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सोने के मुकुट से साटन की पगड़ी तक... बिहार में चर्चा का केंद्र बनी 'मिथिला पाग' की कहानी

बिहार में चुनाव के दौरान मिथिला पाग सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में चर्चा में है। पीएम मोदी ने समस्तीपुर रैली में पाग पहनकर इस परंपरा को सम्मानित किया. मिथिला पाग सिर पर पहना जाने वाला वस्त्र है जो सम्मान, गरिमा और पहचान का प्रतीक है.

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बीते दिनों बिहार के समस्तीपुर में रैली के दौरान पीएम मोदी भी मिथिला पाग पहने नजर आए थे, पाग में सामने की ओर मधुबनी पेंटिंग शैली में मछली बनी नजर आ रही हैं
बीते दिनों बिहार के समस्तीपुर में रैली के दौरान पीएम मोदी भी मिथिला पाग पहने नजर आए थे, पाग में सामने की ओर मधुबनी पेंटिंग शैली में मछली बनी नजर आ रही हैं

बिहार में चुनाव का माहौल बना हुआ है, नामांकन हो चुके हैं और चुनाव प्रचार का दौर चल रहा है. अच्छा, बिहार चुनाव की एक खास बात ये है कि इस दौरान लोक-कला और संस्कृति भी कहीं न कहीं चर्चा में आ ही जाती है. जैसे हाल के ही घटनाक्रम को देखें तो चुनाव प्रचार के दौरान 'मिथिला पाग' काफी चर्चा में है. पीएम मोदी ने भी समस्तीपुर की रैली में पाग पहने मंच पर नजर आए. पहले के भी विधानसभा चुनाव में पाग चर्चा में रहा है.

बीते दिनों पाग विवाद को लेकर चर्चा में थीं मैथिली ठाकुर
मिथिला पाग को लेकर एनडीए उम्मीदवार मैथिली ठाकुर से जुड़ा विवाद भी काफी चर्चा में रहा. तो कुल मिलाकर ये है कि बिहार में पाग और खासकर मिथिला में 'मिथिला पाग' सिर्फ शिरोवस्त्र या सिर पर पहने जाने वाला कपड़े का टुकड़ा नहीं है. ये उससे कुछ अधिक है जो कहीं न कहीं सभ्यता और संस्कृति के इतिहास को अपने साथ लेकर पहनावे के तौर पर मशहूर है.  

मैथिली में पाग वही है जो पंजाबी में ‘पग’ और हिंदी में ‘पगड़ी’ है. अंग्रेज़ी में इसके लिए 'turban' शब्द है. सिख संप्रदाय में यही पाग या पगड़ी थोड़ी और बड़ी और विस्तारित होकर दस्तार बन जाती है और धार्मिक प्रतीक भी. 

सोने के मुकुट से साटन की पगड़ी तक
पाग के लिए कई पर्याय हैं. प्राचीनता के लिहाज से देखें तो पहले देवताओं के सिर पर मुकुट हुआ करता था. फिर समय ऐसा आया कि धरती पर राजा भी ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाने लगा, लिहाजा उसके भी सिर पर मुकुट शोभा देता था. राजमुकुटों की बनावट भी कहानियों से विस्तार पाते हुए कई तरह के आकार-आकृतियों और यहां धातुओं में बदलती रही. सोने के मुकुट से चांदी के मुकुट और फिर अष्टधातु जैसी मिश्र धातु के मुकुट बनने लगे.  राजवंशों का दौर खत्म होने तक मुकुट रंगीन पगड़ियों में बदल चुके थे, जिसमें सोने के ब्रौच, मोतियों की लड़ी और कुछ कीमती पत्थरों की सजावट हुआ करती थी. 

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Maithili Thakur Paag
NDA उम्मीदवार मैथिली ठाकुर भी कई मौकों पर पाग पहने नजर आती हैं, इस तस्वीर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी पाग पहना हुआ है.

मुकुट, टोप, सिर का वस्त्र, हेडवियर, टोपी से लेकर हेलमेट तक ये सारे शब्द एक ही बिरादरी के हैं. इन सबका रूप और निर्माण हर संस्कृति और मौके के अनुसार अलग-अलग हुआ. वस्त्र सामान्यतः व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद से जुड़ा होता है, परंतु सिर पर पहना जाने वाला वस्त्र (हेडगियर) केवल फैशन नहीं बल्कि एक जरूरत भी रही और समय के साथ मर्यादा का प्रतीक भी बनी.

शिष्टाचार और सम्मान की भावना से जुड़ा है पाग
पगड़ी या पाग पहनने के भी अपने शिष्टाचार और नियम होते हैं. यह न केवल सिर की रक्षा करती है बल्कि केशों को सुसज्जित और संयमित भी रखती है. मिथिला अंचल में जहां महिलाएं सिर पर पल्लू और चेहरे को घूंघट के पीछे रखती हैं तो वहीं, पुरुषों के लिए भी ढंका हुआ सिर अनिवार्य है. ढंका हुआ सिर उनके सज्जन, सम्मानित और मान वाले व्यक्तित्व का परिचय है. इसलिए यह सहज ही इज्जत के साथ जुड़ जाता है. 

मिथिला की पाग खासतौर पर तीन रंगों में मिलती है, लाल, पीला (सरसों) और सफेद.

लाल पाग- वर यानी दूल्हे के द्वारा पहनी जाती है, इसे उपनयन संस्कार के मौके पर भी पहनाया जाता है. 

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पीली पाग- विवाह समारोह में शामिल होने वाले लोगों द्वारा पहनी जाती है.

सफेद पाग- बुजुर्ग या सम्मानित लोग पहनते हैं, और ये उनकी रोज की जीवनशैली में शामिल होती है.

मिथिला का मिथिलाक पाग
मिथिला क्षेत्र, जो उत्तरी बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में फैला है, इसमें पाग एक पारंपरिक सिरपोश है, जो गरिमा, सम्मान और पहचान का प्रतीक माना गया है. सदियों से पहनी जाने वाली यह पाग कभी पत्तों से बनाई जाती थी, लेकिन समय के साथ इसका रूप बदलता गया और अब यह कपड़े, जैसे सूती, रेशमी या साटन से तैयार की जाती है. इसे विशेष अवसरों पर पहना जाता है. दिखने में भले ही यह सादगीपूर्ण हो, लेकिन इसके रंगों का अपना अर्थ और महत्व है.

पाग के रंगों के क्या हैं मायने
लाल रंग शुभता का प्रतीक है, इसलिए इसे दूल्हों के लिए चुना गया है. पीला रंग एकजुटता और खुशी का प्रतीक है, इसलिए इसे विवाह समारोह के अतिथियों और त्योहारों के लिए चुना गया है. सफेद रंग ज्ञान और विवेक का प्रतीक है.

मिथिला के पाग की खासियत
मिथिला पाग की खास बात है कि ये आज भी हाथ से बनते हैं. इसके बेस को मजबूती देने के लिए कागज और दफ्ती का ढांचा तैयार किया जाता है. इस काम में बारीक और पतले प्लाई काम में लाए जाते हैं. इस सांचे पर सफेद या लाल रंग के कागज चिपकाकर उसे पाग का पहला रूप दिया जाता है. इसके बाद ढांचे पर जरूरत के अनुसार कपड़ा चढ़ाकर और उन्हें चुन्नट डालकर सजाते हुए पाग का पूरा आकार तैयार किया जाता है. अब इस पर महीन कपड़े की परतें चढ़ाई जाती हैं.

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पाग की खूबसूरती
ये एक साधारण पाग को तैयार करने की पूरी प्रक्रिया है. इस पाग और खास बनाने के लिए इसे मिथिला पेंटिंग से सजाया जाता है. इसके अलावा खास मौकों या खास मेहमान के लिए मखमली पाग भी बनाई जाती है. सुनहरे साटन, जरी, मोती लड़ी और कलगी से भी इसे सजाकर और खूबसूरत बनाया जाता है. 

Mithila Paag

कारीगरों को कितना और कैसा फायदा
एक पाग को बनाने में 45 मिनट से लेकर और सजावट तक में दो घंटे लग जाते हैं. यानी इसकी निर्माण प्रक्रिया धीमी है लिहाजा कारीगरों को इसका मेहनताना नहीं मिल पाता है. एक साधारण पाग की कीमत 50-60 रुपये तक होती है. सजावटी पाग 70 से 90 रुपये की, मिथिला पेंटिंग पाग भी 80-90 रुपये में और मखमली पाग, लरी-जरी वाली पाग अधिकतम 120, 150 या 200 तक पहुंच पाती है. (कीमतें स्थानीय निवासियों से पूछताछ के आधार पर हैं) ये कीमतें तय नहीं हैं, बल्कि इसमें मोलभाव के बाद ही आखिरी कीमत देय होती है. यानी जैसा ग्राहक वैसी कीमत. इसलिए चुनावी दौर में चर्चा का केंद्र बनने के बाद भी पाग बनाने वाले कारीगरों को कोई बड़ा फायदा होता नहीं दिखता है. 

पाग के सम्मान में जारी किया गया डाक टिकट
हाल के वर्षों में ‘पाग बचाओ अभियान’ जैसे प्रयासों ने इस सांस्कृतिक प्रतीक को फिर से जीवित करने की दिशा में काम किया है. जन-जागरण और रैलियों के माध्यम से इस परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है. साल 2017 में इंडिया पोस्ट ने मिथिला पाग पर एक स्मारक डाक टिकट जारी कर इसकी विरासत को सम्मान दिया था. आज डिजाइनर पाग को आधुनिक रूप में पुनर्परिभाषित कर रहे हैं, जिससे यह हल्की, सरल, लेकिन परंपरा में गहराई से रची-बसी एक धरोहर के रूप में हमारे सामने है. यह अब भी विवाह, त्योहारों और सांस्कृतिक आयोजनों में दिखाई देती है. एक फैशन नहीं, बल्कि अतीत और वर्तमान को जोड़ने वाली एक जीवंत डोर के रूप में.
 

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