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लबूबू को देख जनता को आई तात्या बिच्छू की याद, ऐसे तैयार हुआ था खलनायक बना ये खिलौना

'खिलौना बना खलनायक' फिल्म में भयानक विलेन के रोल में नजर आए पपेट तात्या बिच्छू ने लोगों पर ऐसा असर छोड़ा कि लबूबू के वायरल होने के दौर में लोगों को उसकी याद आ रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये आइकॉनिक खलनायक खिलौना, फिल्म के लिए कैसे क्रिएट किया गया था?

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लबूबू देख जनता को याद आया तात्या बिच्छू, ऐसा किया गया था तैयार
लबूबू देख जनता को याद आया तात्या बिच्छू, ऐसा किया गया था तैयार

इंटरनेट हर नई सुबह दुनिया को एक नई वायरल खुराफात थमा देता है. इस बार वायरल होने की बारी किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि एक डॉल की है. अगर आप इंटरनेट की खपत में अपना भरपूर योगदान देते हैं तो आपने अबतक लबूबू का नाम सुन ही लिया होगा और अगर नहीं सुना है तो आप इंटरनेट पर कर ही क्या रहे हैं! 

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मजेदार बात ये है कि लबूबू को देखकर, देसी जनता को इंडियन सिनेमा के आइकॉनिक डॉल कैरेक्टर तात्या बिच्छू की याद आने लगी है. जैसे, एक सोशल मीडिया यूजर ने एक्स पर लिखा- 'लबूबू ये, लबूबू वो... भाई तुमने कभी तात्या बिच्छू के बारे में सुना है!'

'खिलौना बना खलनायक' फिल्म में भयानक विलेन के रोल में नजर आए इस खिलौने ने लोगों पर ऐसा असर छोड़ा कि लबूबू के वायरल होने के दौर में लोगों को तीन दशक पुराना तात्या बिच्छू याद आ रहा है. जबकि उस दौर में वायरल जैसा कुछ होता ही नहीं था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये आइकॉनिक खलनायक खिलौना, फिल्म के लिए कैसे क्रिएट किया गया था? चलिए बताते हैं... 

'खिलौना बना खलनायक' में तात्या बिच्छू और लक्ष्मीकांत बेर्डे (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

क्या है लबूबू डॉल?
हांगकांग के एक डिजाइनर केसिंग लंग ने नॉर्डिक लोककथाओं पर बेस्ड अपनी स्टोरी सीरीज 'द मॉन्स्टर्स' के लिए लबूबू डॉल तैयार की थी. इसे पहली बार 2015 में पॉपुलैरिटी मिली थी. मगर 2019 में जबसे चाइनीज कंपनी पॉप-मार्ट ने इसे बेचना शुरू किया है तबसे इसकी पॉपुलैरिटी अलग लेवल पर चली गई है. गोलमटोल बॉडी, खड़े कान, आंखों में खुराफाती एक्सप्रेशन और नौ तीखे दांतों वाला ये खिलौना इंटरनेट पर राज कर रहा है.

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2024 में कोरियन पॉप ग्रुप ब्लैकपिंक की एक मेंबर लीसा बैग पर लबूबू की फिगर वाला छल्ला लटका नजर आया था. लीसा की ग्लोबल पॉपुलैरिटी का कमाल ये हुआ कि दुनिया भर के उनके फैन्स लबूबू के पीछे ही पड़ गए. इस तरह लबूबू का ट्रेंड चल पड़ा और अब इस ट्रेंड का हिस्सा कई बड़े इंटरनेशनल सेलेब्रिटी बन चुके हैं. हाल ही में रिहाना से लेकर दुआ लीपा जैसे इंटरनेशनल सेलेब्रिटी लबूबू डॉल के साथ नजर आ चुके हैं.  

लबूबू देखकर जनता को क्यों याद आ रहा तात्या बिच्छू?
खिलौनों, खासकर डॉल्स को लेकर एक परसेप्शन है कि ये क्यूट और प्यारे होते हैं. लेकिन लबूबू का डिजाईन केवल क्यूट नहीं है, उसके चेहरे पर एक शैतानी एक्सप्रेशन भी है जो कई लोगों को भयावह भी लग सकता है. और इस मामले में तात्या बिच्छू का कद बहुत ऊंचा है. तात्या का किरदार पूरी तरह भयानक ही था. वो खिलौना जरूर था मगर शायद ही किसी को वो 'क्यूट' लगा हो.

मराठी फिल्म 'झपाटलेला' या इसका हिंदी डब वर्जन 'खिलौना बना खलनायक' देख चुके सिनेमा लवर्स इसके विलेन तात्या बिच्छू को कभी भूल ही नहीं सकते. खिलौने की शक्ल में आए इस भयानक फिल्मी विलेन की हरकतें और इसके मुंह से निकला 'ओम फट स्वाहा', बचपन में ये फिल्म देख चुके लोगों को आज भी डराने का दम रखता है.  

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सिनेमा के पर्दे तक ऐसे पहुंचा था तात्या बिच्छू
लगभग कठपुतली की ही तरह एक और आर्ट होती है वेंट्रीलोकिज्म. इसमें कलाकार स्टफ-टॉय जैसे खिलौने या पपेट के साथ बातचीत करते हुए इस तरह परफॉर्म करता है जिससे कॉमेडी होती है. आपको सामने खिलौना मूवमेंट करता और बोलता हुआ नजर आता है मगर असल में आर्टिस्ट ही आवाज निकालता है. खिलौने में अंदर जगह बनी होती है जिससे आर्टिस्ट अपने हाथ के जरिए उसकी गर्दन, चेहरे और होंठ वगैरह की मूवमेंट दिखाता है. 

भारत में वेंट्रीलोकिज्म की शुरुआत करने वाले यशवंत केशव पाध्ये ने एक आइकॉनिक पपेट किरदार तैयार किया था जिसका नाम था अर्धवटराव. इसका एक और नाम मिस्टर क्रेजी भी था. तमाम स्टेज शोज, फिल्मों और दूरदर्शन के जरिए ये किरदार बहुत पॉपुलर हुआ. यशवंत के निधन के बाद उनके इस किरदार के साथ उनके बेटे रामदास पाध्ये ने परफॉर्म करना शुरू किया. 

एक शो में अपनी परफॉरमेंस के दौरान उन्होंने मराठी सिनेमा में लेजेंड का दर्जा रखने वाले फिल्ममेकर महेश कोठारे को, अर्धवटराव के हाथ से हार पहनवाया. रामदास कमाल के आर्टिस्ट थे और उनका ये इम्प्रेशन कोठारे को याद रह गया. एक बार वो रामदास की वर्कशॉप में थे और उन्हें देखकर कोठारे को आईडिया आया कि अगर ये पपेट सच में बोलने लगे तो? ये बात खुद कोठारे बाद के कई इंटरव्यूज में बता चुके हैं. 

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इस सवाल के आधार पर कोठारे ने एक कहानी लिखी जिसमें उन्होंने अपने दोस्त लक्ष्मीकांत बेर्डे के लिए वेंट्रीलोकिस्ट का लीड किरदार लिखा. इस कहानी में तात्या बिच्छू एक खूंखार गैंगस्टर था, जो पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने से पहले, एक मंत्र की शक्ति से अपनी आत्मा उस पपेट में ट्रांसफर कर लेता है, जिसके साथ बेर्डे का किरदार परफॉर्म करता है. यानी पुलिस एनकाउंटर में सिर्फ गैंगस्टर तात्या बिच्छू का शरीर मरता है और वो इस खिलौने की शक्ल में जिंदा है. अब तात्या बिच्छू का प्लान है कि वो लक्ष्मीकांत के बेटे में अपनी आत्मा ट्रांसफर करके फिर से शारीरिक रूप से भी जिंदा हो जाए. यही कहानी फिल्म 'झपाटलेला' का प्लॉट बनी.

तात्या बिच्छू का अमिताभ कनेक्शन 
'झपाटलेला' में तात्या बिच्छू के रोल के लिए रामदास पाध्ये ने हॉरर और कॉमेडी के साथ पपेट डिजाईन के वेस्टर्न इंस्पिरेशन मिलाते हुए एक पपेट तैयार किया. मगर तात्या बिच्छू का चेहरा डिजाईन करने के लिए उन्हें इंस्पिरेशन मिली अमिताभ बच्चन की फिल्म 'महान' (1983) से. 

इस फिल्म में अमिताभ ने एक वेंट्रीलोकिस्ट का किरदार निभाया था और उनके पपेट का नाम था मामूजी. मामूजी का चेहरा चौकोर था, नाक लंबी थी और बाल बिखरे हुए थे. यहीं से पाध्ये को तात्या बिच्छू के चेहरे के लिए इंस्पिरेशन मिली. इस पपेट की आंखों, आईब्रो, गर्दन होंठ और चेहरे के अंदर पाध्ये ने कुछ प्रेशर पॉइंट बनाए ताकि वो एक्सप्रेशन भी दे सके. फिर उन्होंने तात्या बिच्छू के कई वर्जन बनाए जिन्हें अलग-अलग तरीके से ऑपरेट किया जा सकता था. 

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चलता हुआ दिखाने के लिए ऊपर की तरफ से ऑपरेट होने वाला वर्जन था, कैमरे में क्लोज-अप के लिए हाफ बॉडी वर्जन था. जेस्चर और एक्सप्रेशन वाले सीन्स के लिए हाथ फंसाकर चलाने वाला वर्जन बना. तात्या बिच्छू की मौत वाले सीन्स के लिए डैमेज पपेट भी बनाए गए. 

तात्या बिच्छू और 'लगे रहो मुन्नाभाई'
संजय दत्त की फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' तो आपको याद ही होगी. इसमें महात्मा गांधी का किरदार, दिलीप प्रभावलकर ने निभाया था जो मराठी और हिंदी फिल्मों में काफी काम कर चुके हैं. 'झपाटलेला' में जिंदा गैंगस्टर तात्या बिच्छू का किरदार दिलीप ने ही निभाया था. पुलिस एनकाउंटर के बाद जब गैंगस्टर की आत्मा पपेट में चली जाती है, तो पपेट तात्या बिच्छू की आवाज भी दिलीप की ही है. 

इस तरह फिल्ममेकर महेश कोठारे, वेंट्रीलोकिस्ट रामदास पाध्ये और एक्टर दिलीप प्रभावलकर ने मिलकर इंडियन सिनेमा को तात्या बिच्छू का किरदार दिया. 'झपाटलेला' 1993 में रिलीज हुई थी और आज इसे 32 साल हो चुके हैं. तब भारत में आज की तरह इंटरनेट भी नहीं था. फिर भी पहले थिएटर्स और फिर टीवी ने 'झपाटलेला' और इसके हिंदी डब वर्जन 'खिलौना बना शैतान' को इतना पॉपुलर बना दिया कि 90s में बड़ा हुआ कोई व्यक्ति शायद ही तात्या बिच्छू को ना पहचानता हो. 

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बिना इंटरनेट वाले दौर में गढ़े गए इस किरदार का कमाल ऐसा है कि आज जब लबूबू डॉल वायरल हो रही है तो देसी जनता को अपना खलनायक खिलौना तात्या बिच्छू याद आ रहा है. वैसे आजकल जब हम लोग चाइनीज प्रोडक्ट्स से दूर रहने की बातें करते हैं तो क्या लबूबू डॉल की जगह अपने बैगों पर हमें तात्या बिच्छू के छल्ले लटका लेने चाहिए? आईडिया तो दिलचस्प है... 

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