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हिंद महासागर में अब पाकिस्तान-चीन की खैर नहीं, राफेल जेट से कितनी मजबूत होगी नौसेना? एक्सपर्ट्स ने बताया

फ्रांस के साथ राफेल डील में 22 सिंगल सीट विमानवाहक आधारित जेट और चार दोहरे सीट वाले ट्रेनर एयरक्राफ्ट शामिल हैं. जेट्स की डिलीवरी 2028 और 2029 के बीच शुरू होने की उम्मीद है. नया बेड़ा 2031 या 2032 तक पूरी तरह से काम करना शुरू कर देगा जिससे भारतीय नौसेना की क्षमता काफी बढ़ जाएगी.

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भारत ने राफेल जेट्स के लिए फ्रांस के साथ डील की है (Photo- AFP)
भारत ने राफेल जेट्स के लिए फ्रांस के साथ डील की है (Photo- AFP)

भारत ने फ्रांस से 26 राफेल-मरीन फाइटर जेट की खरीद के लिए 7.4 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया है. भारत ने यह समझौता ऐसे वक्त में किया है जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर है.  विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के साथ तनाव और चीन की बढ़ती नौसैनिक क्षमता के बीच नए राफेल डील से भारत की समुद्री डिफेंस क्षमता मजबूत होगी.

सोमवार को नई दिल्ली में समझौते को अंतिम रूप दिया गया. इस दौरान भारत के रक्षा सचिव राज कुमार सिंह और फ्रांसीसी राजदूत थिएरी मथौ मौजूद थे जिन्होंने हस्ताक्षर समारोह की अध्यक्षता की.

इस डील में 22 सिंगल सीट विमानवाहक आधारित जेट और चार दोहरे सीट वाले ट्रेनर एयरक्राफ्ट शामिल हैं. इस डील को इसी महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली भारत की सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति से मंजूरी मिली थी.

राफेल जेट्स की डिलीवरी 2028 और 2029 के बीच शुरू होने की उम्मीद है. उम्मीद है कि राफेल का नया बेड़ा 2031 या 2032 तक पूरी तरह से काम करना शुरू कर देगा जिससे भारतीय नौसेना की क्षमता काफी बढ़ जाएगी.

विदेश मामलों के जानकार रोबिंदर सचदेव का कहना है कि राफेल-एम जेट्स भारतीय नौसेना के लिए एक तकनीकी छलांग है. इन जेट्स के नौसेना में शामिल होने से इसकी वाहक संचालन क्षमता भारतीय वायु सेना की उन्नत क्षमता की बराबरी कर लेगी.

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भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही हैं राफेल फाइटर जेट्स

भारत ने इससे पहले 2016 में करीब 7.2 अरब डॉलर का समझौते के तहत फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे थे. इन विमानों को पाकिस्तान और चीन की सीमाओं के पास रणनीतिक हवाई अड्डों पर तैनात किया गया है. नए राफेल जेट्स पुराने हो चुके MiG-29K फ्लीट लेंगे जो भारत के दो विमान वाहक पोतों - आईएनएस विक्रमादित्य और नव-नियुक्त आईएनएस विक्रांत को कॉम्बेट पावर देता है.

दिल्ली स्थित थिंक टैंक इमेजिनडिया इंस्टीट्यूट के संस्थापक सचदेव ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बात करते हुए कहा, 'विक्रांत के लिए अब तक एक भी समर्पित फाइटर स्क्वाड्रन नहीं था. राफेल के आने के बाद इसे एक एयर विंग मिल जाएगा जिससे यह पूरी तरह से एक फ्लोटिंग एयरबेस बन जाएगा. राफेल-एम हर वाहक को मिग-29K की तुलना में कहीं अधिक पहुंच, सटीकता और मारक क्षमता प्रदान करता है.'

सचदेव ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, विशेषकर हिंद महासागर में चीन तेजी से अपनी नौसेना को मजबूत कर रहा है जिसके देखते हुए भारत को भी अपनी मालवाहक शक्ति को मजबूत करना पड़ा है.

भारत के लिए हिंद महासागर में समुद्री डिफेंस को मजबूत करना जरूरी

सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल कपिल काक का कहना है कि भारत अपने डिफेंस सिस्टम को आधुनिक बनाता जा रहा है क्योंकि चीन की समुद्री क्षमता तेजी से बढ़ती जा रही है.

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उन्होंने कहा, 'हाल के सालों में यह ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जब से हम चीन का बहुत आक्रामक रुख देख रहे हैं जिसमें दक्षिण चीन सागर और पड़ोसी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में उसके आक्रामक कदम शामिल हैं.'

कपिल काक ने कहा कि दक्षिण चीन सागर पर चीन के एकतरफा दावों ने भारत के लिए सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है. उन्होंने कहा कि नए राफेल जेट विमानों की आपूर्ति लंबे समय से रुकी हुई थी.

वो कहते हैं, 'भारत के पास दो [ऑपरेशनल] एयरक्राफ्ट कैरियर होने चाहिए और तीसरा स्टैंडबाय कैरियर भी होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से, केवल एक ही एयरक्राफ्ट कैरियर है, आईएनएस विक्रांत. आईएनएस विक्रमादित्य फिलहाल मेंटेनेंस के दौर से गुजर रहा है जिससे कम समय के लिए ही सही लेकिन भारत की कैरियर क्षमता सीमित हो गई है.'

कपिल काक आगे कहते हैं, 'हिंद महासागर चीन से बहुत दूर है और भारत से सटा हुआ है. इसलिए भू-रणनीतिक रूप से भारत के लिए इन विमानों को अपने बेड़े में शामिल करना और अपने समुद्री डिफेंस को लगातार मजबूत करना जरूरी हित और मजबूरी है.'

पाकिस्तान-चीन से मुकाबला करने के लिए मजबूत हुआ भारत

आईएनएस विक्रांत फिलहाल अरब सागर में तैनात है, जो पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत की नौसेना की मौजूदगी को बढ़ाता है.

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पाकिस्तान के साथ तनाव में उस वक्त बढ़ोतरी हुई जब बीते हफ्ते 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों को निशाना बनाकर एक आतंकी हमला हुआ. हमले में 26 लोग मारे गए. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार बताया लेकिन पाकिस्तान ने इन आरोपों से इनकार किया है.

रोबिंदर सचदेवा का कहना है कि राफेल-एम की खरीद से भारत की हवा और समुद्र में पाकिस्तान और चीन दोनों का मुकाबला करने की क्षमता मजबूत हुई है.

उन्होंने कहा, 'भारतीय वायुसेना के जमीनी राफेल पहले से ही पाकिस्तान को चीन से मिले 25 जे-10सी लड़ाकू विमानों से भारी हैं. विमान वाहक राफेल-एम जेट्स अरब सागर और उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर अलग-अलग दिशाओं से हमला करके पाकिस्तानी वायु रक्षा को बर्बाद कर देंगे.'

पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी और सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज थिंक टैंक के प्रमुख सी. उदय भास्कर ने कहा कि नया विमान भारत की समुद्री सैन्य क्षमताओं को साफ तौर से बढ़ा देगा.

हालांकि, उन्होंने कहा कि जेट्स की डिलीवरी 2030 तक पूरा होने की उम्मीद है लेकिन भारत की नौसेनिक शक्ति को जल्द से जल्द मजबूत करने की जरूरत है.

उदर भास्कर ने कहा, 'भारत की नौसेना अभी भी प्लेटफार्म्स और हथियार ले जाने की क्षमता के मामले में मामूली है लेकिन इसने अपनी क्षमता साबित की है. 26 राफेल-एम का नौसेना में शामिल होना स्वागत योग्य है, लेकिन अगर आपको समुद्र में प्रभुत्व कायम करना है तो ये विमान भी कम पड़ते हैं. सच्चाई ये है कि नौसेना के पास बजट की गंभीर दिक्कत है और आने वाले समय में इसमें बदलाव की संभावना नहीं है.'

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उन्होंने कहा कि भारत के लिए चीन और पाकिस्तान दोनों ही अलग-अलग सुरक्षा चुनौतियां पेश करते हैं. भारत की सामरिक भौगोलिक स्थिति के कारण हिंद महासागर में मजबूत नौसैनिक मौजूदगी की जरूरत है.

'भारत के लिए जरूरी था राफेल डील'

दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विदेश नीति विशेषज्ञ हर्ष वी पंत ने कहा कि राफेल-एम जेट भारत की रक्षा क्षमताओं में कमी को पूरा करने में मदद करेंगे.

उन्होंने कहा, 'भारत के पास पहले से ही 36 राफेल लड़ाकू विमान हैं, इसलिए यह टेक्नोलॉजी नई नहीं है. लेकिन अब इनका संचालन आसान हो जाएगा. यह भारत की लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने की एक कोशिश है और राफेल की संख्या में कमी को देखते हुए नई डील जरूरी थी.'

हर्ष वी पंत ने कहा कि भारत के सामने दोहरी चुनौतियां हैं: पाकिस्तान से तात्कालिक खतरा और बीजिंग के साथ लंबे समय तक चलने वाली प्रतिस्पर्धा.

वो कहते हैं, 'भारत को निश्चित रूप से अपनी नौसेना क्षमताओं को मजबूत करने की जरूरत है. चीन अपनी वायु सेना और नौसेना में बहुत अधिक निवेश कर रहा है, जबकि भारत संसाधनों की कमी का सामना कर रहा है. भारत के पास वर्तमान में जो है वह पर्याप्त नहीं है.'

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