भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविध जनजातियों में से एक, कुकी (Kuki) समुदाय अपनी अनोखी संस्कृति, परंपराओं और संघर्षशील इतिहास के लिए विशेष स्थान रखता है. यह समुदाय मुख्य रूप से मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और असम के कुछ भागों में बसा हुआ है, लेकिन इनकी उपस्थिति म्यांमार और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी देखी जाती है.
कुकी लोगों का इतिहास बहुत पुराना है. माना जाता है कि ये समुदाय तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार से संबंधित है. ऐतिहासिक रूप से कुकी जनजातियां एक स्वतंत्र जीवन शैली जीती थीं, जिनकी अपनी स्वशासी व्यवस्था, गांव प्रमुख (Chief) और पारंपरिक कानून व्यवस्था थी. अंग्रेजी शासनकाल के दौरान कुकी विद्रोह (1917-1919) एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना रही है, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सशक्त संघर्ष किया.
कुकी समुदाय की भाषा को 'थाडो' (Thadou) या 'कुकी' कहा जाता है, लेकिन इस समुदाय में कई उपभाषाएं और बोलियां प्रचलित हैं. इनकी संस्कृति में लोकगीत, नृत्य, पारंपरिक पहनावे और त्यौहारों का विशेष स्थान है.
कुत फेस्टिवल (Kut Festival): यह कुकी समुदाय का सबसे बड़ा उत्सव है, जो फसल कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और व्यंजन शामिल होते हैं. चापचर कुट यह पर्व वसंत ऋतु के स्वागत के रूप में मनाया जाता है.
कुकी समाज पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक है, लेकिन महिलाओं की भूमिका भी बहुत सम्मानजनक होती है. सामूहिकता और समुदाय की भावना इनकी संस्कृति की पहचान है. आज के समय में भी गांव स्तर पर पारंपरिक मुखिया प्रणाली सक्रिय है, जो विवाद निपटान और सामाजिक अनुशासन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है.
हाल के वर्षों में कुकी समुदाय को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. मणिपुर में कुकी और अन्य समुदायों के बीच टकराव, विस्थापन और मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे चर्चा का विषय रहे हैं. बावजूद इसके, समुदाय ने शिक्षा, राजनीति और व्यवसाय में उल्लेखनीय प्रगति की है.
कुकी युवा अब परंपरागत जीवनशैली के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा और टेक्नोलॉजी को भी अपनाते जा रहे हैं. संगीत, फैशन, सोशल मीडिया और स्टार्टअप्स के माध्यम से वे अपनी संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत कर रहे हैं.
मणिपुर और म्यांमार बॉर्डर पर स्थित 16 कुकी गांवों के प्रमुखों ने बॉर्डर फेंसिंग का विरोध किया है. उन्होंने कुकी-जो समुदाय की अलग प्रशासन की मांग पूरी होने और मणिपुर में शांति बहाली तक सरकार के साथ कोई भी बातचीत करने से इनकार किया है.
मणिपुर में भले ही हिंसा का दौर थम गया है, गोलीबारी शांति हो गई है. लोग अपने सामान्य जीवन में लौट गए हैं, लेकिन कुकी और मैतेई समुदाय के बीच की खाई अभी तक नहीं पटी है. दोनों समुदायों के लिए एक दूसरे के क्षेत्र में एंट्री नहीं कर पा रहे हैं. हिंसा के दौरान बने बफर जोन में सुरक्षाबलों की ओर से सिक्योरिटी प्रदान की जा रही है, चुराचांदपुर के लोग दिल्ली आने के लिए इंफॉल जाने की बजाय मिजोरम से फ्लाइट पकड़ते हैं, जो कि उनके लिए काफी महंगा साबित होता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मणिपुर को 8500 करोड़ रुपये के विकास की आधारशिला रखेंगे. पीएम यह दौरा न सिर्फ विकास योजनाओं की शुरुआत का प्रतीक होगा, बल्कि शांति और भरोसे की बहाली का भी संकेत माना जा रहा है.
आरएसएस नेता अनिल आंबेडकर ने कहा कि इस दौरान तीन बातों पर चर्चा हुई है, जिनमें संघ के विस्तार पर बात हुई है. संघ के शताब्दी वर्ष की तैयारियों पर बात हुई है. सभी प्रांत प्रचारकों ने अपने-अपने प्रांत के बारे में बात की है.
मैतेई संगठन अरंबाई टेंगोल ने गिरफ़्तारियों का विरोध करने और हिरासत में लिए गए अपने सदस्यों की बिना शर्त रिहाई की मांग करने के लिए पूरे राज्य में 10 दिन का बंद बुलाया है. नतीजतन, शैक्षणिक संस्थान बंद हैं, बाज़ार बंद हैं और सरकारी दफ़्तरों में बहुत कम कर्मचारी काम कर रहे हैं, क्योंकि संगठन ने कर्मचारियों को काम पर न आने की चेतावनी दी है.
मणिपुर में शनिवार रात को मैतेई संगठन अरंबाई टेंगोल के नेता कानन सिंह समेत 5 लोगों को गिरफ्तार किया था. इसके बाद कुछ इलाकों में हिंसा भड़क गई. प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आगजनी की, बसों को फूंक दिया और जमकर तोड़फोड़ की.
सुप्रीम कोर्ट के जजों के 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में मौजूदा हालातों का जायजा लेने पहुंचे. इस प्रतिनिधिमंडल में जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह भी शामिल हैं. जस्टिस कोटिस्वर कुकी-नियंत्रित इलाकों में जाने में असमर्थ रहने को लेकर कहा है कि शांति बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है. उन्हें चुराचांदपुर ना जाने का कोई पछतावा नहीं है.
मणिपुर पुलिस और राज्य का प्रशासन संभालने वाले अधिकारी भी कुकी और मैतेई में बंट चुके हैं. कुकी इलाकों में राज्य पुलिस और प्रशासन के वही अधिकारी तैनात किए गए हैं, जो इस समुदाय से आते हैं. यही हाल मैतेई इलाकों का भी है.
मैतेई समुदाय की ओर से ऑल मणिपुर यूनाइटेड क्लब्स ऑर्गेनाइजेशन (AMUCO) और फेडरेशन ऑफ सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशंस (FOCS) के तीन-तीन सदस्य बैठक में शामिल होंगे. AMUCO के अध्यक्ष नंदा लुवांग, वरिष्ठ सलाहकार इतो टोंगबाम और डॉ. धनबीर लैशराम इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं.
प्रदर्शन का मुख्य केंद्र न्यू ज़ालेनफाई रहा, जहां महिलाएं हाथों में तख्तियां लेकर और नारे लगाते हुए सड़कों पर बैठ गईं. उन्होंने बफर ज़ोन की सुरक्षा और कुकी-जो समुदाय के राजनीतिक अधिकारों की मान्यता की मांग की. इसी प्रकार के प्रदर्शन गोथोल और खौसाबुंग में भी देखे गए. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि मैतेई श्रद्धालुओं को कुकी-जो भूमि माने जाने वाले क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी.