बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में सियासी हलचल बढ़ गई है. प्रशांत किशोर की जन सुराज, आरसीपी सिंह की आप सबकी आवाज, शिवदीप लांडे की हिंद सेना और आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी जैसे नए दल सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन के सीधे मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की कोशिश में हैं. वहीं, अब राजनीतिक दलों के एक से दूसरे गठबंधन में जाने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख पशुपति पारस ने एनडीए से नाता तोड़ने का आधिकारिक ऐलान कर दिया है.
आंबेडकर जयंती के मौके पर आरएलजेपी के कार्यक्रम में पशुपति पारस ने ऐलान किया कि हमारी पार्टी का अब एनडीए से कोई नाता नहीं है. उन्होंने भविष्य की राह को लेकर पत्ते नहीं खोले, लेकिन माना जा रहा है कि वह विपक्षी महागठबंधन के साथ जा सकते हैं. पशुपति पारस रमजान के दौरान बिहार में महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के इफ्तार में भी शामिल हुए थे. अब चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि पशुपति पारस के पाला बदल से बिहार की सियासत पर कितना फर्क पड़ेगा?
आरएलजेपी की ताकत कितनी
बिहार विधानसभा से लेकर देश की संसद तक, पशुपति पारस की पार्टी की मौजूदगी ना के बराबर है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव तक पशुपति पारस खुद भी केंद्र में मंत्री थे. उनकी पार्टी चुनाव में छह सीटों के लिए दावेदारी भी कर रही थी लेकिन मिलीं शून्य. चिराग पासवान की पार्टी के एनडीए में वापस लौट आने के बाद पशुपति पूरी तरह से हाशिए पर चले गए.
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लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने खुद ये दावा किया था कि बिहार चुनाव में हमें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी लेकिन चुनावी साल में एनडीए छोड़ने का ऐलान कर गए. संख्याबल के लिहाज से देखें तो पशुपति की पार्टी का लोकसभा और राज्यसभा में एक भी सदस्य नहीं है. बिहार विधानसभा में भी पार्टी का प्रतिनिधित्व शून्य है. हां, विधान परिषद में आरएलजेपी का एक सदस्य जरूर है. 2022 के एमएलसी चुनाव में जेडीयू-बीजेपी ने आरएलजेपी के लिए एक सीट छोड़ी थी.
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चुनाव में दिखेगा पशुपति इफेक्ट?
बिहार चुनाव में पशुपति क्या महागठबंधन के लिए 'पारस' साबित होंगे? इस पर वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि रामविलास पासवान से अलग वह अपनी पहचान नहीं बना पाए. केंद्रीय मंत्री रहते उनके पास अपने आपको बड़े दलित नेता के रूप में स्थापित करने का मौका था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके. पशुपति की सियासत का आधार भी रामविलास पासवान का नाम है. बिहार के समाज में किसी व्यक्ति की विरासत का असली वारिस उसके पुत्र को माना जाता है, भाई को नहीं. यह बात भी पशुपति के खिलाफ जाती है. बीजेपी ने उन्हें दरकिनार कर चिराग को तरजीह दी तो उसके पीछे भी यही वजह थी. पशुपति अगर महागठबंधन के साथ जाते हैं तो करीबी मुकाबले वाली सीटों पर जरूर असर डाल सकते हैं.
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लोकसभा चुनाव में लिखी गई अलगाव की स्क्रिप्ट
पशुपति पारस ने एनडीए से अलग होने का ऐलान भले ही अब किया हो, इसकी स्क्रिप्ट तो लोकसभा चुनाव में ही लिख दी गई थी. बिहार की 40 सीटों के लिए सीट शेयरिंग में उनकी पार्टी खाली हाथ रह गई थी. पशुपति को उस हाजीपुर सीट से भी हाथ धोना पड़ा, जिस सीट से वह सांसद थे. सीट शेयरिंग का ऐलान होने के बाद अगले ही दिन पशुपति पारस ने मोदी मंत्रिमंडल 2.0 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.