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मिथिलांचल

मिथिलांचल

मिथिलांचल

भारत के पूर्वी भाग में स्थित मिथिलांचल (Mithilanchal) केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और बौद्धिक विरासत का प्रतीक है. यह क्षेत्र मुख्यतः बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है और इसकी अपनी विशिष्ट पहचान है - मिथिला संस्कृति.

हाल के वर्षों में मिथिला राज्य की मांग भी उठी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यहाँ के लोगों में अपनी पहचान और गौरव को लेकर गहरी चेतना है.

मिथिलांचल को विदेह राज्य के रूप में भी जाना जाता था. यह वही भूमि है जहां राजा जनक का शासन था और जहां माता सीता का जन्म हुआ. रामायण काल से ही मिथिला को ज्ञान, तपस्या और नारी सम्मान की भूमि के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है.

राजा जनक न केवल एक शक्तिशाली राजा थे, बल्कि दर्शनशास्त्र के ज्ञाता भी थे. मिथिला का इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है और यह हमेशा से विद्वानों, संतों और दार्शनिकों की भूमि रही है.

मिथिलांचल की प्रमुख भाषा मैथिली है, जिसे 2003 में संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला. मैथिली साहित्य का इतिहास भी बेहद समृद्ध है.

विद्यापति मैथिली के महानतम कवियों में से एक माने जाते हैं, जिनकी रचनाएं प्रेम, भक्ति और समाज की सच्चाइयों का अद्भुत संगम हैं. 

आधुनिक काल में नाथ योगी, ललन मिश्र, हरिमोहन झा और नागार्जुन जैसे लेखकों ने मैथिली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

मिथिलांचल की संस्कृति लोक परंपराओं, पर्व-त्योहारों और कलाओं से भरी हुई है. मधुबनी पेंटिंग- यह विश्वप्रसिद्ध चित्रकला शैली मिथिलांचल की पहचान है. इसे महिलाएं अपने घर की दीवारों पर बनाती थीं, जो अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा रही है. सामा-चकेवा, झिझिया, कजरौट, विदा गीत आदि लोकनृत्य और गीत यहां की लोकसंस्कृति का जीवंत हिस्सा हैं.

पान, मखान और माछ (मछली) मिथिला के भोजन-संस्कृति के प्रतीक हैं.

मिथिलांचल का समाज परंपरागत मूल्यों के साथ-साथ आधुनिकता की ओर भी बढ़ रहा है. यहां शिक्षा का विशेष महत्व है, यह क्षेत्र आज भी IAS, साहित्यकारों और शिक्षाविदों का गढ़ माना जाता है.

 

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