'टाइटैनिक' सिर्फ एक फिल्म भर नहीं है बल्कि फिल्ममेकिंग की आर्ट का एक शानदार नमूना भी है. 11 ऑस्कर्स जीतने वाली, बॉक्स ऑफिस पर पहली बार एक बिलियन डॉलर से ज्यादा कमाने वाली इस फिल्म को कभी रिलीज से पहले ही फ्लॉप बता दिया गया था. फिर कैसे बदली इसकी तकदीर?
धर्मेंद्र अब अधिकतर लोगों को गरम-धरम या 'हीमैन' जैसे एक्शन अवतारों के लिए ही याद रहते हैं. मगर धर्मेंद्र के खाते में कुछ ऐसी फिल्में हैं जो उनकी लगती ही नहीं हैं. इनमें उनकी एक्टिंग का दम देखने लायक है. 'सत्यकाम' भी ऐसी ही थी. इस फिल्म में उनका किरदार और काम कितना दमदार था, पढ़िए इस कहानी में.
'सरफरोश' जब बन के तैयार हुई तो उसमें एक ऐसी कमी सामने आई जो थिएटर्स में फिल्म को बड़ा नुक्सान पहुंचा सकती थी. वो तो शुक्र है कि अपने डायरेक्टर्स के साथ मिलकर आमिर ने अपनी फिल्मों के लिए एक ऐसा सिस्टम बना लिया था जो रिलीज से पहले ही फिल्म की हालत बताने में कारगर साबित होता है.
'खिलौना बना खलनायक' फिल्म में भयानक विलेन के रोल में नजर आए पपेट तात्या बिच्छू ने लोगों पर ऐसा असर छोड़ा कि लबूबू के वायरल होने के दौर में लोगों को उसकी याद आ रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये आइकॉनिक खलनायक खिलौना, फिल्म के लिए कैसे क्रिएट किया गया था?
रेखा को 'उमराव जान' बनाकर पर्दे तक लाने में डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने बहुत स्ट्रगल किया था. एक वक्त था जब बजट की कमी से ये आइकॉनिक फिल्म ठंडे बस्ते में जाने वाली थी. मगर इसे लखनऊ के शाही परिवारों ने बचा लिया. आइए बताते हैं ये किस्सा...
'कॉकटेल' 30 मई को थिएटर्स में री-रिलीज होने जा रही है. दीपिका के आइकॉनिक किरदारों में से एक वेरोनिका फिर बड़े पर्दे पर लौट रहा है. लेकिन ये जानकर आप हैरान होंगे कि जब दीपिका के सामने इस फिल्म की स्क्रिप्ट थी तो रणबीर कपूर ने उन्हें ये फिल्म करने से मना किया था. आइए बताते हैं कि हुआ क्या था.
राहुल और अनु का चेहरा फिल्म आने के बाद इस कदर पॉपुलर हो गया कि उन्हें रूटीन जिंदगी में परेशानियां होने लगी थीं. जबकि फिल्म रिलीज होने से पहले लोगों ने पोस्टर पर इन दोनों का चेहरा देखा ही नहीं था. है न कमाल? इस कहानी के पीछे है गुलशन कुमार की चिंताएं और महेश भट्ट का एक चैलेंज!
क्या आप जानते हैं कि रामसे ब्रदर्स अपने जिस सिग्नेचर हॉरर को 'वीराना' तक लेकर आए, उसका आईडिया असल में एक सॉलिड मेनस्ट्रीम फिल्म से निकला था जिसके हीरो हिंदी सिनेमा के लेजेंड पृथ्वीराज कपूर थे? आइए बताते हैं रामसे ब्रदर्स और 'वीराना' की कहानी...
इंडस्ट्री की सबसे बड़ी हिट्स में से एक फिल्म की लीड एक्ट्रेस होना किसी भी हीरोइन के लिए एक बड़ी बात होती है. मगर स्मिता पाटिल के लिए 'नमक हलाल' से पहचाना जाना एक असहज करने वाली बात थी. अगर ऐसा था तो फिर उन्होंने फिल्म साइन क्यों की? इसकी वजह इस किस्से में छुपी है...
'तारे जमीं पर' का मैसेज ये कहना था कि अगर हम प्यार और सेंसिटिविटी से डील करना सीखें तो शायद स्पेशल नीड्स वाले बच्चों के लिए अलग से स्पेशल स्कूल बनाने की जरूरत ही ना पड़े. बल्कि आम स्कूलों में ही ऐसे बच्चे, बिना दूसरे बच्चों से अलग हुए अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें.
हिंदी सिनेमा में थ्रिलर कहानियां बनाने का ट्रेंड वैसे तो काफी पहले शुरू हो चुका था. लेकिन 'ज्वेल थीफ' वो फिल्म थी, जिसने हिंदी सिनेमा की सस्पेंस थ्रिलर्स को एक बिल्कुल नया स्टाइल और स्वैग दिया. पहली बार रिलीज होने के 58 साल बाद भी 'ज्वेल थीफ' हिंदी सिनेमा की बेस्ट थ्रिलर्स में से एक मानी जाती है.
मेरठ में मुस्कान वाले केस और ऐसे कई मामलों के बीच पति समुदाय ने पत्नियों के लिए ट्रेडिशनली चले आ रहे सपाट-नॉन क्रिएटिव-हल्के चुटकुलों को नए तरह से मोडिफाई करके फिर से मार्किट में घुमा दिया. इस चुहलबाजी में एक पुराना गाना काफी लोगों की सोशल मीडिया पोस्ट में सुनाई देने लगा- 'मुझे मेरी बीवी से बचाओ.'
इमरान हाशमी के करियर में 'आवारापन' वो फिल्म बनकर आई थी जिसकी हाईलाइट उनकी एक्टिंग थी. आज इसे एक कल्ट फिल्म माना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि इमरान की इस फिल्म को लेकर पाकिस्तान में कितना विवाद हुआ था? आइए बताते हैं...
आलिया भट्ट के चुलबुलेपन, सिद्धार्थ मल्होत्रा के कन्फ्यूज छोटे भाई वाले कैरेक्टर और खट्टी-मीठी पारिवारिक नोंकझोंक से हटकर 'कपूर एंड सन्स' एक और मामले में बहुत खास थी. फिल्म में फवाद खान ने एक गे किरदार निभाया था. मगर जिस तरह उन्होंने ये किरदार निभाया था, उसने अपने आप में बॉलीवुड में एक बड़ी चीज बदली थी.
एक तरफ अनुष्का के पास 'पीके', 'सुल्तान' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में थीं, जो उन्हें दीपिका पादुकोण के टक्कर में खड़ा करती थीं. दूसरी तरफ वो 'सुई धागा' और 'परी' जैसी फिल्मों में एक्सपरिमेंट कर रही थीं. और इस एक्सपरिमेंट की शुरुआत जिस फिल्म से हुई उसे फिल्म लवर्स आज भी एक कल्ट थ्रिलर मानते हैं. ये फिल्म है 'NH 10'.
'लाल बादशाह' एक तरफ तो अमिताभ के साथ जवान हुए लोगों के लिए नाक-भौं सिकोड़ने वाली फिल्म थी. क्योंकि अपने हमउम्र अमिताभ को, अपने बच्चों की उम्र वाली एक्ट्रेसेज के साथ रोमांस करते देखना उस दौर में एक पचाने वाली बात नहीं थी. दूसरी तरफ अमिताभ को फिल्म के लिए उस दौर की सबसे महंगी फीस मिली थी.
नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली 'रंग दे बसंती' का आज रिलीज होना लोगों को मुश्किल क्यों लगता है? शायद इस बात का जवाब उस असर में छुपा है जो डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की 'रंग दे बसंती' ने लोगों के दिल-दिमाग पर छोड़ा था. उस असर को तब खबरों में RDB (रंग दे बसंती) इफेक्ट कहा जाता था.
राज कपूर एक तरफ 'अंदाज' शूट कर रहे थे और दूसरी तरफ अपनी अगली फिल्म 'बरसात' की प्लानिंग शुरू कर चुके थे. फिल्म की कास्टिंग में सारी कड़ियां फिट हो चुकी थीं, लेकिन राज को सेकंड लीड रोल के लिए ऐसी एक्ट्रेस नहीं मिल रही थी, जिसमें 'गांव की गोरी' वाला नेचुरल भोलापन हो, जैसा 'बरसात' के किरदार में लिखा गया है.
'कच्चे धागे' को रिलीज के बाद रिव्यू बहुत अच्छे नहीं मिले थे लेकिन गानों, अजय की परफॉरमेंस और एक्शन ने इस फिल्म को धीरे-धीरे एक कल्ट फॉलोइंग दिला दी. 'कच्चे धागे' ने पर्दे पर जनता को जितना एंटरटेन किया, इसके बनने के वक्त की कुछ कहानियां भी उतनी ही दिलचस्प हैं.
क्या आपको पता है कि अमिताभ ने जिस तरह ये डायलॉग फिल्म में बोला, आवाज बदलने का उनका वो अंदाज शुरुआत में जनता को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था. आज बॉलीवुड की कल्ट-क्लासिक बन चुकी 'अग्निपथ' से जुड़ी कई ऐसी दिलचस्प बातें हैं जिन्हें जानने के बाद ये फिल्म दोबारा देखने में आपको और मजा आने लगेगा.