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क्या खलील हक्कानी की हत्या के बाद अफगानिस्तान में नई लड़ाई छिड़ेगी? तालिबान और ISKP की क्या है दुश्मनी

तालिबान के प्रवक्ता ने पुष्टि की है कि हक्कानी की हत्या इस्लामिक स्टेट (आईएस) द्वारा की गई है. खलील हक्कानी का परिवार तालिबान की सैन्य गतिविधियों में अहम भूमिका निभा चुका है. सुरक्षा स्थितियों में सुधार के बावजूद, देश में लगातार आत्मघाती हमले और बम विस्फोट होते रहते हैं, जिनमें से कई का दावा आईएसकेपी ने किया है.

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तालिबान और आईएसकेपी की लड़ाई
तालिबान और आईएसकेपी की लड़ाई

अफगानिस्तान में तालिबान को अब एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. वो चुनौती है इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत की. इस आतंकी समूह ने अफगानिस्तान में तालिबान के रिफ्यूजी मिनिस्टर खलील-उर-रहमान हक्कानी पर आत्मघाती हमले किए और उन्हें मौत के घाट उतार दिया. समूह ने खुद इसकी जिम्मेदारी ली है.

इस्लामिक स्टेट खुरासान (आईएसआईएस-के) के रूप में उभर रहा आतंकी संगठन आईएसआईएस का क्षेत्रीय सहयोगी है और तालिबान के लिए प्रमुख सैन्य खतरा बन गया है. अफगानिस्तान में इसके 4,000 तक सदस्य होने का अनुमान है.

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तालिबान और आईएसके के अलग मकसद

तालिबान और आईएसआईएस-के के बीच दुश्मनी की जड़ें उनके अफगानिस्तान के लिए अलग-अलग मकसदों में छिपी हुई हैं. तालिबान जहां देश पर अपना कब्जा मजबूत करना चाहता है, तो वहीं आईएसआईएस-के अपना इस्लामी खलीफा स्थापित करने और तालिबान के अधिकार को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है.

हाल ही में, आईएसआईएस-के द्वारा तालिबान के वरिष्ठ कमांडर रहमान हक्कानी की हत्या ने अफगानिस्तान में एक नए युद्ध के संभावनाओं को लेकर चिंता बढ़ा दी है. हक्कानी का संबंध हक्कानी नेटवर्क से था, जो तालिबान नेतृत्व के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है.

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आंतरिक युद्ध छिड़ने का खतरा

संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान और आईएसआईएस-के के बीच जारी हिंसा की रिपोर्ट दी है. तालिबान आईएसआईएस-के के ठिकानों पर हमले और कार्रवाई करता जा रहा है. यह संघर्ष दोनों गुटों के बीच जारी रहने की संभावना को दर्शाता है, जिससे एक नए आंतरिक युद्ध की संभावनाएं बनी हुई हैं.

यह भी ध्यान देना अहम है कि अल-कायदा और तालिबान के बीच संबंध भी तनाव की वजह बनी हुई है. 2011 में ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल-कायदा ने उसकी हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया था, जो अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति के लिए और भी खतरा साबित हो सकता है.

तालिबान और आईएसके के बीच दरार

तालिबान और इस्लामिक स्टेट-खुरासन प्रांत (आईएस-के) के बीच लड़ाई पुरानी है. 2015 से चलता आ रहा यह संघर्ष न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई है, बल्कि अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता को कायम रखने की भी जंग है.

2019 में तालिबान ने पूर्वी अफगानिस्तान में आईएस-के के गढ़ को तहस-नहस कर दिया था, लेकिन 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया, तो आईएस-के ने नई एनर्जी के साथ वापसी की, जिससे न सिर्फ उन्होंने यहां अपनी ताकत बढ़ाई, बल्कि क्षेत्र में हालात को और भी खराब कर दिया.

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खलील हक्कानी का परिवार और अफगानिस्तान

तालिबान के प्रवक्ता ने भी पुष्टि की कि खलील हक्कानी को इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने मौत के घाट उतारा है. खलील हक्कानी का परिवार अफगानिस्तान की राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों में अहम स्थानों पर रहा है. उनके भाई जलालुद्दीन हक्कानी एक मशहूर गुरिल्ला नेता रहे हैं, जिन्होंने 1980 के दशक में सोवियत सैनिकों के खिलाफ जंग लड़ी थी.

यह भी पढ़ें: तालिबान राज में अब महिलाओं की नर्सिंग और मिडवाइफरी की पढ़ाई पर बैन, अब तक इन चीजों पर लगी है पाबंदी

जलालुद्दीन ने हक्कानी नेटवर्क की स्थापना की थी, जिसने तालिबान की 20 साल की विद्रोही गतिविधियों में कई हमलों को अंजाम दिया था. जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी फिलहाल तालिबान सरकार में गृह मंत्री हैं. उनके नेतृत्व में हक्कानी नेटवर्क ने तालिबान की सरकार में एक अहम स्थान हासिल किया है.

बताया जाता है कि तालिबान रूल के तहत अफगानिस्तान में सुरक्षा हालातों में बहुत हद तक सुधार हुआ है. अमेरिकी सैन्य तैनाती के मुकाबले अब लोग सड़कों पर निकल सकते हैं, पार्टियां और नाइटआउट कर सकते हैं. वे शाम के समय अपने घर से चौक-चौराहों पर बैठा करते हैं.

मसलन, इन सुधारों के बीच देश में आत्मघाती हमले और बम विस्फोट होने का सिलसिला जारी है. हालिया हमले समेत पहले भी कई हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट की क्षेत्रीय शाखा, इस्लामिक स्टेट खोरोसान प्रांत (आईएसके) ने ली है. आईएसके और तालिबानी एक-दूसरे के विरोधी हैं, और वे लगातार तालिबानी नेताओं को निशाना बना रहे हैं.

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