लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान के 2025 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की पुष्टि ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. रविवार को बिहार के आरा में पहुंचे चिराग पासवान ने आज तक से बातचीत में बताया कि वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. जाहिर है कि चुनाव लड़ने के बात से ही चिराग पासवान की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी की चर्चा भी तेज हो गई है. दरअसल चिराग की रणनीति, बिहार की बदलती राजनीतिक परिदृश्य और एनडीए गठबंधन की आंतरिक राजनीति को लेकर है ऐसी अफवाहें जोर पकड़नी ही थीं . आज हर कोई यह सोचने को विवश है कि चिराग पासवान केंद्र में मिले हुए मंत्री पद को छोड़कर बिहार की अनिश्चित राजनीति में क्यों झक मारना चाहते हैं? हालांकि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ने की कोई जरूरत वैसे तो नहीं है. पर यदि वाकई में अगर उन्हें बिहार में विधायक बनकर राजनीति करनी है तो उनकी संवैधानिक मजबरी होगी कि वे अपना मंत्री पद और सांसदी दोनों ही छोड़ दें.
आइये देखते हैं कि चिराग पासवान के केंद्र में मंत्री पद छोड़कर बिहार की राजनीति में सक्रिय होने की इच्छा के पीछे कौन से कारण महत्वपूर्ण हैं...
1- बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट का नारा
चिराग बहुत पहले बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट का नारा देते रहे हैं. चिराग पासवान बार-बार कहते हैं कि उनकी राजनीति का मूल उद्देश्य बिहार का विकास है. उनका मानना है कि दिल्ली में रहकर बिहार के लिए उनके सपने पूरे नहीं हो सकते. वे बिहार को देश के विकसित राज्यों की श्रेणी में देखना चाहते हैं, और इसके लिए वे राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं. जाहिर है कि विधानसभा चुनाव लड़कर वो अपने नारे के हिसाब से अपनी व्यक्तिगत छवि को और मजबूत करना चाहते हैं. जो आगे चलकर उनके लिए बहुत निर्णायक साबित हो सकता है. हो सकता है कि बाद में चलकर विधायकी से इस्तीफा भी दें दें. पर अपने पक्ष में वो माहौल तो तैयार ही कर लेंगे.
2-मुख्यमंत्री पद की दावेदारी
चिराग पासवान को उनकी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), और कुछ समर्थक उन्हें बिहार के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं. हालांकि बिहार में चिराग के लिए मुख्यमंत्री पद बहुत दूर की कौड़ी है. एनडीए में कोई नहीं चाहेगा कि चिराग पासवान मुख्यमंत्री बने. बीजेपी खुद नहीं चाहेगी कि चिराग बिहार की कमान संभालें. फिर भी बिहार में चिराग के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा शुरू कैसे हो गई यह कोई नहीं समझ रहा है. यह भी एक किस्म की राजनीति ही है. यह विशेष रूप से तब चर्चा में आया जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद उनकी स्थिति को लेकर अटकलें तेज हुईं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चिराग नीतीश कुमार के बाद एक मजबूत विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करना चाहते हैं, खासकर अगर एनडीए में नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति बनती है.
3-दलित नेता से आगे की छवि
चिराग पासवान सामान्य (अनारक्षित) सीट से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, जिससे वे केवल दलित नेता के रूप में नहीं, बल्कि सभी वर्गों के नेता के रूप में उभरना चाहते हैं. जाहिर है कि आज तक देश में कोई दलित नेता सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं उठा सका. यूपी की पूर्व मुखयमंत्री मायावती और चिराग के पिता रामविलास पासवान तक ने कभी सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई. अगर चिराग सामान्य सीट से चुनाव लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं तो जाहिर है उनकी पार्टी को समावेशी संगठन का विस्तार मिलेगा. जिसमें विभिन्न समुदायों के नेता शामिल हैं. यह उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने और जातिगत राजनीति से बाहर निकलने की रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है.
4-एनडीए में मजबूत स्थिति बनाने की चाहत
चिराग की पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 6.47% वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतीं, जिससे एनडीए में उनकी स्थिति मजबूत हुई है. वे विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों (लगभग 45) की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी पार्टी का प्रभाव बढ़े. यह कदम नीतीश कुमार की जेडीयू के लिए चुनौती पैदा कर सकता है, और चिराग इसे अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं. चिराग पासवान की युवा छवि और जातिगत राजनीति से हटकर भाषण देने की शैली उन्हें बिहार के युवाओं और गैर-जातिगत मतदाताओं में लोकप्रिय बनाती है. वे इसे भुनाकर तेजस्वी यादव जैसे अन्य युवा नेताओं के लिए चुनौती बनना चाहते हैं.
5-बीजेपी की रणनीति में भूमिका
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी चिराग को नीतीश कुमार पर दबाव बनाने के लिए उपयोग कर रही है.माना जाता है कि नीतीश कुमार को कंट्रोल करने के लिए ही पिछले विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को कई सीटों पर हार का कारण बने थे. हाल ये हुआ कि जेडीयू बिहार में मात्र 43 सीटों पर सिमट कर रह गई.कुछ राजनीतिक विश्वेषकों का मानना है कि बीजेपी इस बार भी चिराग को 30 से 40 सीट दे सकती है. अगर लोजपा 30 से 40 सीट के बीच में अपने विधायक बनाने में कामयाब होती है और जेडीयू 40 से भी कम सीटों पर सिमटती है तो चिराग के लिए चांदी हो सकती है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व बिहार में एक मजबूत चेहरा तैयार करने में असफल रहा है, और चिराग इस कमी को भर सकते हैं.
हालांकि, बीजेपी ने नीतीश को 2025 के लिए मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया है, लेकिन चिराग की सक्रियता से भविष्य में बदलाव की संभावना बनी रहती है. हालांकि बीजेपी चिराग को सीएम के रूप में स्वीकार करेगी इस पर रत्ती भर किसी विश्लेषक को भरोसा नहीं है.
6- सीएम नहीं तो डिप्टी सीएम तो तय हो ही सकता है
बिहार की राजनीति अनिश्चित और जटिल है. नीतीश कुमार और जेडीयू का मजबूत वोट आधार (18.52%), तेजस्वी यादव की यादव-मुस्लिम गठजोड़, और बीजेपी की रणनीति चिराग के लिए चुनौतियां खड़ी करती हैं. इसके बावजूद, चिराग का यह कदम दबाव की राजनीति और दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है. अगर वे विधानसभा चुनाव जीतते हैं और एनडीए में स्थिति अनुकूल रहती है, तो वे कम से कम उपमुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं. हो सकता है अंदरखाने कुछ ऐसी बातें तय भी हो गई हों. क्योंकि केंद्र के मंत्री पद को कोई भी शख्स यूं ही दांव पर नहीं लगाएगा.