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सपा का OBC कार्ड... बड़े पदों से ब्राह्मण-ठाकुर Out, बीजेपी की दिक्कतें बढ़ाएगा अखिलेश का प्लान!

समाजवादी पार्टी ने रविवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया है. जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय सचिवों के नामों का ऐलान हुआ है. पार्टी ने जिन 14 राष्ट्रीय महासचिवों का ऐलान किया है, उसमें एक भी ब्राह्मण या ठाकुर चेहरा नहीं है. संगठन में इस बार अखिलेश यादव ने ओबीसी को भरपूर जगह दी है.

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अखिलेश यादव एक बार फिर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं
अखिलेश यादव एक बार फिर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं

समाजवादी पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है. अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी पिछड़ों-दलितों और मुसलमानों के ही समीकरण पर राजनीति करेगी. पार्टी में मुसलमान और यादवों के अलावा अब ओबीसी का भी बोलबाला होगा. साथ ही यह भी साफ हो गया है कि अब समाजवादी पार्टी की राजनीति में ब्राह्मण और ठाकुरों के लिए वह जगह नहीं बची है, जो पहले कभी हुआ करती थी. दरअसल, रविवार को पार्टी ने संगठन के पदों पर नामों का ऐलान कर दिया है. जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष, प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय सचिवों के नामों का ऐलान हुआ है.

पार्टी ने जिन 14 राष्ट्रीय महासचिवों का ऐलान किया है, उसमें एक भी ब्राह्मण या ठाकुर चेहरा नहीं है. वहीं मुस्लिम चेहरों में भी सिवाय आजम खान के किसी अन्य चेहरे को राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर जगह नहीं मिली है, जबकि इस बार अखिलेश यादव ने ओबीसी को भरपूर जगह दी है. रवि प्रकाश वर्मा, स्वामी प्रसाद मौर्य, विश्वंभर प्रसाद निषाद, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर हरेंद्र मलिक नीरज चौधरी ऐसे नाम हैं, जिन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है.

दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को मिली जगह

ओबीसी की सभी बड़ी जातियों को राष्ट्रीय संगठन में बड़े पद दिए गए हैं. मौर्य, राजभर निषाद और कुर्मी जाति के अलावा जाट नेताओं को भी राष्ट्रीय संगठन पदों पर सपा ने जगह दी है, जबकि पासी, जाटव जैसी दलित जातियों को भी जगह मिली है. समाजवादी पार्टी ने भी इस बार बाहर से आए नेताओं को भरपूर स्थान दिया है, वो चाहे बीजेपी से आए नेता हो या फिर बीएसपी से आए हुए नेता, या फिर कांग्रेस से. इस बार संगठन में उन्हें भी भरपूर जगह दी गई है.

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शिवपाल को भी मिली जगह

पार्टी की तरफ से शिवपाल यादव को भी पद दिया गया है. उन्हें राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया है. जानकारों की मानें तो मुलायम सिंह के देहांत के बाद मैनपुरी सीट से डिंपल यादव को जिताने में साथ देने के लिए शिवपाल को भतीजे अखिलेश ने ये तोहफा दिया है. वहीं अखिलेश यादव एक बार फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं, जबकि किरनमय नन्दा राष्ट्रीय उपाध्य और रामगोपाल यादव राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव बनाए गए हैं.

बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है नया समीकरण

समाजवादी पार्टी के संगठन में हुए बदलाव ने यह लगभग साफ कर दिया है कि अब समाजवादी पार्टी के भीतर ठाकुर और ब्राह्मणों को पहले जैसी प्रमुखता नहीं रही, जबकि समाजवादी पार्टी अपने एमवाई समीकरण के साथ ओबीसी और दलितों को लेकर नए समीकरण बना रही है, जो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. माना जा रहा है कि 2024 लोकसभा में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को रोकने के लिए ये रणनीति तैयार की गई है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अखिलेश इस थ्योरी पर चल रहे हैं कि ब्राह्मण और ठाकुरों का लगभग अधिकांश वोट बीजेपी के पास ही जाएगा और इस पर अधिक मेहनत करने से पार्टी को कोई खास फायदा नहीं मिलने वाला है. इसके लिए सपा का फोकस अब मुस्लिम, यादव, ओबीसी और दलित वर्ग पर है.

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यूपी सबसे महत्वपूर्ण राज्य 

लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है. कारण, यहां से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट आती हैं. इसलिए राजनीति में कहावत भी है कि यूपी से ही दिल्ली का सफर तय होता है. यानी कि जिस पार्टी के पास यूपी में सबसे अधिक सीटें हों, उसका रास्ता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए खुद बन जाता है. वर्तमान में बीजेपी के पास यूपी की सबसे अधिक लोकसभा सीटें हैं. 2019 में चुनाव बीजेपी को 64 सीटें मिली थीं, वहीं दो सीट पर उसके सहयोगी अपना दल (एस) का कब्जा है, जबकि 10 सीटें बसपा, तीन सीटें सपा और एक पर कांग्रेस के पास है.

ये है यूपी का जातीय समीकरण

यूपी के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है. प्रदेश में सवर्ण जातियां 18 फीसदी हैं, जिसमें ब्राह्मण 10 फीसदी हैं. वहीं, पिछड़े वर्ग की संख्या 40 फीसदी है, जिसमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी सैथवार आठ फीसदी, मल्लाह पांच फीसदी, लोध तीन फीसदी, जाट तीन फीसदी, विश्वकर्मा दो फीसदी, गुर्जर दो फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7 फीसदी है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 22 फीसदी हैं और मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है.

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