
इन एक्ट्रेस का नाम था स्मिता पाटिल और अमिताभ के साथ उनकी ये फिल्म थी 'नमक हलाल'. अमिताभ, शशि कपूर, स्मिता पाटिल और परवीन बाबी स्टारर ये फिल्म 30 अप्रैल 1982 को रिलीज हुई थी. उस साल की तीसरी सबसे बड़ी हिट रही ये फिल्म, आज 43 साल बाद अमिताभ की सबसे यादगार फिल्मों में गिनी जाती है.
इंडस्ट्री की सबसे बड़ी हिट्स में से एक फिल्म की लीड एक्ट्रेस होना किसी भी हीरोइन के लिए एक बड़ी बात होती है. मगर स्मिता पाटिल के लिए 'नमक हलाल' से पहचाना जाना एक असहज करने वाली बात थी. फिल्म शूट होने के वक्त भी वो इतनी अनकम्फर्टेबल थीं कि खुद अमिताभ ने उन्हें बहुत समझाया था तब जाकर वो 'नमक हलाल' पूरी कर सकीं. आइए बताते हैं ये किस्सा...

कमर्शियल सिनेमा में ऐसे आईं 'सीरियस' एक्ट्रेस स्मिता पाटिल
थिएटर के बैकग्राउंड से आईं स्मिता पाटिल ने बतौर न्यूज रीडर करियर की शुरुआत की थी. थिएटर से जुड़े होने के कारण वो फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट (FTII) के कैम्पस में काफी वक्त बिताती थीं. वहीं पर एक स्टूडेंट फिल्म से उन्हें अपना पहला फिल्म रोल मिला जिससे आइकॉनिक डायरेक्टर श्याम बेनेगल ने उन्हें डिस्कवर किया.
बेनेगल की दमदार फिल्म 'चरणदास चोर' और नेशनल अवॉर्ड विनिंग 'मंथन' जैसी फिल्मों में आईं स्मिता, मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्मों के पैरेलल चल रहे आर्टहाउस सिनेमा का चेहरा बनने लगीं. 'भूमिका' से उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिल गया और 'बाजार', 'आज की आवाज' और 'मंडी' जैसी फिल्मों ने उन्हें पैरेलल सिनेमा की क्वीन बना दिया था. मगर फिल्म इंडस्ट्री की एक कड़वी सच्चाई हमेशा से रही है कि महत्वपूर्ण फिल्मों को ज्यादा लाइमलाइट दिलाने के लिए ऐसे चेहरों की जरूरत पड़ती है जिनका नाम जनता पहचानती है.
पहले कई मेनस्ट्रीम फिल्मों के ऑफर छोड़ चुकीं स्मिता ने फाइनली इन फिल्मों की तरफ आना शुरू किया. बाद के एक इंटरव्यू में स्मिता ने कहा था, 'मैं करीब पांच सालों तक छोटे सिनेमा से जुड़ी रही. मैंने सभी कमर्शियल ऑफर रिजेक्ट किए. 1977-78 के आसपास छोटे सिनेमा मूवमेंट्स ने रफ्तार पकड़ी और उन्हें बड़े नामों की जरूरत थी. मुझे कुछ प्रोजेक्ट्स से गलत तरीके से निकाला गया.'

स्मिता इस बात से नाराज थीं कि उन्होंने दमदार सिनेमा को आगे बढ़ाने के लिए कभी पैसे के बारे में नहीं सोचा और इसका नतीजा उन्हें इस तरह मिला. उन्होंने आगे कहा, 'अगर उन्हें बड़े नामों की जरूरत है, तो मैं जाकर अपना नाम बनाती हूं.' और उस दौर में एक एक्ट्रेस को इंडस्ट्री का बड़ा नाम बनने के लिए अमिताभ बच्चन के साथ एक फिल्म काफी थी. लेकिन अमिताभ के साथ उन्हें पहला फिल्म ऑफर 'नमक हलाल' का नहीं, 'सिलसिला' (1981) के लिए मिला था.
जब 'सिलसिला' कास्ट से काटा गया स्मिता का नाम
अपने 80वें जन्मदिन पर फिल्ममेकर यश चोपड़ा ने शाहरुख खान के साथ एक खास इंटरेक्शन में ये खुलासा किया था कि 'सिलसिला' के लिए उनकी पहली चॉइस जया बच्चन और रेखा नहीं, बल्कि स्मिता पाटिल और परवीन बाबी थीं. दोनों को साइन भी कर लिया गया था. लेकिन जब अमितभ ने चोपड़ा से पूछा कि क्या वो इस कास्टिंग से पूरी तरह खुश हैं? तो वो संशय में आ गए.
उन्होंने अमिताभ से कहा कि वो फिल्म में जया और रेखा को कास्ट करना चाहते थे. लेकिन शायद इन दोनों के बीच चल रही टेंशन की वजह से वो ऐसा करने से बच रहे थे. जब अमिताभ को ये पता चला तो उन्होंने चोपड़ा से कहा कि अगर वो जया और रेखा को राजी कर लें तो उन्हें इस फैसले से कोई समस्या नहीं है. चोपड़ा ने पहल की और बात बन गई. अब 'सिलसिला' के लिए पहले से राजी स्मिता और बाबी को मना करना था. यश चोपड़ा ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि परवीन बाबी तो आराम से मान गईं. लेकिन स्मिता इस बात से खफा हो गई थीं क्योंकि उन्होंने फिल्म से निकाले जाने की बुरी खबर भी उन्हें खुद ना देकर, उनके दोस्त शशि कपूर के जरिए भिजवाई थी.
'नमक हलाल' में स्मिता को कड़वा लगा मेनस्ट्रीम सिनेमा का स्वाद
इस बात का कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है, मगर उस दौर की तमाम फिल्मी चर्चाओं में ये कहा जाता है कि 'सिलसिला' में स्मिता के साथ जो हुआ उसकी भरपाई करने के लिए ही अमिताभ ने 'नमक हलाल' की कास्टिंग के समय उनका नाम सुझाया. डायरेक्टर प्रकाश मेहरा भी एक टैलेंटेड एक्ट्रेस की कास्टिंग को लेकर राजी हो गए. इसका भी एक बैकग्राउंड है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि स्मिता की एक और नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म 'गमन' (1978) के लिए अमिताभ का नाम लगभग फाइनल हो गया था. मगर कुछ वजहों से वो इस फिल्म में नहीं काम कर सके और वो किरदार फारुख शेख ने निभाया. लेकिन तभी से स्मिता और उनकी अच्छी दोस्ती हो गई थी.
इस तरह 'नमक हलाल' स्मिता की पहली मेनस्ट्रीम फिल्म बनी. मगर इस फिल्म का एक्सपीरियंस स्मिता को बहुत पसंद नहीं आया. हालांकि, इसमें फिल्म की यूनिट, डायरेक्टर या एक्टर्स का कोई हाथ नहीं था. इसकी सबसे बड़ी वजह थी फिल्म का वो गाना जो आज भी लोगों को अच्छे से याद है- 'आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो'.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये गाना करने के बाद स्मिता घर पहुंचीं, उन्होंने कमरे में खुद को कमरे में बंद किया और जी भर कर रोईं. पैरेलल सिनेमा की 'सीरियस' एक्ट्रेस मानी जाने वालीं स्मिता को गाने में डांस करना था, लिप-सिंक करना था और सफेद साड़ी में भीगे हुए, इंटिमेट तरीके से हीरो के साथ रोमांटिक दिखना था.

अमिताभ ने अपने ब्लॉग में इस बारे में लिखा था कि 'नमक हलाल' के सेट पर स्मिता बेहद असहज थीं क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था 'फिल्म में उन्हें जो भी करने को कहा जा रहा है, वो क्यों करना है?' अमिताभ ने लिखा था कि उनके बहुत समझाने-बुझाने पर स्मिता ने वो सब किया और सीन्स अच्छे निकलकर आए.
स्मिता पाटिल की बायोग्राफी के लॉन्च पर अमिताभ ने बताया था, 'मेरे साथ फिल्में करने की बात करें तो उन्होंने वो चीजें कीं जो उनके स्वभाव के खिलाफ था, जैसे- 'नमक हलाल' में उन्हें मेरे साथ रेन डांस करना था. उन्हें लगता था कि ये उनके कल्चर और सोच से बिल्कुल अलग चीज है.'
अमिताभ ने आगे कहा था, 'उन्होंने मुझे बताया था कि उन्होंने इतनी सारी अच्छी फिल्मों में काम किया था लेकिन एक बार जब वो एयरपोर्ट पर थीं तो उन्हें ये बात असहज और शर्मनाक भी लगी कि लोग उन्हें 'नमक हलाल' के लिए पहचान रहे थे.' हालांकि, मेनस्ट्रीम सिनेमा में 'नाम बनाने' निकलीं स्मिता ने 'नमक हलाल' के बाद कई मेनस्ट्रीम फिल्मों में काम किया जिनमें मिथुन की 'कसम पैदा करने वाले की' और धर्मेंद्र के साथ 'गुलामी' जैसी फिल्में शामिल हैं.
स्मिता ने अमिताभ के साथ 'नमक हलाल' के बाद 'शक्ति' और 'शराबी' में भी काम किया था. दोनों की बॉन्डिंग अच्छी हो गई थी और 'कुली' में अमिताभ के एक्सीडेंट से ठीक पहले वाली रात को स्मिता ने एक बुरा सपना भी देखा था, जिसमें अमिताभ के साथ कुछ बुरा हो रहा था. स्मिता ने रात दो बजे अमिताभ को ये बात बताते हुए ध्यान रखने को कहा था. लेकिन ही दिन अमिताभ का वो खतरनाक एक्सीडेंट हुआ, जिससे उनकी जान पर बन आई थी.
स्मिता को याद करते हुए अमिताभ ने कहा था, 'मुझसे जब भी स्मिता के बारे में बोलने को कहा जाता है, मेरे पास शब्द कम पड़ जाते हैं. वो एक बेहद अलग तरीके से अपनी जिंदगी और खुद को हैंडल करती थीं. मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला था, वो बड़ी सौम्य दिखती थीं लेकिन बहुत मजबूत महिला थीं. वो अपनी फिल्मों की तरफ ही नहीं, विचारों की तरफ भी बहुत कमिटेड थीं.'