Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समय पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति और मुक्ति के लिए बेहद पवित्र माना गया है. इस दौरान श्राद्ध और तर्पण की विशेष परंपरा है. इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक रहने वाला है. माना जाता है कि इन दिनों पितरों की आत्मा पृथ्वी लोक पर आती है और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और भोजन का अर्पण स्वीकार करती है. पितरों के श्राद्ध के बाद भोजन का एक अंश कौवे के लिए भी निकालकर रखा जाता है. क्या आप जानते हैं कि लोग ऐसा क्यों करते हैं?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कौवे का संबंध सीधे पितरों से जोड़ा जाता है. शास्त्रों में कौवे को पितृदूत, यानी पितरों का संदेशवाहक माना गया है. जब पितृपक्ष में कौवे को भोजन का अंश अर्पित किया जाता है, तो यह माना जाता है कि वह भोजन हमारे पूर्वजों तक पहुंच रहा है. मान्यता है कि यदि श्राद्ध के दिन कौवा आकर भोजन कर ले, तो पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
रामायण से जुड़ी कौवे की कथा
कौवे से जुड़ा एक रोचक प्रसंग रामायण में मिलता है, जिसे ‘काकासुर कथा’ के नाम से जाना जाता है. दरअसल, वनवास के समय श्रीराम और माता सीता चित्रकूट पर्वत पर निवास कर रहे थे. तब इंद्रदेव का पुत्र जयंत एक बार कौवे का रूप धारण करके आया और उसने माता सीता के पैर में चोंच मार दी. इस कारण माता सीता के पैर में घाव हो गया.
यह देखकर श्रीराम बेहद क्रोधित हो गए. उन्होंने पास में पड़े हुए एक तिनके को उठाया और उसे ब्रह्मास्त्र का रूप देकर कौवे की ओर फेंका और उसकी आंख फोड़ दी. ऐसे में भयभीत कौवा पूरे त्रिलोक में भागता फिरा. लेकिन किसी ने भी उसे शरण नहीं दी. अंत में वह थक-हारकर वापस आकर श्रीराम के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा.
इसके बाद भगवान श्रीराम ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली. राम बोले कि इस बाण को मैं वापस तो नहीं ले सकते हैं, लेकिन इसका एक समाधान दे सकता हूं. तब श्रीराम ने कौवे को यह वरदान दिया कि आज से यह संसार पितृपक्ष में अर्पित होने वाले भोजन का एक अंश तुम्हें भी अर्पित करेगा. तभी से ऐसा माना जाता है कि अगर कौवा भोजन ग्रहण कर ले तो वो सीधे पितरों तक पहुंचता है.