दुलारचंद यादव हत्याकांड मामले में गिरफ्तार मोकामा विधानसभा सीट से जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) प्रत्याशी बाहुबली अनंत सिंह को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पुलिस ने अभी तक 81 लोगों की गिरफ्तारियां की हैं, जिसमें हत्या से जुड़े अन्य लोगों के साथ अनंत सिंह के समर्थक भी शामिल हैं। ऐसे में अनंत सिंह को एक बार फिर जेल से ही चुनाव लड़ना होगा.
मोकामा विधानसभा सीट पर जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह का मुकाबला बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी से है, जो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से चुनाव लड़ रही हैं. जन सुराज पार्टी से पीयूष प्रियदर्शी किस्मत आजमा रहे हैं.
2015 का विधानसभा चुनाव अनंत सिंह जेल में रहकर जीते थे, लेकिन दुलारचंद हत्या में उन्हें बीच चुनाव में जेल जाना पड़ा है. दस साल बाद फिर से अनंत सिंह को जेल में रहकर ही चुनाव लड़ना होगा, लेकिन इस बार चुनाव उनकी नाक का सवाल बना हुआ है. ऐसे में सवाल उठता है कि मोकामा की सियासत पर दुलारचंद की हत्या और अनंत सिंह की गिरफ्तारी का सियासी असर क्या पड़ेगा?
दुलारचंद की हत्या में अनंत सिंह पर शिकंजा
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मोकामा क्षेत्र में 30 अक्टूबर की दोपहर जन सुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी और जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह के समर्थकों के बीच झड़प हुई थी. इस दौरान दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई, जिसका आरोप अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर लगाया गया है. आरजेडी उम्मीदवार वीणा देवी पोस्टमार्टम के लिए ले जाए जा रहे दुलारचंद यादव के शव के साथ ट्रैक्टर पर बैठी नजर आईं.
दुलारचंद की हत्या से मोकामा की सियासत गरमा गई है, राज्य की कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे थे तो एनडीए के 'जंगलराज' वाले नैरेटिव पर भी सियासी प्रभाव पड़ रहा है. इतना ही नहीं अगड़ा बनाम पिछड़ा का सियासी रंग देने की कवायद की जा रही है.
दुलारचंद यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से थे तो अनंत सिंह भूमिहार समाज से यानी अगड़ी जाति से हैं. दुलारचंद यादव भले ही आरजेडी में थे, लेकिन जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी के लिए प्रचार कर रहे थे. उनकी सियासत शुरू से ही अनंत सिंह के खिलाफ रही है. ऐसे में उनकी हत्याकांड से बिहार की जातिगत राजनीति (कास्ट पॉलिटिक्स) को हवा दी जा रही है तो अब अनंत सिंह की गिरफ्तारी के भी सियासी असर पड़ने की बात कही जा रही है.
अनंत सिंह की गिरफ्तारी का सियासी प्रभाव
अनंत सिंह के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव काफी मुश्किलों भरा नजर आ रहा है, क्योंकि उनका मुकाबला भूमिहार समाज से आने वाले सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी और जन सुराज के पीयूष प्रियदर्शी से है. इस बार का चुनाव अनंत सिंह के लिए नाक का सवाल बना था. ऐसे में दुलारचंद यादव की हत्या मामले में अनंत सिंह सहित उनके तमाम समर्थकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. 1 नवंबर की आधी रात को बिहार पुलिस ने अनंत सिंह को गिरफ्तार किया और अब उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
पटना के एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि अनंत सिंह को दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. इसके अलावा अनंत सिंह के करीबी मणिकांत ठाकुर और रणजीत राम सहित 81 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. गिरफ्तारी के बाद अनंत सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा था, 'सत्यमेव जयते, मुझे मोकामा की जनता पर पूर्ण भरोसा है! इसलिए चुनाव अब मोकामा की जनता लड़ेगी!'
हालांकि, 10 साल पहले 2015 के चुनाव में अनंत सिंह जेल में रहकर जीत दर्ज किए थे, लेकिन इस बार मामला अलग है. मणिकांत ठाकुर और रणजीत राम को अनंत सिंह के सियासी मैनेजमेंट का कर्ताधर्ता माना जाता है. वे चुनावी कैंपेन के साथ जमीनी स्तर पर समर्थकों को मैनेज करने में सक्रिय रहते हैं. मोकामा के टाल क्षेत्र में अनंत सिंह के सियासी आधार को मैनेज करने का काम करते हैं. वोटिंग से चार दिन पहले अनंत सिंह और उनके समर्थकों की गिरफ्तारी चुनाव को प्रभावित कर सकती है.
मोकामा की सियासत में अनंत सिंह
मोकामा विधानसभा क्षेत्र की सियासत पर अनंत सिंह परिवार का दबदबा रहा है. 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए और 1995 में दूसरी बार भी जीतने में कामयाब रहे. 2000 में दिलीप सिंह चुनाव हार गए, उन्हें बाहुबली सूरजभान सिंह ने चुनाव हराया था. इसके बाद 2005 में अनंत सिंह उतरे और पहली बार विधायक बने.
2005 से लेकर 2020 तक लगातार अनंत सिंह जीत रहे हैं, जिसमें तीन बार जेडीयू के टिकट पर विधायक बने. 2015 में निर्दलीय चुने गए और 2020 में आरजेडी के टिकट पर विधायक बने. 2022 में सजा होने के चलते अनंत सिंह की सदस्यता चली गई. इसके बाद अनंत सिंह की पत्नी नीलिमा देवी उपचुनाव में विधायक बनीं। अब अनंत सिंह फिर से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
अनंत सिंह भूमिहार समुदाय से आते हैं और उनकी अपने सजातीय वोटों पर जबरदस्त पकड़ है. बिहार की दबंग जातियों में भूमिहार का नाम आता है. मोकामा क्षेत्र के भूमिहार वोटों पर अनंत सिंह की मजबूत पकड़ मानी जाती है, लेकिन सूरजभान भी भूमिहार समाज से हैं और उनकी पत्नी आरजेडी से उतरी हैं. ऐसे में भूमिहारों के वोट बंटने की संभावना भी मानी जा रही है, लेकिन अब अनंत सिंह की गिरफ्तारी से गेम बदलता हुआ नजर आ रहा है.
मोकामा में कैसा बन रहा चुनावी सीन
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में भूमिहार 30 फीसदी से ज्यादा हैं तो यादव 20 फीसदी हैं. इसके अलावा राजपूत 10 फीसदी, कुर्मी, कोइरी जैसी अतिपिछड़ी जातियां 20 से 25 फीसदी हैं तो दलित 16 से 17 फीसदी हैं तो मुस्लिम 5 फीसदी हैं. यादव, भूमिहार, कुशवाहा, मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक भूमिका निभाती है.
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,84,108 वोटर हैं, जिसमें सबसे ज्यादा करीब 80 हजार भूमिहार, 45 हजार यादव, 40 हजार धानुक, राजपूत 14 और ब्राह्मण 16 हजार हैं. इसके अलावा दलित और दूसरी ओबीसी जातियां भी हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मोकामा के भूमिहार वोटों पर सूरजभान और अनंत सिंह दोनों की अपनी-अपनी पकड़ है. इसके चलते भूमिहार वोटों में बंटवारा होने की संभावना थी, लेकिन हत्याकांड के बाद सारे समीकरण बदल गए हैं.
दुलारचंद यादव की शव यात्रा के दौरान जिस तरह अनंत सिंह के खिलाफ टिप्पणी की गई हैं और अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाने का दांव चला गया है, उससे भूमिहार वोटर लामबंद होने के आसार दिख रहे हैं. इससे अनंत सिंह को फायदा मिल सकता है, क्योंकि भूमिहार के बीच सूरजभान से ज्यादा अनंत सिंह की पकड़ है.
मोकामा का सियासी समीकरण बदलेगा?
दुलारचंद की हत्या से यादव वोट भी दूसरी तरफ आरजेडी के पक्ष में लामबंद माना जा रहा है, जिसका लाभ वीणा देवी को मिल सकता है. दुलारचंद के पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार करने के चलते यादव वोटरों में पहले बिखराव दिख रहा था, लेकिन घटना के बाद प्रशांत किशोर (पीके) की खामोशी और वीणा देवी के तेवर ने आरजेडी को सियासी संजीवनी दे दी.
यादव और ओबीसी के एकजुट होना मोकामा में अनंत सिंह का गेम बिगाड़ सकता है, हालांकि, यादव का सपोर्ट आरजेडी के साथ हो सकता है, लेकिन धानुक और दूसरी ओबीसी के साथ मिलने पर सवाल है. जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष की नजर भी इसी वोटबैंक पर है, जिसे साधने के लिए लगातार अगड़ा बनाम पिछड़ा का दांव चल रहे हैं.
भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत वोटर अनंत सिंह के साथ हैं और बीजेपी के नाम पर वह एकजुट हो सकते हैं, लेकिन दूसरी तरफ ओबीसी और दलित वोटों को एकजुट करने का दांव चला जा रहा है. दुलारचंद अपने जीवन में यादव, ओबीसी और दलित वोटों के सहारे भूमिहारों से सीधे चुनौती लेते रहे. इसीलिए उनकी हत्या के बाद सियासी जमीन पर अगड़ा और पिछड़ा की बातें जोर पकड़ने लगी थीं. अब इसका सियासी लाभ कैसे कौन उठाता है, देखना होगा?