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अमेरिकी चेतावनी के बाद रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा भारत? UAE ने भी दिया झटका

रूस पर लागू आर्थिक प्रतिबंध के बावजूद भारत भारी मात्रा में रूसी तेल आयात कर रहा है. लगातार पिछले छह महीनों से रूस भारत के लिए नंबर 1 तेल सप्लायर है. क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने के बाद भारत भी प्राइस कैप से ऊपर भुगतान कर रहा है. लेकिन अमेरिका ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सभी कंपनियां सुनिश्चित करें कि रूसी तेल का निर्यात प्राइस कैप के भीतर ही हो.

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो-रॉयटर्स)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो-रॉयटर्स)

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत रूस से भारी मात्रा में रियायती कीमतों पर कच्चा तेल खरीद रहा है. लेकिन अमेरिकी चेतावनी और यूएई के अपनी करेंसी दिरहम के इस्तेमाल की मनाही के बाद ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के बीच तेल व्यापार अंत की ओर है. रूस से तेल खरीदना भारत के लिए धीरे-धीरे ही सही लेकिन मुश्किलें खड़ी कर रहा है. पिछले सप्ताह अमेरिका की चेतावनी के बाद से भारत सरकार इस समस्या का हल खोज रही है. 

भारत के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले सप्ताह ही अमेरिका ने चेतावनी देते हुए कहा था कि हम इस बात से अवगत हैं कि कुछ रूसी तेल प्राइस कैप से ऊपर निर्यात किया गया है. सभी कंपनियां सुनिश्चित करें कि रूसी तेल का निर्यात प्राइस कैप के भीतर ही हो. यानी रूसी तेल 60 डॉलर प्रति बैरल या उससे कम कीमत पर खरीदा जाए. 

दरअसल, हाल ही में रूस और तेल उत्पादक देशों के संघ ओपेक प्लस ने तेल उत्पादन में प्रतिदिन लगभग 36 लाख बैरल की कटौती की घोषणा की है. इस घोषणा के बाद से ही तेल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ओपेक प्लस के इस कदम के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ गई है. ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने का असर यह हुआ है कि रूसी तेल की कीमत में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. इंडस्ट्री से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि भारत भी रूसी तेल का भुगतान निर्धारित प्राइस कैप से ऊपर कर रहा है. 

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की चेतावनी ने भारतीय रिफाइनरी कंपनियां को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वो रूसी तेल खरीदने से पहले इसके परिणाम पर विचार करें. वहीं, इंडियन पॉलिसीमेकर के लिए भी इसका संज्ञान लेना जरूरी हो गया है, ताकि प्राइस कैप के उल्लंघन के बाद होने वाले व्यापक असर से पहले इस समस्या का समाधान निकाला जाए. क्योंकि यूएई ने भी अपनी मुद्रा दिरहम को प्राइस कैप से ऊपर खरीदे जा रहे तेल के भुगतान में इस्तेमाल करने से भारत को मना कर दिया है.  

निर्यात पर लगा सकता है रोक

अमेरिकी समेत कई पश्चिमी देश दिसंबर 2022 से रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगाए हुए हैं. यानी 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर तेल आयात पर उस तेल के लिए कंपनियों को शिपिंग, बैंकिग, बीमा और वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी.

पेरिस स्थित मार्केट एनालिटिक्स फर्म Kpler के आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी 2023 से भारत औसतन 18 लाख बैरल प्रति दिन रूसी तेल आयात कर रहा है. भारत के लिए समस्या यह है कि पिछले कुछ दिनों से रूसी तेल की कीमत प्राइस कैप के उल्लंघन के दायरे में है. यूराल ग्रेड का कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार कर रहा है. जिससे भारत निर्यात होने वाले रूसी तेल में कमी आई है. चूंकि, अगले 45 से 60 दिनों तक कॉन्ट्रैक्ट हो चुके हैं. इसलिए इसका व्यापक असर जून से देखने को मिलेगा. 

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रूस से तेल खरीदने में भारत को क्या आ रहीं समस्याएं

भारत रूस से तेल खरीदने में दो तरह की समस्याओं का सामना कर रहा है. पहला- माइक्रो और दूसरा- मैक्रो. पहला तेल ट्रांसपोर्टिंग के फिजिकल पार्ट से संबंधित हैं. दूसरा-ऊर्जा सुरक्षा, रुपये से कारोबार में समस्याएं एवं पश्चिमी देशों के साथ रिलेशन मेंटेन रखना. प्रतिदिन रूस से लगभग 20 लाख बैरल तेल खरीदना धीरे-धीरे भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है.

रूस से व्यापार करने में सबसे ज्यादा समस्याएं भुगतान से संबंधित हैं. चूंकि, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लागू है. इसलिए रूस को भुगतान करने के लिए भारत को अन्य मुद्राओं का इस्तेमाल करना पड़ता है.

वर्तमान में भारतीय रिफाइन कंपनियां रूसी तेल के भुगतान के लिए दिरहम मुद्रा का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से अमेरिका और ब्रिटेन ने यूएई पर दबाव बनाया है. जिसके बाद यूएई ने भारतीय रिफाइन कंपनियों को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि उनके बैंकों या मुद्रा का उपयोग प्राइस कैप से अधिक कीमत वाले रूसी तेल के भुगतान के लिए नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, अमेरिका ने यूएई से रूसी कंपनियों और बैंकों को लाइसेंस देने से भी मना करने के लिए कहा है. 

हालांकि, भारत ने कोशिश की कि रूस को रुपए में भुगतान किया जाए. लेकिन रूसी बैंक भारतीय रुपये में व्यापार करने से कतराते हैं क्योंकि भारत से रूस का आयात उस अनुपात में नहीं है, जिस अनुपात में रूस से भारत का. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पिछले सप्ताह एक एवेंट में कहा था कि रूस के साथ तेल व्यापार में आने वाली प्रमुख समस्याओं में से प्रमुख समस्याएं- भुगतान, लॉजिस्टिक और सर्टिफिकेशन हैं.

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अमेरिकी चेतावनी के बाद भारतीय तेल कंपनियां सतर्क

भारत ने इससे पहले रूसी तेल पर लगाए गए प्राइस कैप को मानने से इनकार कर दिया था. लेकिन वर्तमान में प्राइस कैप पर जी-7 देशों एवं अमेरिका की बढ़ती निगरानी ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है. दिसंबर 2022 में जी-7 देशों ने लॉडिंग पॉइंट पर 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक कीमत वाले रूसी तेल के निर्यात पर रोक लगा दी थी.

इंडस्ट्री से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की ओर से ढील के बाद भारत और चीन ने फिर से व्यापार शुरू कर दिया था. लेकिन पिछले सप्ताह अमेरिकी ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (OFAC) ने प्राइस कैप को लेकर चेतावनी दी है. यह पहली बार है, जब OFAC ने चेतावनी दी है. 

OFAC ने सख्त लहजे में कहा है कि सभी ट्रांसपोर्टर इस बात का खास ख्याल रखें कि तेल बाजार के रिकॉर्ड और सत्यापन को बनाए रखें, जिससे प्राइस कैप के उल्लंघन और उसके पेनल्टीज से बचा जा सके. अमेरिका की यह चेतावनी इसलिए अहम है क्योंकि प्राइस कैप में शिपिंग, माल ढुलाई और बीमा लागत शामिल नहीं हैं. ऐसे में संभव है कि रूसी तेल की असल कीमत छुपाने के लिए तेल कंपनियां इसका इस्तेमाल कर सकती हैं.

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अमेरिका की चेतावनी से भारतीय बैंक भी चिंतित हैं. बैंकिंग सेक्टर से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि यह संभव है कि बिल में रूसी क्रूड लागतों के ब्रेकअप भुगतान को भी सत्यापित करने के लिए कहा जा सकता है. देश के दो बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा ने प्राइस कैप से ऊपर लेनदेन करने से इनकार कर दिया है.

भारत-रूस व्यापार

तेल व्यापार के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार उच्चतम स्तर पर है. पिछले साल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 35 अरब डॉलर का रहा. लेकिन इसमें भारत का निर्यात 10 प्रतिशत से भी कम है. यही कारण है कि रूस रुपये में व्यापार करने के बजाय डॉलर या दिरहम में भुगतान के लिए कहता है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में स्पष्ट रूप से कहा है कि रियायती रूसी तेल खरीद को जारी रखने के लिए जरूरी है कि रूस भुगतान माध्यम में सुधार करे. लेकिन सवाल यही है कि यूएई की ओर से मना करने के बावजूद अगर रूस भारत के लिए भुगतान प्रणाली में सुधार नहीं करता है, तो भारत कब तक अमेरिका और पश्चिमी देशों की चेतावनी को नजरअंदाज कर क्रिएटिव तरीके (अन्य मुद्राओं के माध्यम) से रूसी तेल खरीदता रहेगा.  

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