scorecardresearch
 

ग्रहण ही नहीं जन्म-मृत्यु पर भी लग जाता है सूतक... क्या हैं इसके पौराणिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण

आज साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लग रहा है, जिसके साथ सूतक काल भी जुड़ा है. सूतक काल जन्म और मृत्यु के समय लगने वाला अशुद्धि काल है, जो शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है. जन्म के समय नाल काटने जैसी सूक्ष्म हिंसा और मृत्यु के समय दाह संस्कार में होने वाली अशुद्धि के कारण सूतक और पातक लगते हैं.

Advertisement
X
जन्म और मृत्यु पर होने वाली अशुद्धि सूतक कहलाती है
जन्म और मृत्यु पर होने वाली अशुद्धि सूतक कहलाती है

श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ आज साल का आखिरी सूर्यग्रहण भी लग रहा है. जब भी कोई ग्रहण (सूर्य या चंद्र) लगता है तो उसके साथ उसका सूतक काल उसके पहले लग जाता है. शास्त्रों के अनुसार सूतक वह नियम है, जिसे अशुद्धि का नियम माना गया है. यह सिर्फ ग्रहण के दौरान ही नहीं लगता है, बल्कि जन्म और मृत्यु के साथ भी लग जाता है.

कब लगता है सूतक?

जब किसी घर में किसी की संतान का जन्म होता है तो वहां सूतक लग जाता है. इसी तरह जब किसी की मृत्यु हो जाती है तभी उस घर में सूतक लगता है. यह दोनों ही अशुद्धियों और अशुचि के कारण हैं, सूतक तब तक लगा रहता है, जब तक यह अशुद्धि दूर नहीं हो जाती है. इसके लिए 10, 11 या 13 दिनों का एक नियम बनाया गया है.

गरुण पुराण में है जिक्र

इसके बाद शुद्धता के लिए स्नान होता है, घर की साफ-सफाई होती है. फिर सूतक हटता है. गरुण पुराण में सूतक के लगने को लेकर विस्तार से वर्णन आया है, जहां भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुण जी को जीवन संबंधी सभी नियमों के बारे में बताया है. इसमें भी जन्म के समय जो अशुद्धि होती है उसे ही सूतक कहते हैं, और मृत्यु के बाद होने वाली अशुद्धि को पातक कहते हैं. इन दोनों ही समय पूजा-पाठ पर भी रोक लगी रहती है.

Advertisement

अशुद्धि से है सूतक का संबंध

सूतक का संबंध जन्म-मरण के कारण हुई अशुद्धि से है. जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया के दौरान जो हिंसा होती है, उसमें भी दोष का लगना माना गया है. दूसरी बात ये भी है कि सनातन में नर्क की जो व्याख्या की गई है, गर्भ उसका एक छोटा रूप जैसा ही होता है. रक्त-मांस और पीप से भरी वैतरणी नदी की तरह गर्भाशय भी रक्त और जल से भरी थैली की तरह होता है, जीवात्मा एक तरह से उसमें फंसी ही रहती है और कष्ट भोगती है. वहां वह पेट की भयंकर आग के बीच में रहती है और सिर्फ गर्भ नाल के जरिए ही पोषण ले सकती है. इसीलिए मां को महान माना गया है क्योंकि वह नौ माह खुद से कष्ट सहकर जीव को जन्म देती है और इस नर्क से बाहर निकाल लाती है.

शिशु का जन्म मार्ग अशुद्ध होने से उसे भी अशुद्ध माना जाता है. फिर गर्भनाल काटी जाती है. इन्हीं सबके कारण अशुद्धियों का दोष लग जाता है, इसलिए इस दोष से मुक्ति के नियम बनाए गए हैं. जिसे कहीं सोबड़, कहीं सोहर कहीं सोहात्र तो कहीं सूतक कहा जाता है.

Advertisement

मृत्यु पर लगने वाला सूतक यानी पातक

गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को 'पातक' कहते हैं. मरण के अवसर पर दाह संस्कार में भी हिंसा ही होती है. इसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित के रूप में पातक माना जाता है. जिस दिन दाह संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है. न कि मृत्यु के दिन से. अगर किसी घर का सदस्य बाहर है तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है उस दिन से उसे पातक लगता ही है. अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान कर लेने भर से शुद्धि हो जाती है.

जन्म के समय की सूक्ष्म हिंसा का दोष

जन्म सूतक प्रसव प्रक्रिया में होने वाली 'हिंसा' (जैसे नाल काटना) से जुड़ा है. गरुड़ पुराण में इसके दो कारण बताए गए हैं, एक तो शुद्धि और दूसरा जज्चा-बच्चा के लिए सुरक्षा और आराम.

जन्म देने वाली माता के लिए 10 से 45 दिन तक सूतक की अवधि बताई गई है, इसीलिए जन्म देने वाली माता के लिए 45 दिन तक पूजा करना, रसोई घर में काम करना आदि वर्जित है, ताकि इस दौरान वह पूरी तरह से आराम कर सके, अपने शरीर का फिर से निर्माण कर सके और बाहरी संक्रमण से खुद की और नवाजत बच्चे की सुरक्षा करे. इसलिए शुरुआती 10 दिनों तक जिस कमरे में बालक ने जन्म लिया है, वहां गूगल-लोबान आदि का धुआं करके शुद्धि की जाती है और परिवार के भी अन्य लोगों खासकर पुरुषों का जाना वर्जित होता है. क्योंकि पुरुष अधिक से अधिक सामाजिक जीवन में रहते हैं.

Advertisement

गर्भपात पर भी लगता है सूतक

इसी तरह सूतक गर्भपात के समय भी लगता है. 6 मास के अंदर जितने माह का गर्भ, उतने ही दिन की अशुद्धि मानी जाती है. सूतक काल में पूजा-पाठ, मंदिर प्रवेश वर्जित रहता है. शुद्धि के लिए स्नान, पंचगव्य सेवन, दान, होम किया जाता है.

इसी तरह मृत्यु के बाद लगने वाले पातक के लिए पुराण में कहा गया है कि इससे प्रेत की शांति होती है और परिवार नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होता है. यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी संक्रमण रोकथाम का माध्यम है.

मनुस्मृति में सूतक नियम

मनु स्मृति के अध्याय 5 में अशौच (अशुद्धि) और सूतक (जन्म या मृत्यु से लगेअशुद्धि काल) के विस्तृत नियम वर्णित हैं. मनुस्मृति में सूतक को जन्म (जन्माशौच) और मृत्यु (शावाशौच या पातक) से जुड़ी अशुद्धि माना गया है. श्लोक 57 में मनु कहते हैं:

प्रेतशुद्धिं प्रवक्ष्यामि द्रव्यशुद्धिं तथैव च.

चतुर्णामपि वर्णानां यथावदनुपूर्वशः॥

इसका अर्थ है कि सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) के लिए सूतक और पातक के नियम लागू होते हैं, हालांकि उनक अवधि अलग-अलग होती है. मृत्यु के बाद सपिंडी (सात पीढ़ी तक के निकट संबंधी) पर लगने वाला सूतक मुख्य रूप से 10 दिन का होता है. जन्म सूतक मुख्य रूप से माता पर लगता है. इसलिए माता का इस दौरान खास ध्यान रखा जाता है.

Advertisement

जननेऽप्येवमेव स्यात् मातापित्रोस्तु सूतकम्.

सूतकं मातुरेव स्यादुपस्पृश्य पिता शुचिः॥

याज्ञवल्क्य स्मृति में भी सूतक नियम

याज्ञवल्क्य स्मृति में भी जन्म सूतक का विस्तृत वर्णन मृत्यु सूतक की ही तरह किया गया है. यह मुख्य रूप से माता पर लागू होता है, जिसने जन्म दिया है. इसमें पिता की शुद्धि जल्दी हो जाती है. इसका कारण यह है कि पिता सकारात्मक वातावरण को बनाए रखने में योगदान करे. क्योंकि जन्म के समय भी कई प्रकार की निगेटिन एनर्जी एक्टिव हो जाती हैं, जो सूतक के नियम पालन से कम हो जाती हैं, लेकिन फिर उसके बाद जब तक 45 दिन तक माता का सूतक समाप्त नहीं होता है तब तक वह मौजूद रहती हैं. इसलिए बालक जन्म पर पिता स्नान से शुद्ध हो जाता, लेकिन माता पर पूर्ण सूतक लगा रहता है.

सूतक और पातक हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा हैं. इनकी तीन खास वजहें हैं.

पहली वजह जो सबसे सटीक है कि जन्म के तुरंत बाद जज्जा और बच्चा को बाहरी संक्रमण से बचाना. क्योंकि नए जन्मे बच्चे का पहली बार नए तरह के वातावरण में प्रवेश होता है. ऐसे में सूतक एक तरीके का रक्षा कवच ही है.

दूसरी वजह है कि यह सूतक माता के लिए बहुत जरूरी है. जन्म देना सरल नहीं है. इसलिए उसे पूरी तरह आराम करने दिया जाए. थका हुआ शरीर और थका हुआ मन वैसे भी पूजा पाठ में नहीं लगता है, इसलिए इसका निषेध बताया गया है.

Advertisement

तीसरी वजह जो है वह आध्यात्मिक है. असल में जन्म और मृत्यु दोनों ही लौकिक जगत और पारलौकिक जगत का द्वार खोल देती है. इससे आत्माओं का नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह बढ़ जाता है. इससे भी दूर रहने के लिए सूतक का प्रभाव बताया जाता है.

पातक के भी हैं सटीक कारण

मृत्यु पर लगने वाले पातक की भी वजह ऐसी ही है. शोक के कारण मनुष्य पूजा-पाठ में सक्षम नहीं होता है. इस दौरान भी नकारात्मक शक्तियां हावी रहती हैं, इसलिए दसगात्र की विधि तक पातक लगा रहता है, इसके बाद तेरहवीं होने पर ही यह पातक समाप्त होता है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement