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क्या ट्रंप के Tariff War ने दे दी है 'डिग्लोबलाइजेशन' को हवा? रिवर्स गियर में चली दुनिया तो ये हैं बड़े खतरे

डिग्लोबलाइजेशन की चर्चा करते हुए अमेरिका बार-बार इसलिए आता है क्योंकि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है. विश्व की दूसरे नंबर की आर्थिक शक्ति चीन के साथ उसका सबसे ज्यादा व्यापार है.  दूसरी बार सत्ता में आने के बाद ट्रंप ने संरक्षणवाद, व्यापार घाटा, अमेरिका में रोजगार सृजन और अमेरिकी प्रभुत्व कायम (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन-MAGA) करने का सिलसिला ही शुरू कर दिया. इसने ग्लोबलाइजेशन की जड़ें हिला दी.

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क्या ग्लोबलाइजेशन का दौर ढलान पर है. (फोटो- आजतक)
क्या ग्लोबलाइजेशन का दौर ढलान पर है. (फोटो- आजतक)

डिग्लोबलाइजेशन मतलब ग्लोबलाइजेशन का उलटा. कहने का मतलब है कि दुनिया के देशों के बीच व्यापार, निवेश और आपसी निर्भरता में कमी. एक देश दूसरे देश की तकनीक और टैलेंट पर बंदिशें लगाएगा, उसे अपने यहां आने से रोकेगा. ये खुली-खुली दुनिया कुछ बंद-बंद सी होने लगेगी. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को सिर्फ अपने देश का बिजनेस देखना है, वे दूसरे देशों पर हैवी टैरिफ (शुल्क) लगा रहे हैं. चीन को अपने मार्केट की चिंता है. कनाडा, ब्राजील समेत दूसरे देश अपने इंडस्ट्री को सेफगार्ड करने की नीतियां बना रहे हैं और इस बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर ग्लोबलाइजेशन के अंत की घोषणा कर लगभग बम ही फोड़ने वाले हैं. 

पूरी दुनिया के व्यावसायिक फलक पर घटित हो रहे इन घटनाक्रमों का क्या मतलब है? भारत इस से कैसे प्रभावित हो सकता है. क्या ट्रंप का टैरिफ वॉर दुनिया के देशों को आत्मनिर्भरता की ओर युद्ध स्तर पर काम करने को मजबूर करेगा. क्या ट्रंप का 'आर्थिक राष्ट्रवाद' और अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी वैश्वीकरण के पैरोकारों के लिए चिंता पैदा कर रही है. इन पहलुओं पर विचार जरूरी है. 

ग्लोबलाइजेशन के बरक्श डिग्लोबलाइजेशन को समझें

वैश्वीकरण यानी कि ग्लोबलाइजेशन दुनिया भर में वस्तुओं, ज्ञान, सूचना और सेवाओं का आवागमन है.  यह व्यापार, प्रौद्योगिकी, संचार, और यातायात के माध्यम से होता है. देश एक दूसरे से जुड़ते हैं, एक की जरूरत दूसरा पूरा करता है. वैश्विक सप्लाई लाइन का निर्माण होता है और दुनिया तरक्की के रास्ते पर जाती है. ग्लोबलाइजेशन की मलाई इसके सभी साझेदार खाते हैं. 1990 और 2000 के दशक में वैश्वीकरण अपने चरम पर पहुंचा. दुनिया भर में कई एजेंसियों ने इसमें रोल निभाया. 

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2016 का जिक्र बेहद जरूरी है

फिर 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने ट्रंप. अपनी चुनावी जरूरतों के लिए उन्होंने टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल किया और अमेरिकी जनता को बताया कि चीन, भारत, कनाडा जैसे देश अमेरिकी की 'उदार' नीतियों का बेजा फायदा उठा रहे हैं. उन्होंने इस मुद्दे को खूब हवा दी और सत्ता में आने पर इसका इलाज करने की बात कही. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी दूसरे देशों पर टैरिफ लगाया लेकिन ये उतना आक्रामक नहीं था. 

2016 में ही एक और बात हुई. ये वही साल था जब ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से अलग होने के लिए जनमत संग्रह हुआ. इसे ब्रेक्जिट कहा गया. ब्रिटेन की लगभग आधी जनता ने यूरोपियन यूनियन से अलग होने के पक्ष में वोट दिया और वैश्वीकरण जैसी परिघटना से ब्रिटेन के कदम पीछे खींचने का ऐलान कर दिया. 

यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद उसने अपने व्यापारिक नियम खुद तय किए. 

ट्रंप की नई पारी, अमेरिका फर्स्ट और आर्थिक राष्ट्रवाद का नारा 

2020 में अमेरिकी सरकार से ट्रंप की विदाई जितनी विवादास्पद रही 2024 में उनकी वापसी उतनी ही हंगामाखेज रही. ट्रंप ने चुनाव में खुले आम आर्थिक राष्ट्रवाद (Economic Nationalism) का डंका पीटा.  इसका मतलब है कि एक देश अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक चश्मे के बजाय राष्ट्रीय हितों के नजरिये से देखे. 

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ट्रंप का आर्थिक राष्ट्रवाद उनकी नीतियों का मूल आधार है, जो "अमेरिका फर्स्ट" (America First) की विचारधारा से प्रेरित है. यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो अमेरिकी आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखता है, जिसमें घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना, विदेशी आयात को सीमित करना और व्यापार घाटे को कम करना शामिल है. 

ट्रंप को उनके रणनीतिकारों ने बताया कि अमेरिका के व्यापार घाटे की एक बड़ी वजह उसके व्यापारिक साझेदारों द्वारा अमेरिका पर लगाया गया भारी भरकम टैरिफ है.

गौरतलब है कि हम डिग्लोबलाइजेशन की चर्चा करते हुए बार बार अमेरिका की चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है. विश्व की दूसरे नंबर की आर्थिक शक्ति चीन के साथ उसका सबसे ज्यादा व्यापार है. 

दूसरी बार सत्ता में आने के बाद ट्रंप ने संरक्षणवाद, व्यापार घाटे को कम करना, अमेरिका में रोजगार सृजन और अमेरिकी प्रभुत्व कायम (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन-MAGA) करने का सिलसिला ही शुरू कर दिया. 

इसके लिए उन्होंने टैरिफ वॉर का सहारा लिया. 

ट्रंप ने फरवरी 2020 को सभी देशों से आयात पर 10% बेसलाइन टैरिफ लागू किया गया. मार्च 2025 में इसे 20% तक बढ़ा दिया. अप्रैल 2025 में ट्रंप ने "रेसिप्रोकल टैरिफ" की घोषणा की. भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगाया गया. जबकि चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लाद दिया गया. इसके बाद चीन से अमेरिका आयात पर कुछ मामलों में कुल टैरिफ 54 फीसदी पहुंच गया.  

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अमेरिकी नीतियों के जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामानों पर 34% टैरिफ लगाया. 

कई दूसरे देशों जैसे यूरोपीय संघ, कनाडा, मेक्सिको, ब्राजील ने भी अमेरिका पर टैरिफ लगाया. भारत को भी अमेरिका से आयात पर टैरिफ कम करने पर मजबूर होना पड़ा. भारत और अमेरिका के बीच इस मसले पर वार्ता जारी ही है.

ट्रंप की इन नीतियों ने अतंरराष्ट्रीय व्यापार में उथल-पुथल मचा दिया. 

ट्रंप कायह दृष्टिकोण मुक्त व्यापार (Free Trade) और वैश्वीकरण (Globalization) के खिलाफ है, जो पिछले दशकों में अमेरिकी नीतियों का आधार रहा था. लेकिन ट्रंप इसे "ग्लोबलिस्ट" एजेंडा कहते हैं, जो उनके अनुसार अमेरिकी मध्यम वर्ग को नुकसान पहुंचाता है. 

ट्रंप बार-बार यही तर्क देते हैं कि अमेरिका को दशकों से "लूटा" जा रहा है. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि वे चीन के साथ ट्रेड सरप्लस को स्वीकार नहीं कर सकते हैं. 2024 में अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 295.4 बिलियन डॉलर था, और वे इसे शून्य करना चाहते हैं. 

यह भी पढ़ें: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चुभ रहा है चीन का ट्रेड सरप्लस, बोले- कोई डील नहीं करूंगा जब तक...

ट्रंप की रणनीति में न केवल चीन, बल्कि कनाडा (25% ऑटो टैरिफ), मैक्सिको, और भारत (26% रेसिप्रोकल टैरिफ), ब्रिटेन (10% टैरिफ) जैसे देश भी शामिल हैं. 

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अमेरिकी टैरिफ फुल फोर्स में 9-10 अप्रैल से लागू होने वाला है. लेकिन इससे पहले ही दुनिया के शेयर बाजार कांप रहे हैं. ट्रंप की आमद से अबतक दुनिया भर के निवेशकों का 45 लाख करोड़ रुपया डूब चुका है. 

ट्रंप द्वारा चीन पर टैरिफ लगाने की वजह से अमेरिकी बिजनेसमैन के लिए व्यापार महंगा हो गया है. इससे अमेरिका में चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स की कीमतें 15-20% बढ़ गईं. ट्रंप के जवाब में चीन ने 34%, कनाडा ने 25%, और यूरोपीय संघ ने 20% तक जवाबी टैरिफ लगाए. इससे वैश्विक व्यापार का प्रवाह भरभराकर गिर रहा है. 

टैरिफ वॉर की वजह से दुनिया का सप्लाई चेन टूट रहा है. कंपनियां सस्ते प्रोडक्ट की तलाश में दूसरे डिस्टेनेशन तलाश रही है. इससे सप्लाई प्रभावित हुई है.  2024 में अमेरिकी कंपनियों ने चीन से 30% कम आयात किया. 

घुटनों के बल शेयर बाजार

अप्रैल 2025 में टैरिफ घोषणा के बाद दुनिया के शेयर बाजार रेंग रहे हैं. 7 अप्रैल को  यह निवेशकों के बीच वैश्विक व्यापार पर भरोसे की कमी को दर्शाता है. 6-7 अप्रैल को दुनिया के शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई, जो ट्रंप के टैरिफ ऐलान और वैश्विक मंदी की आशंकाओं से प्रभावित हुई. डाउ जोन्स 4 अप्रैल को 2,231 अंक (5.5%) गिरा. नैस्डैक 4 अप्रैल को 5.8% गिरा. हांगकांग के शेयर बाजार में 10.7 प्रतिशत, सिंगापुर में 7.8 प्रतिशत और चीन में 6.5 प्रतिशत जापान के निक्की में 6 प्रतिशत और भारत में 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. 

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ग्लोबलाइजेशन के अंत की ओर ब्रिटिश पीएम का इशारा 

ब्रिटेन अब इस ओर आधिकारिक इशारा कर सकता है कि ग्लोबलाइजेशन का दौर खत्म होने वाला है. वित्त मंत्री के मुख्य सचिव डैरेन जोन्स ने प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर के हवाले से कहा है कि ग्लोबलाइजेशन का दौर खत्म हो गया है. 

बीबीसी के एक प्रोग्राम में जोन्स से पूछा गया कि क्या वैश्वीकरण - जिसके परिणामस्वरूप सस्ते फैशन, बिजली के सामान और अन्य उत्पादों के आयात में उछाल आया है - समाप्त हो गया है.

इसके जवाब में उन्होंने कहा, "हां, यह समाप्त हो गया है, प्रधानमंत्री ने आज सुबह खुद ऐसा कहा. "

"वैश्वीकरण जैसा कि हम पिछले कुछ दशकों से जानते आ रहे हैं, समाप्त हो गया है."

ब्रिटिश सरकार का ये कदम वैश्वीकरण की नाजुक स्थिति और इसके साइडे इफेक्ट के रूप में डीग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया की ओर इशारा करता है. बता दें कि ब्रिटेन जैसे देश अब "फ्रेंडशोरिंग" (केवल विश्वसनीय देशों के साथ व्यापार) को प्राथमिकता दे रहे हैं
 
प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कठोर रेसिप्रोकल टैरिफ और 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के बाद वैश्वीकरण के युग की समाप्ति की घोषणा करने वाले हैं, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध शुरू होने की स्थिति बन गई है और बाजार अनिश्चितता के अंधेरे में चले गए हैं. कीर स्टॉर्मर ब्रिटेन के उद्योगों लिए संरक्षणवादी नीतियों की घोषणा करने वाले हैं.  

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अगर स्टॉर्मर ऐसा करते हैं तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सिकुड़ने का एक और दौर शुरू होगा. 

ब्रिटिश पीएम कीर का बयान एक चेतावनी और रणनीतिक बदलाव का भी संकेत हो सकता है. वे कह रहे हों कि अब देशों को आत्मनिर्भरता और संरक्षणवाद अपनाना होगा.  उदाहरण के लिए, ब्रिटेन ने 2024 में भारत के साथ एक व्यापार समझौता शुरू किया, जिसमें टैरिफ 20% तक कम किए गए. अब नजरें उनके बयान पर है जहां उन्होंने कहा है कि वे ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए हर कदम उठाएंगे.

भारत पर असर

ट्रंप के टैरिफ वॉर और वैश्विक संरक्षणवाद के बढ़ते दौर में डिग्लोबलाइजेशन भारत के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों ला सकता है. भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात पर काफी निर्भर है. 2024 में भारत का कुल निर्यात 778 बिलियन डॉलर था, जिसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, और चीन बड़े बाजार थे. 

ट्रंप ने 2025 में भारत से आयात पर 26% "रेसिप्रोकल टैरिफ" लगाया, जिससे टेक्सटाइल, ज्वैलरी, और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्रों को 2-3 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है. अगर अमेरिका अपने बाजार को प्रोटेक्शन देता है तो भारत पर आर्थिक चोट पड़ सकती है. चीन ने भी अमेरिका से कम आयात के कारण भारत से सस्ते सामानों की मांग घटाई, जिससे स्टील और केमिकल निर्यात प्रभावित हुआ.

हालांकि जैसे-जैसे कंपनियां चीन से बाहर निकल रही हैं, भारत एक आकर्षक निवेश केंद्र बन रहा है. 2024 में भारत ने 15 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त FDI आकर्षित किया, खासकर मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और टेक्सटाइल के क्षेत्र में. 

ट्रंप के टैरिफ वॉर ने निश्चित रूप से डिग्लोबलाइजेशन को हवा दी है, लेकिन अभी भी ग्लोबलाइजेशन के ताकतवर कारक सक्रिय हैं. हालांकि ट्रंप की नीतियां वैश्विक व्यापार को बाधित कर रहा हैऔर सप्लाई चेन को बदल रहा है और देशों को आत्मनिर्भर होने के तरीके खोजने पर मजबूर कर रहा है.

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