ के लोग अटल बिहारी वाजपेयी को प्रेम से अटलजी कहा करते थे.

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जनसंघ के तीन ब्राह्मण नेताओं के समर्पित

लखनऊ से और लखनऊ के लोगों का अटलजी से गहरा जुड़ाव रहा है, जिसके चलते बीजेपी की यूपी में सरकार बनी तो उनके नाम से समर्पित स्मारक बनाने की योजना बनी. इसी के तहत लखनऊ में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों की स्मृति में एक बड़ा पार्क बनाया गाया, जिसे राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का नाम दिया गया है.

यह भी पढ़ें: 7 बार सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री और बड़ा ओबीसी चेहरा... जानिए यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष बनने जा रहे पंकज चौधरी के बारे में

भारत रत्न पू्र्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति को अमिट बनाने के लिए 65 एकड़ में पार्ट और उनकी विशाल प्रतिमा लगाई गई है. बीजेपी का जन्म जनसंघ से हुआ है. ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी के संग जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की भी प्रतिमा लगाई गई हैं, जिसका अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे.

ब्राह्मण वोटों को साधने का बड़ा दांव

माना जा रहा है कि लखनऊ का यह राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल 2027 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ब्राह्मण वोटबैंक को साधने में मददगार साबित हो सकता है. मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान लखनऊ में जिस तरह से दलित समाज को साधने के लिए डा. अंबेडकर और कांशीराम के नाम पर पार्क बनवाया है, उसी तर्ज पर सपा ने राम मनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र पार्क का निर्माण कराया.

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बीजेपी ने जनसंघ के संस्थापक तीन सदस्यों की विशाल मूर्ती स्थापित करके राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल के रूप में एक बड़ी राजनीतिक लकीर खींचने की कवायद की है. डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी ब्राह्मण समाज के बड़े चेहरे रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के अपने कोर वोटबैंक ब्राह्मण समुदाय को भी सियासी संदेश देने के लिए स्टैटेजी मानी जा रही है.

ओबीसी के बाद ब्राह्मण वोटों पर नजर

2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को बड़ा झटका लग चुका चुकी है. 2019 में 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 में 33 सीटों पर सिमट गई. इसके चलते नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सहयोगी दलों की बैसाखी का सहारे सरकार बनानी पड़ा. उत्तर प्रदेश में बीजेपी को खासकर कुर्मी समुदाय समेत पिछड़ा वर्ग के वोट छिटक जाने के चलते नुकसान उठाना पड़ा था. यही वजह है कि बीजेपी 2027 के पहले अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी है.

यह भी पढ़ें: लखनऊ में बीजेपी ब्राह्मण विधायकों की बैठक की इनसाइड स्टोरी क्या? देखें

बीजेपी ने पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कुर्मी और ओबीसी वोटबैंक को साधने का दांव चल चुकी है. जनसंघ के तीन संस्थापक ब्राह्मण नेताओं के जरिए ब्राह्मण समाज को साधे रखने में लग गई है. लखनऊ में दो दिन पहले ही बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक हुई है. बैठक के दौरान जाति आधारित राजनीति में ब्राह्मण समाज की भूमिका और प्रतिनिधित्व पर चर्चा हुई.

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ब्राह्मण विधायकों की बैठक के मायने

इंडिया टुडे के मुताबिक बीजेपी विधायक की बैठक ब्राह्मण राजनीति के लोकर हुई है. यह भावना भी सामने आई कि सत्ता और संगठन के स्तर पर ब्राह्मणों की राजनीतिक आवाज धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है. ऐसे समय में जब पार्टी के भीतर विभिन्न जातीय समूह अपनी एकजुटता और संवाद के जरिए शक्ति संतुलन साधने की कोशिश करते दिख रहे हैं, ब्राह्मण विधायकों की यह बैठक एक राजनीतिक संकेत के तौर पर देखी जा रही है.

ब्राह्मण विधायकों की बैठक को सिर्फ संयोग नहीं माना जा रहा. खासकर तब, जब यह कुर्मी प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के तुरंत बाद हुई हो. एक तरफ बीजेपी ओबीसी आधार को मजबूत करने की कोशिश में है, दूसरी तरफ ऊंची जातियों के भीतर भी यह भावना है कि उनकी अनदेखी न हो. ठाकुरों की ‘कुटुंब परिवार’ बैठक और अब ब्राह्मण विधायकों का जमावड़ा अलग ही किस्सा बंया कर रहा है. ऐसे में 2027 का चुनाव नजदीक आते ही BJP के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि कि वह अपने कोर वोटबैंक को जोड़े रखने की.

ब्राह्मण बीजेपी के लिए कितने अहम

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सियासत में ब्राह्मण वोटर काफी अहम माना जाता है, जो नब्बे के दशक से पार्टी से जुड़ा हुआ है. ऐसे में सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथों में है, जो छत्रिय समुदाय से हैं. सूबे में बीजेपी संगठन की कमान ओबीसी को सौंप दी गई है. ऐसे में ब्राह्मण समाज से बृजेश पाठक जरूर डिप्टीसीएम हैं, लेकिन सत्ता और संगठन दोनों के शीर्ष पर कोई ब्राह्मण नहीं है. यही वजह है कि ब्राह्मण समुदाय कशमकश में है, जिसे बीजेपी साधने की कवायद में जुट गई है.

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यूपी की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता करीब 9 फीसदी माने जाते हैं. सूबे की 90 से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मण वोटर निर्णायक हैं. यूपी के 12 जिले ऐसे हैं, जहां ब्राह्मण आबादी 15 फीसदी से अधिक है, जिनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और प्रयागराज प्रमुख हैं.

CSDS लोकनीति के अनुसार 2022 विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों का 89 फीसदी वोट BJP को मिला, जबकि समाजवादी पार्टी को 6 फीसदी और कांग्रेस को 1 फीसदी समर्थन मिला. 2017 में भी बीजेपी को 83 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे, जो इस वर्ग के मजबूत समर्थन को दर्शाता है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि बीजेपी के लिए यह वोट बैंक हर कीमत पर जरूरी है. यही वजह है कि बीजेपी अभी से ब्राह्मणों को साधे रखने में जुट गई है.

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