भारतीय वायुसेना का मशहूर लड़ाकू विमान मिग-21 अब जंगी स्क्वाड्रनों से रिटायर हो रहा है. 26 सितंबर 2025 को चंडीगढ़ में भव्य समारोह के साथ इसकी विदाई हुई. यह विमान 62 साल से देश की रक्षा में लगा था.
आखिरी दो स्क्वाड्रन - नंबर 23 (पैंथर्स) और नंबर 3 (कोब्रास) - में करीब 28 मिग-21 बाइसन विमान थे. इनकी रिटायरमेंट से वायुसेना के पास अब 29 फाइटर स्क्वाड्रन बच गए हैं, जबकि जरूरत 42 की है. लेकिन सवाल यह है कि इन रिटायर्ड जेट्स का आगे क्या होगा? जंकयार्ड में नहीं फेंके जाएंगे ये. बल्कि, इनका नया जीवन संग्रहालयों, शैक्षिक संस्थानों और ट्रेनिंग सेंटर्स में मिलेगा.
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मिग-21 सोवियत संघ का बनाया पहला सुपरसोनिक जेट था, जो भारत में 1963 से उड़ रहा था. कुल 874 मिग-21 खरीदे गए थे. यह 1965 और 1971 के युद्धों, कारगिल (1999) और बालाकोट (2019) में बहादुरी दिखा चुका था. लेकिन पुराने होने और हादसों के कारण अब रिटायर हो रहा है.
चंडीगढ़ एयर बेस पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए पी सिंह ने आखिरी सोलो उड़ान भरी. वाटर सल्यूट और फ्लाईपास्ट के साथ विदाई दी गई. अब ये जेट्स फ्रंटलाइन ड्यूटी से बाहर हैं.
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मिग-21 बिसन विमान 26 सितंबर के बाद चंडीगढ़ से नाल एयरबेस उड़ेगा. रिटायरमेंट के बाद, नंबर 3 स्क्वाड्रन कोबरा और नंबर 23 स्क्वाड्रन पैंथर्स को नंबर प्लेटेड किया जाएगा. नंबर प्लेटिंग का मतलब है कि इन दो स्क्वाड्रनों के नंबर और उनकी विरासत को फ्रीज कर दिया जाएगा.
कोई नया विमान जो स्क्वाड्रन में आएगा, उसे इन नामों से जाना जाएगा. अब, नंबर 3 स्क्वाड्रन को पहला एलसीए मार्क 1ए फाइटर मिलेगा. मिग-21 के नाल एयरबेस पहुंचने के बाद, इसका पूरा जांच होगा और रिपोर्ट बनेगी. जो पार्ट्स ठीक हैं और इस्तेमाल हो सकते हैं, उन्हें निकाल लिया जाएगा और बाकी को स्क्रैप कर दिया जाएगा.
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ये रिटायर्ड पार्ट्स इंजीनियरिंग कॉलेजों को ऑफर किए जा सकते हैं अगर वे ट्रेनिंग के लिए चाहें या आर्मी म्यूजियम या वॉर मेमोरियल में रखना चाहें. अगर कोई सिविल व्यक्ति इन जेट्स के ढांचे को डिस्प्ले के लिए लेना चाहे, तो उसे एयर हेडक्वार्टर्स में रिक्वेस्ट करनी होगी.

एक लिस्ट बनाई जाती है और जांच की जाती है कि आवेदक योग्य है या नहीं. जेट के फ्रेम्स को सिर्फ एयर फोर्स के स्टैंडर्ड्स के मुताबिक दिया जा सकता है, जिसमें उनकी निगरानी भी शामिल है. ऐसे रिटायर्ड जेट्स आमतौर पर बड़े यूनिवर्सिटी, इंडस्ट्री या गवर्नमेंट बिल्डिंग्स में रखे देखे जाते हैं.
अब तक रिटायर हुए सभी मिग-21 में से, कई को डिस्प्ले के लिए फिट किया गया है. इनमें से मिग-21 सिंगल सीटर को चंडीगढ़ के इंडियन एयर फोर्स हेरिटेज म्यूजियम में रखा गया है. यह भारत का पहला एयर फोर्स हेरिटेज सेंटर है.
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मिग-21 दिल्ली के आईएएफ म्यूजियम और पलम एयर फोर्स स्टेशन के बाहर, कोलकाता के निको पार्क सॉल्ट लेक के पास, ओडिशा के सनाबेदा में एचएएल के बिजू पटनायक एरोनॉटिक्स म्यूजियम, दिल्ली के राष्ट्रपति भवन म्यूजियम, प्रयागराज के चंद्रशेखर पार्क, बैंगलोर के एचएएल हेरिटेज सेंटर एंड एयरोस्पेस म्यूजियम में सुंदर तरीके से रखा गया है. मिग के अलग-अलग वैरिएंट्स को कई जगहों पर रिटायरमेंट के बाद रखा गया है.

कुछ जेट्स को ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इन्हें सुपरसोनिक टारगेट ड्रोन्स में बदला जा रहा है. इससे पायलटों को रियल कॉम्बैट ट्रेनिंग मिलेगी. यह तकनीकी रूप से विरासत को नई जिंदगी देगा.
वायुसेना के नियमों के मुताबिक, जो संस्थान एयरफ्रेम लेंगे, उन्हें रखरखाव का ध्यान रखना होगा. विमान का रंग और पेंट वही रखना पड़ेगा जो वायुसेना का है. अगर राज्य सरकार शहर के लिए मांग करे, तो म्यूनिसिपल अथॉरिटी रखरखाव में मदद करेगी, ताकि ये सड़ें नहीं.
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सामान्यतः पायलट अपनी स्ट्रीम को मनमाने तरीके से नहीं बदल सकते. फ्लाइंग स्ट्रीम में फाइटर, फिक्स्ड-विंग ट्रांसपोर्ट और हेलीकॉप्टर पायलट्स शामिल हैं. फाइटर पायलट ट्रांसपोर्ट और हेलीकॉप्टर स्ट्रीम में जा सकता है. यह सब बदलाव के कारण पर निर्भर करता है. मेडिकल ग्राउंड्स सबसे बड़ा कारण है.
मिग-21 रिटायर हो रहा है, इसलिए उसके पायलटों को स्ट्रीम बदलने का अच्छा कारण मिल गया है. एयर फोर्स का पायलट ट्रेनिंग प्रोग्राम प्राइमरी ट्रेनिंग के बाद अलग-अलग फाइटर जेट स्पेशलाइजेशन ऑप्शंस देता है. मिग पायलट को अगर दूसरा फाइटर चुनना हो, तो 3 से 6 महीने की ट्रेनिंग करनी पड़ेगी क्योंकि हर विमान अलग होता है. मिग-21 का पायलट टेस्ट पायलट भी बन सकता है. लॉजिस्टिक्स ब्रांच या एडमिन ब्रांच में जा सकता है.