असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) बिहार में विपक्षी इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए बेताब है. बिहार एआईएमआईएम के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए पहले गुहार लगाई और फिर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखा है. इसके बाद भी जब बात नहीं बनी तो अख्तरुल ईमान अपने समर्थकों के साथ गुरुवार को लालू यादव के दर पर दस्तक देने पहुंच गए.
अख्तरुल ईमान गुरुवार को पटना में अपने समर्थकों के साथ लालू यादव के आवास तक पहुंचे. इस दौरान उन्होंने गठबंधन में एआईएमआईएम को शामिल करने की मांग उठाई. एआईएमआईएम केवल 6 सीट की मांग इंडिया ब्लॉक से कर रही है.
'लालू-तेजस्वी अपने कानों को खोल, तेरे दरवाजे पर बज रहा है ढोल, गठबंधन के लिए अपना दरवाजा खोल,' जैसे नारे लगाते हुए अख्तरुल ईमान राजद प्रमुख लालू के दरवाजे पर पहुंचे. इसके बाद भी लालू यादव ने एआईएमआईएम के लिए न ही अपने घर के दरवाजे खोले और न ही गठबंधन के. सवाल उठता है कि आरजेडी और कांग्रेस के इनकार के बाद भी ओवैसी की पार्टी क्यों गठबंधन में शामिल होने के लिए बेताब है?
ओवैसी बिहार में गठबंधन के लिए बेताब?
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अख्तरुल ईमान ने कहा कि हमारा प्रयास है कि सभी एकजुट होकर चुनाव लड़ें. बिहार में हम सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं, पर कोई भी पार्टी अकेले सांप्रदायिक ताकतों को नहीं हरा सकती. इंडिया ब्लॉक में हमारी पार्टी को शामिल नहीं किया गया, तो वोटों का बंटवारा होगा और सांप्रदायिक ताकतों को फायदा होगा.
उन्होंने कहा कि हमने कई बार गठबंधन के लिए आरजेडी को प्रस्ताव भेजा, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया. हम कोई सीएम या मंत्रालय नहीं मांग रहे, बल्कि सिर्फ 6 सीटें मांग रहे हैं. आरजेडी द्वारा एआईएमआईएम के चार विधायकों को तोड़कर अपने पाले में करने की बात का जिक्र करते हुए अख्तरुल ईमान ने कहा कि बिहार में सांप्रदायिक शक्तियों को हटाने के लिए हम इतने गंभीर हैं कि हमारे सीने पर खंजर घोंपा गया फिर भी हम उनसे हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं, वह नुकसान हमें हुआ है, लेकिन हम बिहार की जनता को नुकसान नहीं होने देना चाहते हैं.
ओवैसी से हाथ मिलाने को कोई नहीं तैयार
बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज के वोटों को बंटने से रोकने की दुहाई देकर गठबंधन की बात अख्तरुल ईमान कर रहे हैं. इतना ही नहीं सिर्फ 6 सीट ही एआईएमआईएम के लिए मांग रहे हैं. इसके बाद भी न ही कांग्रेस तैयार है और न ही आरजेडी. बिहार के कांग्रेस प्रभारी कृष्ण अल्लावरू ने ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को गठबंधन में लेने के सवाल को लालू यादव के पाले में डाल दिया है. उन्होंने कहा कि एआईएमआईएम ने गठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव लालू प्रसाद यादव से किया है तो उसका जवाब वही देंगे.
आरजेडी के सांसद मनोज झा पहले ही कह चुके हैं कि असदुद्दीन ओवैसी बिहार में अगर बीजेपी को हराना चाहते हैं और सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं तो बिहार में चुनाव लड़ने के बजाय इंडिया ब्लॉक का उन्हें समर्थन करना चाहिए. इस तरह आरजेडी ने साफ-साफ एआईएमआईएम को संदेश दे दिया है कि महागठबंधन में उनके लिए कोई जगह नहीं है. इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बनने के लिए ओवैसी की पार्टी भले ही बेचैन हो, लेकिन तेजस्वी और लालू यादव तैयार नहीं हैं.
ओवैसी गठबंधन के लिए क्यों बेचैन?
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को आरजेडी साफ इनकार कर चुकी है. उसके बाद भी एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान लगातार आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से गुहार लगा रहे हैं. ऐसे में एआईएमआईएम की आखिर क्या मजबूरी है कि वह इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बनने के लिए बेताब है. इसकी वजह यह है कि बिहार का चुनाव एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच सिमटता जा रहा है, जिसके चलते एआईएमआईएम की सियासी राह काफी मुश्किल दिख रही है.
आरजेडी और कांग्रेस का बिहार में कोर वोटबैंक मुस्लिम है और ओवैसी की नजर भी मुस्लिमों पर ही टिकी है. आरजेडी की पूरी कोशिश मुस्लिम वोटों को एकमुश्त अपने साथ बांधकर रखने की है, जिसके लिए तेजस्वी यादव वक्फ कानून का विरोध करने को लेकर पसमांदा मुस्लिमों तक को साधने में जुटे हैं. इसके अलावा राहुल गांधी ने सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर 'वोट अधिकार यात्रा' निकालकर मुस्लिमों को अपने पक्ष में लामबंद करते नजर आए हैं. इससे ही ओवैसी की बेचैनी बढ़ गई है.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो असदुद्दीन ओवैसी का बिहार में कोई जमीनी आधार नहीं है बल्कि उनकी पकड़ सीमांचल के इलाके की कुछ सीटों तक पर ही रही है. राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा के बाद सीमांचल का माहौल इंडिया ब्लॉक के पक्ष में हुआ. महागठबंधन बनाम एनडीए की सीधी जंग में मुसलमानों का झुकाव महागठबंधन की तरफ होगा. इस बार का चुनाव काफी अलग है. ऐसे में ओवैसी की पार्टी को अपनी सियासी उम्मीदें धूमिल होती दिख रही हैं, जिसके चलते उनकी पार्टी बेचैन है.
हैदराबाद से बाहर ओवैसी ने जहां भी सियासी जगह बनाई है, वहां खुद की राजनीति के दम पर नहीं बल्कि किसी न किसी पार्टी की बैसाखी के सहारे जीते हैं. 2020 में बिहार में उपेंद्र कुशवाहा और बसपा से गठबंधन करने पर पांच सीटें एआईएमआईएम ने जीती थीं और महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर के साथ गठबंधन कर जीत दर्ज की थी. ऐसे में बिहार में भी ऐसी ही कोशिश कर रहे हैं, जिसके लिए कोई राजी नहीं है. इतना ही नहीं ओवैसी महागठबंधन में एंट्री कर अपने ऊपर लगे बीजेपी की बी-टीम के नैरेटिव को भी तोड़ना चाहते हैं.
ओवैसी से क्यों परहेज कर रही आरजेडी
अख्तरुल ईमान की तमाम कोशिशों के बाद भी एआईएमआईएम के लिए आरजेडी और कांग्रेस क्यों दरवाजा नहीं खोल रही है. इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओवैसी के साथ हाथ मिलाने में फायदा कम और सियासी नुकसान ज्यादा है. इसीलिए बिहार का इंडिया गठबंधन उनसे दूरी बनाए रखकर राजनीतिक दांव चल रहा है.
ओवैसी की राजनीति के जरिए वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना हमेशा बनी रहती है. ओवैसी के चलते हिंदू वोट एकजुट होने का भी खतरा दिख रहा है, जिस वजह से तेजस्वी यादव और कांग्रेस बिहार में एआईएमआईएम से हाथ मिलाने से बच रहे हैं.
ओवैसी के साथ मैदान में उतरे तो उन पर भी मुस्लिम परस्त और कट्टरपंथी पार्टी के साथ खड़े होने का आरोप बीजेपी लगाएगी. यही वजह है कि ओवैसी के साथ आरजेडी गठबंधन करने से परहेज कर रही है. 2014 के बाद से देश का राजनीतिक पैटर्न बदल गया है. देश में अब पूरी तरह से बहुसंख्यक समाज केंद्रित राजनीति हो गई है और इस फॉर्मूले के जरिए बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है.
असदुद्दीन ओवैसी की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता के तौर पर है और उनके भाषण भी इसी तरह के हैं. ऐसे में ओवैसी के साथ हाथ मिलाने से हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण होगा. बिहार में सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे सरकार नहीं बनाई जा सकती है. इसीलिए आरजेडी से लेकर कांग्रेस तक ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते. इसके अलावा ओवैसी के साथ हाथ मिलाने पर तेजस्वी और कांग्रेस दोनों के लिए भविष्य में सियासी खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिसके चलते भी गठबंधन के लिए राजी नहीं हैं.