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आजम खान की भाभी का निधन, अंतिम संस्कार के लिए पैरोल की गुहार, अब रामपुर प्रशासन के जवाब का इंतजार

रामपुर जेल में बंद समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को भाभी के निधन के बाद अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल मांगी गई है. यह आवेदन भांजे फरहान खान ने जिलाधिकारी को दिया, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं आया है, जिससे परिवार और अधिवक्ताओं में निराशा बनी हुई है.

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आजम और अब्दुल्ला के लिए पैरोल की मांग की गई है ( File PHOTO:PTI)
आजम और अब्दुल्ला के लिए पैरोल की मांग की गई है ( File PHOTO:PTI)

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान को रामपुर जेल से पैरोल पर छोड़े जाने की मांग की गई है. यह मांग आजम की भाभी के निधन के बाद अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए की गई, लेकिन अब तक जिला प्रशासन की ओर से इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है.

आजम खान और अब्दुल्ला आजम खान इस समय सात साल की सजा के बाद रामपुर जेल में बंद हैं. इसी बीच आजम खान के बड़े भाई, सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर मोहम्मद शरीफ खान की पत्नी का निधन हो गया. परिवार चाहता था कि आजम खान और उनके बेटे अंतिम संस्कार में शामिल हो सकें. इसी उद्देश्य से पैरोल की दरख़ास्त जिलाधिकारी रामपुर को दी गई. यह आवेदन आजम खान के भांजे फरहान खान की ओर से लगाया गया, जिसे उनके वकील और रामपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सतनाम सिंह मट्टू ने प्रस्तुत किया. आवेदन में कहा गया कि मृतका आजम खान की सगी भाभी और अब्दुल्ला आजम की सगी ताई थीं. परिवार की ओर से अनुरोध किया गया कि दोनों को सीमित समय के लिए, पुलिस निगरानी में, अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए.

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दरखास्त में यह भी स्पष्ट किया गया कि पैरोल केवल चार घंटे के लिए मांगी गई है, दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक, ताकि दोनों अंतिम संस्कार में शामिल होकर वापस जेल लौट सकें. अधिवक्ता का कहना है कि यह परिवार के सदस्य का अंतिम संस्कार है और उसमें शामिल होना एक मानवीय और संवैधानिक अधिकार है.

अधिवक्ता सतनाम सिंह मट्टू के अनुसार, जिलाधिकारी रामपुर ने आवेदन मिलने के बाद यह कहा था कि इस पर प्रयास किया जाएगा. हालांकि, इसके बाद न तो कोई लिखित आदेश जारी हुआ और न ही कोई स्पष्ट सूचना दी गई. उन्होंने बताया कि बाद में संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन फोन कॉल्स का भी कोई जवाब नहीं मिला. इस मामले में प्रशासन की चुप्पी को लेकर सवाल उठने लगे हैं. अधिवक्ता का कहना है कि अगर पैरोल नहीं दी जा सकती, तो प्रशासन को उसका कारण स्पष्ट रूप से बताना चाहिए. अंतिम संस्कार जैसे संवेदनशील मामले में निर्णय में देरी परिवार के लिए मानसिक पीड़ा का कारण बन रही है. अब सभी की निगाहें जिला प्रशासन के निर्णय पर टिकी हैं.

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