राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS ने अपने 100 साल पूरे कर लिए हैं. 27 सितंबर 1925 को दशहरे के दिन बने इस संगठन के बारे में सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक तमाम बातें, दावे और कहानियां सुनी और सुनाई जा रही हैं. अपनी पहली शाखा से दुनिया का सबसे बड़ा गैर-राजनीतिक संगठन बनने तक, 100 साल की संघ की यात्रा समकालीन भारतीय इतिहास का अहम हिस्सा है. इस इतिहास को हमने छोटी-छोटी 100 कहानियों में समेटा है. यहां पढ़िए ऐसी ही कहानियां, जिन्हें लिखा है लेखक, गीतकार, स्तंभकार और पत्रकार विष्णु शर्मा ने.
गुरु गोलवलकर ने पत्रकार एसएस आप्टे को देश भर के दौरे पर भेजा और हिन्दुओं की समस्याओं पर गौर करने को कहा. आप्टे ने हिंदू समाज की सैकड़ों प्रमुख हस्तियों और 50 के करीब संस्थाओं, विभिन्न मठों, पंथों के प्रमुखों से मुलाकात की. इसके बाद 29 अगस्त 1964 को बंबई में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
माधव राव ने कुछ स्वयंसेवकों को मुस्लिम पहचान देकर विभाजित पंजाब के शहरों में मुस्लिम लीग के प्रभाव वाले क्षेत्रों में तैनात कर दिया. ये लोग बताते थे कि कैसे पूरी तैयारी के साथ मुस्लिम लीग के लोग हिंदू बाहुल्य इलाकों की रिपोर्ट तैयार करते हैं, और फिर हमला करते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
एक दोपहर गुरु गोलवलकर भोजन के बाद आराम कर रहे थे. तभी एक संदेशवाहक आया और उनसे कहा कि वे जल्द से जल्द प्रधानमंत्री कार्यालय संपर्क करे. मामले की गंभीरता समझ गोलवलकर ने पीएमओ फोन लगाया. यहां उनकी बात प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुई. पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझे पीएम शास्त्री ने कहा कि आप फौरन दिल्ली पहुंचिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
कश्मीर विलय के बाद जापानियों को चकमा देकर सिंगापुर से कोलकाता आने वाले वायुसेना अधिकारी प्रीतम सिंह के रण कौशल की जरूरत कश्मीर में थी. यहां उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं से मिलकर पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
अगस्त 1947 से पहले जब लाहौर में हिंदुओं पर हिंसा होने लगी तो कुछ स्वयंसेवकों ने जवाबी मोर्चा संभाल लिया. ऐसे में संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक महेन्द्र ने मोर्चा संभाला और परी मोहल्ले की तरफ से नौजवानों की भीड़ लेकर दंगाइयों से भिड़ गए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
संघ और सरदार पटेल के बीच रिश्तों को लेकर काफी कुछ लिखा पढ़ा गया है. तमाम निष्कर्षों के बाद कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सरदार पटेल संघ के उस वक्त के अधिकारियों के लिए घर के बुजुर्ग जैसे थे. जो कभी मदद करते थे तो, कभी डांट भी सुनाया करते थे. एक बार की बात जब गोलवलकर जेल में थे तो पटेल 10 मिनट तक लगातार संघ की कमियों को लेकर बोलते रहे. फिर बारी आई एकनाथ रानडे की. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
मजदूरों के लिए काम कर रहे दत्तोपंत ठेंगडी को गुरु गोलवलकर का एक संदेश आया- आप फौरन लखनऊ से राज्यसभा के लिए नामांकन कर दीजिए. ठेंगड़ी इस संदेश का मैसेज उस समय नहीं समझ पाए, लेकिन जब इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई तो इसका अर्थ समझ आ गया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
स्वयंसेवक सदाशिव गोविंद कात्रे बिलासपुर में धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे. एक मुलाकात में गुरु गोलवलकर ने उनसे कहा कि विरोध से कुछ नहीं मिलेगा. जो व्यक्ति इन मिशनरियों के पास अपनी समस्या को लेकर आते हैं उनका समाधान खोजना पड़ेगा. सदाशिव गोविंद कात्रे तब तक स्वयं ही कुष्ठ की चपेट में आ चुके थे. गोलवलकर के इन वचनों से कात्रे को मानो दिशा ही मिल गई. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला पर स्मारक बनाने का फैसला हुआ. लेकिन इसकी राजनीतिक बाधाएं थी, आर्थिक तो थी ही. इस असंभव से दिखने वाले काम को पूरा करने का जिम्मा दिया गया एकनाथ रानडे को. ध्यान रहे कि तब केंद्र और राज्य दोनों ही जगह संघ विरोधी सरकार थी. ऐसे में एकनाथ रानडे ने अपना कौशल दिखाया.RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1942 में गुरु गोलवलकर ने सभी स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि सभी को परिवार छोड़कर संघ कार्य़ में जुटना होगा. लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रचारक बनन होगा. इस पुकार पर भैयाजी दाणी की चेतना ने मंथन किया. उन्हें लगा कि इससे निकलना चाहिए. इस तरह वे पहले गृहस्थ प्रचारक बनें. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
डॉ हेडगेवार का स्मृति मंदिर बनाने की बात आई तो गुरु गोलवलकर ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय स्मारक है, हर स्वयंसेवक की भावना इससे जुड़ी हुई है. ऐसे में देश के हर स्वयंसेवक का इसमें योगदान होगा. तय हुआ कि ‘एक स्वयंसेवक- एक रुपया’ का फॉर्मूला चलेगा. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
बलराज मधोक, दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे नेताओं ने एबीवीपी की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी. ये तब की बात है जब संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर या तो जेल में थे या फिर वे संघ पर प्रतिबंध हटाने के लिए लड़ रहे थे. प्रतिबंध के चलते संघ के अधिकारी उन दिनों जो गुप्त बैठकें करते थे वो भी एबीवीपी के बैनर तले ही करते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
मणिपुर के हालात और सामाजिक सौहार्द पर गहराई से बातचीत के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत गुरुवार को इम्फाल में एक अहम क्लोेज्ड डोर मीटिंग में शामिल हुए. तीन दिन के इस दौरे में भागवत ने सभ्यता, एकता और लंबे समय तक शांति कायम करने की जरूरत पर जोर दिया. ये पहली बार है जब 2023 की जातीय हिंसा के बाद वे मणिपुर पहुंचे हैं, ऐसे समय में जब राज्य अब भी स्थिरता की दिशा में संघर्ष कर रहा है.
ये कहानी तब की है जब अभिनेत्री मनीषा कोइराला के दादा बीपी कोइराला नेपाल के प्रधानमंत्री थे और नेपाल के राजा थे महेंद्र वीर विक्रम शाह. 1965 में आरएसएस के मकर संक्रांति उत्सव के लिए नेपाल के राजा महेंद्र वीर विक्रम शाह को भारत आना था. लेकिन तभी एक कूटनीतिक विवाद पैदा हो गया. भारत ने नेपाल के राजा को वीजा ही नहीं दिया. आखिर क्यों हुआ था ये विवाद? RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
डॉ हेडगेवार ने न केवल गुरु गोलवलकर में अपना उत्तराधिकारी ढूंढ लिया था बल्कि बाला साहबे देवरस में उन्हें संघ के अगली पीढ़ी का नेतृत्व नजर आ रहा था. देवरस उन बालकों में थे जो संघ के साथ सबसे पहले जुड़े थे. उनके कार्यकाल में एक ऐसा मौका आया जब उन्होंने संघ के सरसंघचालक के पद से 7 साल की छुट्टी ले ली थी. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1957 में जब नेहरू देश के पीएम थे जो उन्हें महाराष्ट्र में कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा था. संयुक्त महाराष्ट्र को लेकर राज्य की जनता आंदोलित थी. ऐन मौके पर गुरु गोलवलकर ने दखल दिया और नेहरू के समर्थन में चिट्ठी लिखकर उसकी लाखों प्रतियां पूरे महाराष्ट्र में बंटवाईं. दरअसल ये मुद्दा ही ऐसा था. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
गोलवलकर जब पहली बार एक आश्रम आए तो उन्हें अगली ही सुबह अपने गुरु से कटू वचन सुनने पड़े. देर तक सोने पर उनके गुरु ने कहा था-ऐसा सोता आदमी जीवन में क्या हासिल कर पाएगा, गुरु की इस टिप्पणी ने गोलवलकर की आंखे खोल दी. उन्हें आज अपने आलस्य पर सचमुच क्रोध आ रहा था. उन्होंने बदलाव करने की ठान ली थी. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
आजादी के आंदोलन के दौरान संघ के एक स्वयंसेवक ने तहसील पर लहरा रहे ब्रिटिश सरकार के झंडे को उतार फेंका था. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को आग बबूला कर दिया. खौफ खाए ब्रिटिश सरकार ने इस स्वयंसेवक को मौत की सजा सुनाई. लेकिन आखिरकार उनकी जान बची. बाद में इस शख्स ने इतिहास रच दिया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1950 के दशक में जब जनसंघ को संघ के राजनीतिक संगठन के रूप में प्रचारित किया जाने लगा. गोलवलकर इस नैरेटिव को लेकर सहज नहीं थे. गोलवलकर ने तो एक बार जनसंघ के लिए संघ के कार्यकर्ताओं को देने तक से इनकार कर दिया था. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
संघ के इतिहास में एक बार ऐसा समय आया जब गुरु गोलवलकर अपने जन्मदिन मनाने को लेकर असहज हो गए. वो अंदर से परेशान भी थे कि सब कुछ उनके इर्द गिर्द ही हो रहा था, संघ के बजाय उनकी तारीफ कर रहा था. शायद यही बात उनको सहज नहीं लग रही थी. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
प्रतिबंध हटने के बाद संघ और मजबूत होकर निकला. नेहरू और गुरु गोलवलकर की मुलाकात हो रही थी. पटेल उन्हें मिलने बुला रहे थे. इस घटनाक्रम से जो लोग आरएसएस के खत्म हो जाने का स्वपन देख रहे थे. उन्हें काफी ठेस पहुंचा. इसी माहौल में कुछ असामाजिक तत्वों ने सांगली के आस-पास गोलवलकर की हत्या की योजना बनाई. लेकिन नियति को तो कुछ और मंजूर था. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.