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क्यों अमेरिका और रूस का तनाव सांप-नेवले की दुश्मनी जितना पक्का है? समझिए सबकुछ

यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की. सालभर पहले रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद ये जेलेंस्की की पहली विदेश यात्रा है. खबर है कि हथियारों की खरीद के लिए अमेरिका उन्हें बड़ी रकम देगा. वैसे सोचने की बात है कि रूस-यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका क्यों परेशान है, और है भी तो अकेले यूक्रेन की मदद क्यों कर रहा है!

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अमेरिका और रूस में तनाव का लंबा इतिहास है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
अमेरिका और रूस में तनाव का लंबा इतिहास है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

ताजा मामलों को याद करें तो वैक्सीन बनाने के समय अमेरिका बार-बार रूस पर फॉर्मूला चुराने का आरोप लगा रहा था. इससे पहले आखिरी राष्ट्रपति चुनाव में रूस के प्रेसिडेंट पुतिन पर आरोप लग चुका कि वो अमेरिका में अपनी पसंद की सरकार चाहते हैं. यहां तक कि कोविड की पहली लहर के दौरान, जब दुनिया में लोग मर रहे थे, दोनों देश मिसाइलों की बातें कर रहे थे. यानी साफ है कि दोनों के बीच तनाव है. 

ये एक तरह से कोल्ड वॉर की स्थिति है, जिसमें आसपास के छोटे देशों की लड़ाइयों में मदद करके दोनों देश एक-दूसरे का नुकसान किया करते. शीत युद्ध वो स्थिति है, जिसमें देश एक दूसरे पर सीधा हमला नहीं करते, लेकिन तनाव रहता है. इस टर्म को सबसे पहले लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने लिखा-बोला था, जिसके बाद ही ये चलन में आ गया. 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने लगा. इसकी वजह राजनैतिक-आर्थिक विचारधारा थी. अमेरिका पूंजीवाद पर यकीन करता, जबकि सोवियत संघ कम्युनिस्ट विचारधारा वाला था. दोनों को यकीन था कि उनके सिस्टम से दुनिया ज्यादा सही ढंग से चल सकेगी. धीरे-धीरे ये बात भी तनाव की वजह बनने लगी. 

america russia tension amid ukraine and russia conflict
रूस ने पिछले साल यूक्रेन पर हमला बोला, जो युद्ध अब तक चला आ रहा है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

दोनों देशों को लगता था कि वे अपनी ताकत का इस्तेमाल दूसरे छोटे देश पर असर डालने के लिए कर रहे हैं. वॉर के बाद सोवियत संघ और अमेरिका सबसे ताकतवर देश बचे थे. दोनों ही बाकी दुनिया को अपनी तरह से चलाने की कोशिश करने लगे. यहां तक कि ब्रिटेन, जिसे दोनों ही देश पहले साम्राज्यवादी मानते, अमेरिका ने उससे हाथ मिला लिया और ब्रिटेन, यूरोप के साथ मिलकर नाटो बना लिया. दूसरी तरफ सोवियत संघ ने ईस्टर्न यूरोप के साथ वॉरसा समझौता कर लिया. इससे दुनिया बिना युद्ध के ही दो खेमों में बंट गई. 

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ये तनाव का चरम था. दूसरा युद्ध खत्म होने के चलते कोई भी देश सीधे-सीधे हमला करने की स्थिति में नहीं था, लेकिन वे खुद को ज्यादा ताकतवर बनाने की कोशिश करने लगे. जैसे अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने की होड़ लग गई. रूस-अमेरिका दोनों ही स्पेस पर कब्जा चाहते. दोनों ही दनादन परमाणु हथियार बनाने लगे.

एक और समीकरण बना, जिसका शिकार हुए आर्थिक-राजनैतिक तौर पर कमजोर देश. तब ज्यादातर अफ्रीकी देशों में लगातार गृह युद्ध चल रहा था. दोनों बड़े देश इनमें शांति लाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने लगे, लेकिन शांति तो क्या आई, उल्टे सेनाएं एक-दूसरे से भिड़ने लगीं. अमेरिका अब घोषित तौर पर सुपर पावर था. रूस अब बीते जमाने की बात हो चुका था, और अमेरिकी पूंजीवाद सबसे ऊपर था.

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अमेरिका-रूस के बीच सुपर पावर बनने की लड़ाई एक बार फिर शुरू हो चुकी लगती है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

व्लादिमिर पुतिन के सत्ता में आने के बाद से रूस एक बार फिर पुराने अंदाज में खड़ा होने की कोशिश करने लगा. सीरिया में अमेरिकी कार्रवाई के दौरान रूस  सीरिया की मदद करने लगा ताकि अमेरिका को झटका लग सके. अब अमेरिका ने भी यूक्रेन की मदद करके रूस को उसी अंदाज में पटखनी देने की कोशिश की है. 

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अमेरिका का वैसे रूस से ही तनाव नहीं, कई और देश भी हैं, जो अंकल सैम को परेशान देखना पसंद करेंगे. चीन इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. ध्यान दें तो पाएंगे कि चीन अमेरिका पर, या अमेरिका भी चीन पर आरोप लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते. कोविड संक्रमण के बाद अमेरिका लंबे वक्त तक कहता रहा कि चीन ने जानबूझकर लैब में वायरस बनाया, ताकि जैविक हमले से दुनिया को तबाह कर सके.

इधर नॉर्थ कोरिया भी अमेरिका को पसंद नहीं करता और कई बार परमाणु हथियारों का रौब दिखा चुका है. हालात ये हैं कि उस देश में नीली जींस या रेड लिपस्टिक तक लगाने की मनाही है क्योंकि कथित तौर पर ये अमेरिका का चलन है. बीच में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच तनाव घटाने की पहल की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी. वैसे कई छोटे देश भी हैं, जो अमेरिका की पूंजीवादी विचारधारा के खिलाफ बयानबाजियां करते रहे. वेनेजुएला और क्यूबा इनमें सबसे ऊपर हैं. दोनों ही देश, खासकर वेनेजुएला आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर है और राजनैतिक अस्थिरता भी है, लेकिन अमेरिका के खिलाफ ये एक हो जाते हैं. 

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