पितृ पक्ष (Pitru Paksha) हिंदू कैलेंडर में 16-चंद्र दिनों की अवधि होती है. इस अवधि में हिंदू अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं (Pay Homage to Ancestors in Pitru Paksha). भारत में इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है जैसे पितृ पोक्खो, सोरा श्राद्ध, कनागत, महालय, अपरा पक्ष और अखाडपाक, पितृ पांधारवड़ा.
पितृ पक्ष के दैरान हिंदुओं में शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इस समय के दौरान किए गए मृत्यु संस्कार को श्राद्ध या तर्पण के रूप में जाना जाता है. दक्षिणी और पश्चिमी भारत में भाद्रपद, सितंबर महीने के हिंदू चंद्र महीने के दूसरे पक्ष में पड़ता है और गणेश उत्सव के तुरंत बाद पखवाड़े के बाद आता है. यह प्रतिपदा से शुरू होता है. यह अमावस्या के दिन समाप्त होता है जिसे सर्वपितृ अमावस्या, पितृ अमावस्या, पेड्डला अमावस्या, महालय अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. पितृ पक्ष की समाप्ति और मातृ पक्ष की शुरुआत को महालय कहा जाता है (Pitru Paksha for 16 Lunar Days).
अधिकांश वर्षों में, इस अवधि के दौरान सूर्य उत्तरी से दक्षिणी गोलार्ध की ओर दिशा बदलता है.
पितृ पक्ष में लोग पितरों की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराते है और कुछ परिवार भागवत पुराण और भगवद गीता धर्मग्रंथों का अनुष्ठान भी कराते हैं. कई स्थानों पर साथ ही, पूर्वजों की भलाई के लिए प्रार्थना करने के लिए पुजारियों को उपहार भेंट करने की भी परंपरा है (Pitru Paksha, Conduct Ritual Recitals).
Pitru Paksha 2021: श्राद्ध के दौरान कई लोगों को अपने पूर्वजों के आस-पास होने का आभास भी होता है. जबकि कुछ लोगों के पितृ सपने में आते हैं. इस बार पितृपक्ष 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक रहने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं कि सपने में पूर्वजों के आने का क्या मतलब होता है.
परंपरा और आधुनिकता की टकराहट से एक बार फिर गयाजी सुर्खियों में है. ऑनलाइन पिंडदान पर गयापालों का तर्क है कि पिंडदान जैसी गंभीर धार्मिक क्रिया किसी और के द्वारा या वर्चुअल माध्यम से संभव ही नहीं है. यहां यह जानना दिलचस्प है कि गयाजी और पिंडदान का महत्व रामायण-महाभारत समेत कई कथाओं में आया है. गरुण पुराण तो इस प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन दर्ज है.
Matamah Shraddha 2025: मातामह श्राद्ध दिवंगत नाना-नानी के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए किया जाता है. इस साल यह श्राद्ध 22 सितंबर को किया जाएगा. इस दिन से ही शारदीय नवरात्र भी प्रारंभ हो रहे हैं.
सर्वपितृ श्राद्ध के साथ पितृ पक्ष का समापन होता है, जिसमें पितर लोक में स्थापित होकर निवास करते हैं. इस प्रक्रिया में सूर्यदेव की पहली सात किरणें महत्वपूर्ण साधन होती हैं. श्राद्ध कर्म में ज्योतिष, आयुर्वेद और योग की प्रक्रियाएं भी शामिल हैं, जो पितृ दोष और नाड़ी दोष के निदान में सहायक हैं.
आज साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लग रहा है, जिसके साथ सूतक काल भी जुड़ा है. सूतक काल जन्म और मृत्यु के समय लगने वाला अशुद्धि काल है, जो शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है. जन्म के समय नाल काटने जैसी सूक्ष्म हिंसा और मृत्यु के समय दाह संस्कार में होने वाली अशुद्धि के कारण सूतक और पातक लगते हैं.
Sarva Pitru Amavasya 2025: कल, यानी 21 सितंबर को साल 2025 के पितृपक्ष का समापन हो रहा है. हर साल पितृपक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है. मान्यता है कि इस दिन राशिनुसार कुछ चीजों का दान करना बेहद शुभ होता है.
पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्व पितृ अमावस्या पर इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है. नियमित पाठ से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और पितरों को शांति मिलती है.
भारतीय संस्कृति में पितृ देवताओं को अत्यंत पवित्र माना जाता है जो जीवन और सृष्टि के आधार हैं. पुराणों और शास्त्रों के अनुसार पितरों के विभिन्न प्रकार हैं, जिनका संबंध वर्णों और जातियों से है.
पितृपक्ष सनातन परंपरा में पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए 16 दिनों की पितृपूजा का विधान है जिसमें पिंडदान और तर्पण शामिल हैं. ऋग्वेद में पितृ यज्ञ का विस्तार से उल्लेख मिलता है, जहां पितरों को देवतुल्य माना गया है और उनसे वंशजों की रक्षा, समृद्धि एवं शक्ति की प्रार्थना की गई है.
Pitru Paksha 2025: 21 सितंबर पितृ पक्ष का आखिरी दिन है. इस दिन को सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन कुछ खास नियमों का पालन करना बेहद जरूरी माना गया है, जानें उन नियमों के बारे में.
तर्पण किए जाने में तिल और कुशा का प्रयोग सबसे जरूरी होता है. कहते हैं कि ये दोनों ही वस्तुएं पूर्वजों की आत्माओं को सीधे मोक्ष की ओर ले जाती हैं. सवाल है कि आखिर ये दोनों ही वस्तुएं कैसे मोक्ष पाने में सहायता करती हैं.
Pitru Paksha 2025: आपने अक्सर सुना होगा कि कुछ लोगों को सपने में अपने पितृ दिखाई देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सपने में पितरों का दिखना शुभ होता है या अशुभ. आइए आज आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
Chaturdashi shradh in pitru paksha 2025: कल 20 सितंबर को चतुर्दशी श्राद्ध किया जाएगा. शनिवार के दिन पड़ने से इसका महत्व और बढ़ गया है. आइए जानते हैं कि चतुर्दशी तिथि पर किन पितरों का श्राद्ध किया जाता है.
Pitru Paksha 2025: इस साल पितृपक्ष का समापन 21 सितंबर, रविवार को होगा. हिंदू धर्म में इन 16 दिनों का खास महत्व होता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान कुछ उपायों को अपनाने से जातक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
भारतीय संस्कृति में पितरों की पूजा, श्राद्ध और तर्पण की प्राचीन परंपरा है जो जीवन में सुख-शांति के लिए जरूरी मानी जाती है. नारायण बलि विशेष रूप से उन आत्माओं के लिए किया जाता है जो प्रेत की अवस्था में भटक रही हों, यह कर्म मृतकों की मुक्ति और परिवार में शांति लाने के लिए महत्वपूर्ण है.
Shukra Pradosh Vrat 2025 Date: 19 सितंबर को शुक्र प्रदोष व्रत है. यह दिन बेहद खास है, क्योंकि त्रयोदशी के साथ-साथ इस दिन रात में भद्रा काल भी रहने वाला है. आइए जानते हैं कि शुक्र प्रदोष व्रत में शिव पूजा का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय क्या रहेगा.
Trayodashi Shradh 2025: 19 सितंबर को त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध है. वैसे तो श्राद्ध का हर दिन बेहद खास होता है. लेकिन इस बार का त्रयोदशी तिथि के श्राद्ध पर तीन पर्वों का संगम हो रहा है, जो इसे और खास बना रहा है. दरअसल, त्रयोदशी तिथि पर शुक्र प्रदोष व्रत के साथ मासिक शिवरात्रि का पावन पर्व भी मनाया जाएगा.
Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष चल रहे हैं और इनका समापन 21 सितंबर को होगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं. भारत में पिडंदान और तर्पण करने के लिए कई प्रमुख तीर्थस्थल प्रसिद्ध हैं.
Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष चल रहा है. हिंदू धर्म में इस पावन काल का खास महत्व माना गया है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण करते हैं. साथ ही कौवे को भी भोजन अर्पित करते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि श्राद्ध के वक्त लोग कौवे को खाना क्यों देते हैं.
बुंदेलखंड के गांवों में पितृपक्ष के दौरान किशोर लड़कियां माबूलिया नामक खेल खेलती हैं, जो पितरों के तर्पण का प्रतीक है। यह परंपरा झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर आदि में प्रचलित है. इस खेल को तर्पण का ही एक तरीका माना जाता है.
भारतीय दर्शन और पुराणों के अनुसार, पितरों का निवास स्थान भुवर्लोक है, जो आकाश और पृथ्वी के बीच सूक्ष्म प्राणियों का लोक माना जाता है. पितरों का स्थान उनके कर्मों पर निर्भर करता है, जो उन्हें विभिन्न लोकों में पुनर्जन्म या स्थान दिलाता है.