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सक्सेस स्टोरी: टेंपो चालक की बेटी बनी अपने जिले की पहली मुस्ल‍िम मह‍िला जज, पिता ने ऐसे की मदद

गुलफाम ने बताया कि कॉलेज में उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियां बहुत होशियार थीं लेकिन उनके परिवार वालों की सपोर्ट उन्हें नहीं मिला, वरना वे भी किसी न किसी में टॉप कर सकती थी. पढ़‍िए- इस बेटी के जज्बे की कहानी.

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जिले की पहली महिला मुस्ल‍िम जज बनीं गुलफाम
जिले की पहली महिला मुस्ल‍िम जज बनीं गुलफाम

'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा आपने अक्सर सुना होगा. आज हर जगह बेटियां अपने माता-पिता का सम्मान बढ़ा रही हैं. इसी कड़ी में पहली मुस्ल‍िम महिला जज बनकर टेंपो चालक की बेटी गुलफाम ने अपने परिवार का मान बढ़ाया है. पंजाब के कुछ गिनती के शहरों में शुमार मलेरकोटला जिले की पहली मुस्ल‍िम महिला जज बनने की खुशी में उनके घर में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. 

दरअसल, गुलफाम ने पंजाब सिविल सर्विस (judicial) में से पंजाब भर से  EWS कैटैगरी में पांचवां स्थान हासिल किया है. गुलफाम के पिता मलेरकोटला में एक टेंपो चालक या यूं कहें कि वो पिकअप गाड़ी चलाते हैं. गुलफाम की आर्थ‍िक स्थिति की बात करें तो एक छोटे से घर में पूरा परिवार एक साथ रहता है.

पिता की जेब में 150 रुपये भी नहीं थे
गुलफाम बताती हैं कि उनके पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए अपनी हैसियत से ज्यादा सहयोग किया. जब वो एग्जाम की तैयारी के लिए पटियाला जाती थी तो कई बार उनके पिता की जेब में डेढ़ सौ रुपए भी नहीं होते थे. लेकिन, फिर भी कैसे न कैसे परिवार पैसे देता था ताकि बेटी पढ़ लिख जाए. उनके घर में एक ही कमरा था जिसमें बैठकर सभी साथ में खाना खाते थे. गुलफाम कहती हैं कि उसी में मुझे पढ़ाई करनी होती थी. परिवार का सहयोग यह होता था कि जब मैं अपनी पढ़ाई करती थी तो कोई भी मुझे डिस्टर्ब नहीं करता था. गुलफाम कहती हैं कि आज मुझे बहुत खुशी हुई है. मैंने अपने पापा का सपना पूरा किया है. 

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पिता के साथ जिले की पहली महिला मुस्ल‍िम जज बनीं गुलफाम

पूरे परिवार ने की मदद
गुलफाम ने बताया कि कॉलेज में उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियां बहुत होशियार थीं लेकिन उनके परिवार वालों की सपोर्ट उन्हें नहीं मिला, वरना वे भी किसी न किसी में टॉप कर सकती थी. मेरे साथ परिस्थि‍त‍ियां अनुकूल थीं, मैं जब भी अपनी तैयारी के लिए पटियाला पढ़ने जाती तो मेरा डेढ़ सौ रुपए खर्च आता था. पापा मुझे अपनी जेब से डेढ़ सौ रुपया निकालकर देते थे. कई बार मैं पापा का पर्स देखती तो उसमें सिर्फ डेढ़ सौ या कुछ और रुपए होते थे तो पापा बोलते थे कि तू ले जा कोई बात नहीं. कई बार पापा की जेब से कुछ भी नहीं निकलता था तो उसे समय मेरे चाचा मुझे पैसे देते थे. इसलिए कह सकते हैं कि पूरे परिवार का मुझे पूरा सहयोग मिला.

गुलफाम का पूरा परिवार

बता दें कि गुलफाम ने अपनी शिक्षा 12वीं कक्षा तक इस्लामिया गर्ल सीनियर सेकेंडरी स्कूल मलेरकोटला और ग्रेजुएशन की पढ़ाई इस्लामिया गर्ल कॉलेज मलेरकोटला से की. उन्होंने एलएलबी की डिग्री पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से प्राप्त की है. गुलफाम के पिता तालिब हुसैन ने बताया कि वह टेंपो चलाते हैं और उन्होंने अपने बच्ची को पढ़ने में कभी भी रोका. आज मुझे बहुत खुशी हुई है कि जब बेटी एक ऐसे माहौल से निकलकर जज बनी है तो मुझे अपनी बेटी पर नाज है.

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