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चीन पर भरोसा कर चोट खाएंगे ये 44 देश... PAK और बांग्लादेश भुगत चुके हैं नतीजा!

चीन ने 44 देशों को हथियार और विमान बेचकर वैश्विक हथियार बाजार में अपनी जगह बना ली है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और अफ्रीकी देश इसके सबसे बड़े खरीदार हैं. लेकिन JF-17, K-8W और FM-90 जैसे हथियारों की खराबी ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं. फिर भी, सस्ते दाम, आसान शर्तें और पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से कई देश चीन की ओर देख रहे हैं.

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चीन का JF-17 फाइटर जेट पाकिस्तान के पास है. कई चीनी हथियार 44 देशों के पास मौजूद हैं. (File Photo: Getty)
चीन का JF-17 फाइटर जेट पाकिस्तान के पास है. कई चीनी हथियार 44 देशों के पास मौजूद हैं. (File Photo: Getty)

पिछले कुछ सालों में चीनी हथियारों की खराबी की खबरें सुर्खियों में रही हैं. पाकिस्तान में चीनी मिसाइलें टेस्ट में फेल होकर गिरीं, तो बांग्लादेश में चीनी जेट क्रैश हुए. फिर भी, चीन दुनिया भर में अपने सस्ते हथियार और विमान बेच रहा है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक, 2018 से 2024 तक चीन ने 44 देशों को हथियार बेचे. लेकिन सवाल ये है कि कौन-कौन से देश चीनी हथियार खरीद रहे हैं? क्यों खरीद रहे हैं, जबकि इनकी क्वालिटी पर सवाल उठ रहे हैं? क्या भारत को इससे चिंता करने की जरूरत है?

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चीनी हथियारों की खराबी: क्या हुआ पाकिस्तान और बांग्लादेश में?

पाकिस्तान में मिसाइल और जेट की नाकामी

शाहीन-3 मिसाइल हादसा: 22 जुलाई 2025 को पाकिस्तान ने शाहीन-3 मिसाइल का टेस्ट किया, जो चीन की मदद से बनी थी. मिसाइल डेरा गाजी खान के परमाणु केंद्र के पास गिरी, जिससे बड़ा धमाका हुआ. मलबा बलूचिस्तान के डेरा बुगटी में बस्तियों के करीब गिरा. ये मिसाइल JF-17 थंडर जेट की तरह चीन-पाकिस्तान की साझेदारी का नतीजा थी.
JF-17 की समस्याएं: पाकिस्तान का JF-17 थंडर जेट, जो चीन के साथ मिलकर बनाया गया, बार-बार तकनीकी खराबी का शिकार रहा. 2020 में इसके रडार की सटीकता पर सवाल उठे. FM-90 मिसाइल सिस्टम के सेंसर काम नहीं कर रहे थे.
F-22P फ्रिगेट्स: पाकिस्तान की नौसेना के लिए चीन ने F-22P फ्रिगेट्स बनाए, लेकिन इनके इंजन और परफॉर्मेंस में दिक्कतें आईं. सेंसर और रडार सिस्टम भी खराब पाए गए.

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बांग्लादेश में जेट क्रैश

  • बांग्लादेश ने चीन से K-8W जेट खरीदे, लेकिन 2018 में इनके गोला-बारूद में खराबी पाई गई. कई जेट क्रैश हुए, जिससे बांग्लादेश की वायुसेना को नुकसान हुआ.
  • 2017 में बांग्लादेश ने चीन से FM-90 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा, लेकिन इसके सेंसर और रडार में भी समस्याएं आईं, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे.

इन हादसों ने चीनी हथियारों की क्वालिटी पर बड़ा सवाल उठाया. फिर भी, कई देश सस्ते दाम और आसान शर्तों की वजह से चीन से हथियार खरीद रहे हैं.

कौन-कौन से देश खरीद रहे हैं चीनी हथियार?

SIPRI और RAND कॉर्पोरेशन के डेटा के मुताबिक, 2018 से 2024 तक 44 देशों ने चीन से हथियार और विमान खरीदे. इनमें ज्यादातर विकासशील देश हैं, जो सस्ते हथियारों की तलाश में हैं. नीचे प्रमुख देशों की लिस्ट और उनके द्वारा खरीदे गए हथियार हैं...

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एशिया (77.3% चीनी हथियारों का निर्यात)

पाकिस्तान

  • 63% चीनी हथियारों का खरीदार.
  • JF-17 थंडर जेट (चीन के साथ सह-निर्माण), J-10C फाइटर जेट, PL-15E हवा-से-हवा मिसाइल, HQ-9 और LY-80 एयर डिफेंस सिस्टम, F-22P फ्रिगेट्स, टाइप 054A/P फ्रिगेट, विंग लूंग ड्रोन.
  • मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने दावा किया कि J-10C ने भारत के राफेल जेट को मार गिराया, जिससे चीनी हथियारों की चर्चा बढ़ी.

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बांग्लादेश

  • K-8W ट्रेनर जेट, FM-90 एयर डिफेंस सिस्टम, टाइप 056 कोरवेट जहाज, C-802 एंटी-शिप मिसाइल.
  • बांग्लादेश ने 2010 से 2020 तक 970 मिलियन TIV (ट्रेंड-इंडिकेटर वैल्यू) के हथियार खरीदे.

म्यांमार

  • JF-17 जेट (17 यूनिट), CH-3A ड्रोन, Y-8 ट्रांसपोर्ट विमान, टाइप-43 फ्रिगेट्स, टाइप-92 बख्तरबंद वाहन.
  • 2021 के तख्तापलट के बाद म्यांमार ने CH-3A ड्रोन का इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों पर नजर रखने के लिए किया.

थाईलैंड

S26T सबमरीन, VT-4 टैंक, टाइप 071E लैंडिंग जहाज.

इंडोनेशिया

C-705 एंटी-शिप मिसाइल, FM-90 एयर डिफेंस सिस्टम. 2017 में एक हादसे में इंडोनेशियाई सैनिक मारे गए, जिससे चीनी हथियारों की क्वालिटी पर सवाल उठे.

मलेशिया

लिटोरल मिशन शिप्स (चीनी जहाज), लेकिन इनकी क्वालिटी पर शिकायतें आईं.

श्रीलंका

Y-12 ट्रांसपोर्ट विमान, टाइप 053H फ्रिगेट.

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अफ्रीका (19.1% चीनी हथियारों का निर्यात)

नाइजीरिया: CH-4 ड्रोन, VT-4 टैंक, SH-5 आर्टिलरी सिस्टम.

अल्जीरिया: CH-4 ड्रोन, HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम, C-28A कोरवेट.

इथियोपिया: SH-15 सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर.

कोट डी आइवर: VN22B बख्तरबंद वाहन.

सूडान: FTC-2000 ट्रेनर जेट, टाइप 96 टैंक.

उगांडा: टाइप 85 टैंक, SH-3 आर्टिलरी.

जाम्बिया: K-8P जेट, Z-9 हेलिकॉप्टर.

केन्या: VN-4 बख्तरबंद वाहन, WZ-551 बख्तरबंद कर्मचारी वाहक.

नामीबिया: FT-9 जेट, टाइप 07PA आर्टिलरी.

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कैमरून: टाइप 07PA आर्टिलरी, WZ-551 वाहन. 

घाना: Z-9 हेलिकॉप्टर.

तंजानिया: टाइप 63A उभयचर टैंक.

जिबूती: WMA301 असॉल्ट गन.

सेनेगल: PTL-02 असॉल्ट गन.

मोरक्को: Sky Dragon 50 एयर डिफेंस सिस्टम.

मिस्र: विंग लूंग ड्रोन.

ट्यूनीशिया: CH-4 ड्रोन.

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मध्य-पूर्व

सऊदी अरब: CH-4 और विंग लूंग ड्रोन। 2024 में वर्ल्ड डिफेंस शो में 40 चीनी डिफेंस कंपनियां मौजूद थीं.

संयुक्त अरब अमीरात (UAE): विंग लूंग ड्रोन, CH-5 ड्रोन.

जॉर्डन: CH-4 ड्रोन (2015 में, जब अमेरिका ने MQ-1 ड्रोन देने से मना किया).

इराक: CH-4 ड्रोन, FT-9 जेट. 

ओमान: C-802 एंटी-शिप मिसाइल.

ईरान: C-802 और C-704 मिसाइलें, टाइप 92 बख्तरबंद वाहन. 1980 के दशक से चीन ने ईरान को टैंक, मिसाइलें और विमान बेचे.

दक्षिण अमेरिका

वेनेजुएला: K-8W जेट, VN-4 बख्तरबंद वाहन.

बोलीविया: K-8 जेट, टाइप 92 बख्तरबंद वाहन.

पेरू: टाइप 90B रॉकेट लॉन्चर.

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अन्य क्षेत्र

सर्बिया: FD-2000 एयर डिफेंस सिस्टम (रूस के S-300 की कॉपी).

उज्बेकिस्तान: FD-2000 एयर डिफेंस सिस्टम. 

कजाकिस्तान: विंग लूंग ड्रोन.

तुर्कमेनिस्तान: HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम.

कंबोडिया: SH-1 आर्टिलरी.

लाओस: Z-9 हेलिकॉप्टर. 

वियतनाम: K-8 जेट (पहले खरीदे, लेकिन अब रूस और पश्चिमी देशों की ओर झुकाव).

नेपाल: Y-12 ट्रांसपोर्ट विमान.
 
मोजाम्बिक: टाइप 82 आर्टिलरी.

क्यूबा: सीमित मात्रा में Z-9 हेलिकॉप्टर.

अर्जेंटीना: WMZ-551 बख्तरबंद वाहन (छोटी मात्रा में खरीद).

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क्यों खरीदते हैं देश चीनी हथियार?

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चीन के हथियारों की खराबी की खबरें आने के बावजूद कई देश इन्हें क्यों खरीद रहे हैं? इसके कई कारण हैं...

  • सस्ते दाम: चीनी हथियार अमेरिका, रूस या यूरोप के हथियारों से 30-50% सस्ते हैं. उदाहरण के लिए, JF-17 जेट की कीमत 2-3 करोड़ डॉलर है, जबकि अमेरिका का F-16 करीब 6-8 करोड़ डॉलर का पड़ता है.
  • आसान शर्तें: चीन हथियार बेचते वक्त सख्त नियम नहीं लगाता. अमेरिका और यूरोप एंड-यूजर सर्टिफिकेट मांगते हैं, ताकि हथियार गलत हाथों में न जाएं. चीन ऐसा नहीं करता, जिससे कई देशों को आसानी होती है.
  • सुलभ फाइनेंसिंग: चीन लोन और आसान भुगतान की सुविधा देता है, जो गरीब देशों के लिए आकर्षक है.
  • पश्चिमी देशों का विकल्प: कई देश (जैसे ईरान, म्यांमार) पश्चिमी देशों से हथियार नहीं खरीद सकते, क्योंकि उन पर प्रतिबंध हैं. ऐसे में चीन उनकी पहली पसंद बनता है.
  • तकनीकी सहयोग: चीन कुछ देशों (जैसे पाकिस्तान) के साथ हथियारों का सह-निर्माण करता है, जैसे JF-17 और टाइप 054A/P फ्रिगेट.

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चीनी हथियारों की खामियां

हालांकि चीन सस्ते हथियार बेचता है, लेकिन इनकी क्वालिटी पर सवाल उठते रहे हैं...

  • तकनीकी खराबी: JF-17 जेट के रडार, FM-90 के सेंसर और F-22P फ्रिगेट के इंजन में बार-बार दिक्कतें आईं.
  • रखरखाव की कमी: चीनी कंपनियां रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स में ज्यादा मदद नहीं करतीं. म्यांमार को JF-17 की मरम्मत के लिए पाकिस्तानी तकनीशियनों की मदद लेनी पड़ी.
  • युद्ध में अनटेस्टेड: चीनी हथियारों का असली युद्ध में ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ. ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) में J-10C और PL-15E ने भारत के राफेल को कथित तौर पर मार गिराया, लेकिन ये दावा विवादास्पद है.
  • कॉपी टेक्नोलॉजी: चीन ने रूस के Su-27 को कॉपी कर J-11 बनाया और S-300 को कॉपी कर HQ-9 बनाया. इससे उनकी अपनी तकनीक की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं.

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भारत के लिए क्या मायने?

भारत के लिए चीनी हथियारों का निर्यात चिंता की बात है, खासकर क्योंकि पाकिस्तान इसका सबसे बड़ा खरीदार है...

  • पाकिस्तान का खतरा: चीन ने 2015-2024 में पाकिस्तान को 8.2 अरब डॉलर के हथियार बेचे. J-10C, PL-15E और HQ-9 जैसे हथियार भारत के लिए चुनौती हैं. ऑपरेशन सिंदूर में इनका इस्तेमाल हुआ, जिसने भारत को सतर्क किया.
  • क्षेत्रीय संतुलन: बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका जैसे पड़ो सी देशों में चीनी हथियारों की मौजूदगी भारत के लिए रणनीतिक चिंता है.
  • आत्मनिर्भरता की जरूरत: भारत अपनी ब्रह्मोस, अग्नि और आकाश जैसी मिसाइलों पर काम कर रहा है. चीनी हथियारों की बढ़ती पहुंच भारत को और तेजी से स्वदेशी हथियार बनाने के लिए प्रेरित कर रही है।
  • मध्य-पूर्व में प्रभाव: सऊदी अरब और UAE जैसे देश चीनी ड्रोन खरीद रहे हैं. ये देश भारत के तेल आपूर्तिकर्ता हैं. इनका चीन की ओर झुकाव भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है.

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क्यों चुनते हैं देश चीनी हथियार, भले ही खराबी हो?

  • बजट की मजबूरी: कई विकासशील देशों के पास अमेरिका या यूरोप के महंगे हथियार खरीदने का बजट नहीं है. चीन सस्ता विकल्प देता है.
  • पश्चिमी प्रतिबंध: ईरान, म्यांमार और सूडान जैसे देशों पर अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंध हैं. उनके पास चीन के अलावा कोई विकल्प नहीं.
  • राजनीतिक स्वतंत्रता: चीन हथियार बेचते वक्त मानवाधिकार या शासन की स्थिति पर सवाल नहीं उठाता, जो कई देशों को पसंद है.
  • तकनीकी पहुंच: चीन कुछ देशों को सह-निर्माण और तकनीक हस्तांतरण का मौका देता है, जैसे पाकिस्तान के साथ JF-17.
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