राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS ने अपने 100 साल पूरे कर लिए हैं. 27 सितंबर 1925 को दशहरे के दिन बने इस संगठन के बारे में सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक तमाम बातें, दावे और कहानियां सुनी और सुनाई जा रही हैं. अपनी पहली शाखा से दुनिया का सबसे बड़ा गैर-राजनीतिक संगठन बनने तक, 100 साल की संघ की यात्रा समकालीन भारतीय इतिहास का अहम हिस्सा है. इस इतिहास को हमने छोटी-छोटी 100 कहानियों में समेटा है. यहां पढ़िए ऐसी ही कहानियां, जिन्हें लिखा है लेखक, गीतकार, स्तंभकार और पत्रकार विष्णु शर्मा ने.
दिल्ली का तिमारपुर. एक पिछड़ी बस्ती में अपनी नौकरी छोड़ चुका एक इंजीनियर बच्चों को अंग्रेजी, गणित और विज्ञान पढ़ा रहे थे. इन बच्चों के नतीजे बहुत अच्छे थे. इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ने वाले ये शख्स विष्णुजी थे. सेवा भारती की बुनियाद में विष्णुजी का अहम योगदान है. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब ईश्वर का अस्तित्व मानते थे, व्रत, पूजा, पाठ से उनका कोई विरोध नहीं था. किंतु स्वयं वह संध्या-वंदन, स्तोत्रों का पाठ नित्य नैमित्तिक कर्म आदि में उदासीन थे. एक बार उन्होंने कहा, ‘मुझे संघ का कम्युनिस्ट कहते हैं’. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है बालासाहब देवरस की कहानी.
जब गुरु गोलवलकर की मृत्यु हुई तो उनका पार्थिव शरीर नागपुर में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. वहीं पर गोलवलकर द्वारा लिखित और मुहरबंद तीन पत्र खोले गए. इन पत्रों में उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा व्यक्त की, अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना की और संत तुकाराम की रचना का उल्लेख किया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
आज विजय दिवस है. 54 साल पहले आज ही के दिन पाकिस्तान ने ढाका में समर्पण किया था और बांग्लादेश नाम के एक नए राष्ट्र का निर्माण हुआ था. संघ ने पाकिस्तान के हश्र और 1971 के युद्ध की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने सेना की विजयी बढ़त को रोक दिया था. गुरु गोलवलकर सरकार के इस फैसले से बेहद दुखी हुए. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को सबक सिखाने और उसकी कमर तोड़ने का इतना सुनहरा मौका गंवाना एक बड़ी भूल थी. पीएम शास्त्रीजी ने गोलवलकर की नाराजगी पर क्या कहा. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
प्रधानमंत्री होने के नाते नेहरूजी को देशभर संघ की गतिविधियों की खबर होती थी. उनके कई करीबी उन्हें पत्र भेजकर संघ पर अपने विचार लिखते. नेहरू कई पत्रों का जवाब देते और संघ के बारे में अपनी निजी राय जाहिर करते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उन्हीं चिट्ठियों का मजमून.
कहानी ऐसी है कि एक बार गुरु गोलवलकर कहीं तांगे से जा रहे थे, और आगे पैदल कुछ स्वयंसेवकों के साथ बालासाहब देवरस जा रहे थे, अपने साथ बैठे स्वयंसेवक से तब गुरु गोलवलकर ने कहा था कि “असली सरसंघचालक पैदल जा रहे हैं और नकली तांगे पर जा रहे हैं”. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
एक दिन क्लास में रज्जू भैया की एक बलिष्ठ एंग्लो इंडियन लड़के से तकरार हो गई थी. मुद्दा थे- महात्मा गांधी. उस लड़के ने कहा था, ‘गांधीजी पूरी तरह से गलत हैं’, जब तक और कोई कुछ सोचता, फौरन रज्जू भैया ने कहा “नहीं, गांधीजी एकदम सही हैं”. बस यह बात उस लड़के को चुभ गई. उसने अचानक गुस्से में आकर रज्जू भैया के चेहरे पर दो पंच जड़ दिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
शंकराचार्य जैसा प्रतिष्ठित पद संभालने के लिए गुरु गोलवलकर के पास प्रस्ताव आया था. पीएम मोदी अपनी किताब ‘ज्योतिपुंज’ में लिखते हैं, "द्वारका पीठ के शंकराचार्य श्री अभिनव सच्चिदानंदजी ने परम पूज्य गुरुजी को संदेश भेजा: 'गुरुजी, शंकराचार्य का पद रिक्त है और इसके लिए आपसे अधिक उपयुक्त कोई नहीं है." लेकिन गोलवलकर का संकल्प तो कुछ और था. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
माधव राव ने कुछ स्वयंसेवकों को मुस्लिम पहचान देकर विभाजित पंजाब के शहरों में मुस्लिम लीग के प्रभाव वाले क्षेत्रों में तैनात कर दिया. ये लोग बताते थे कि कैसे पूरी तैयारी के साथ मुस्लिम लीग के लोग हिंदू बाहुल्य इलाकों की रिपोर्ट तैयार करते हैं, और फिर हमला करते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1955 में जब गोवा मुक्ति संग्राम शुरू हुआ तो कई स्वयंसेवक इस आंदोलन में कूद पड़े. 15 अगस्त 1955 को तिरंगा लेकर रामभाऊ गोवा में दूसरे स्वयंसेवकों के साथ गोवा में प्रवेश कर रहे थे. पुर्तगालियों ने गोली चलाने की धमकी दी, लेकिन रुकने का सवाल ही नहीं था. पहली गोली बसंतराव ओक के पैर में लगी. दूसरी गोली पंजाब के हरनाम सिंह के सीने में लगी. फिर संगीनों के सामने रामभाऊ थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
गुरु गोलवलकर ने पत्रकार एसएस आप्टे को देश भर के दौरे पर भेजा और हिन्दुओं की समस्याओं पर गौर करने को कहा. आप्टे ने हिंदू समाज की सैकड़ों प्रमुख हस्तियों और 50 के करीब संस्थाओं, विभिन्न मठों, पंथों के प्रमुखों से मुलाकात की. इसके बाद 29 अगस्त 1964 को बंबई में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
एक दोपहर गुरु गोलवलकर भोजन के बाद आराम कर रहे थे. तभी एक संदेशवाहक आया और उनसे कहा कि वे जल्द से जल्द प्रधानमंत्री कार्यालय संपर्क करे. मामले की गंभीरता समझ गोलवलकर ने पीएमओ फोन लगाया. यहां उनकी बात प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुई. पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझे पीएम शास्त्री ने कहा कि आप फौरन दिल्ली पहुंचिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
कश्मीर विलय के बाद जापानियों को चकमा देकर सिंगापुर से कोलकाता आने वाले वायुसेना अधिकारी प्रीतम सिंह के रण कौशल की जरूरत कश्मीर में थी. यहां उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं से मिलकर पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
अगस्त 1947 से पहले जब लाहौर में हिंदुओं पर हिंसा होने लगी तो कुछ स्वयंसेवकों ने जवाबी मोर्चा संभाल लिया. ऐसे में संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक महेन्द्र ने मोर्चा संभाला और परी मोहल्ले की तरफ से नौजवानों की भीड़ लेकर दंगाइयों से भिड़ गए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
संघ और सरदार पटेल के बीच रिश्तों को लेकर काफी कुछ लिखा पढ़ा गया है. तमाम निष्कर्षों के बाद कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सरदार पटेल संघ के उस वक्त के अधिकारियों के लिए घर के बुजुर्ग जैसे थे. जो कभी मदद करते थे तो, कभी डांट भी सुनाया करते थे. एक बार की बात जब गोलवलकर जेल में थे तो पटेल 10 मिनट तक लगातार संघ की कमियों को लेकर बोलते रहे. फिर बारी आई एकनाथ रानडे की. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
मजदूरों के लिए काम कर रहे दत्तोपंत ठेंगडी को गुरु गोलवलकर का एक संदेश आया- आप फौरन लखनऊ से राज्यसभा के लिए नामांकन कर दीजिए. ठेंगड़ी इस संदेश का मैसेज उस समय नहीं समझ पाए, लेकिन जब इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई तो इसका अर्थ समझ आ गया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
स्वयंसेवक सदाशिव गोविंद कात्रे बिलासपुर में धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे. एक मुलाकात में गुरु गोलवलकर ने उनसे कहा कि विरोध से कुछ नहीं मिलेगा. जो व्यक्ति इन मिशनरियों के पास अपनी समस्या को लेकर आते हैं उनका समाधान खोजना पड़ेगा. सदाशिव गोविंद कात्रे तब तक स्वयं ही कुष्ठ की चपेट में आ चुके थे. गोलवलकर के इन वचनों से कात्रे को मानो दिशा ही मिल गई. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला पर स्मारक बनाने का फैसला हुआ. लेकिन इसकी राजनीतिक बाधाएं थी, आर्थिक तो थी ही. इस असंभव से दिखने वाले काम को पूरा करने का जिम्मा दिया गया एकनाथ रानडे को. ध्यान रहे कि तब केंद्र और राज्य दोनों ही जगह संघ विरोधी सरकार थी. ऐसे में एकनाथ रानडे ने अपना कौशल दिखाया.RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1942 में गुरु गोलवलकर ने सभी स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि सभी को परिवार छोड़कर संघ कार्य़ में जुटना होगा. लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रचारक बनन होगा. इस पुकार पर भैयाजी दाणी की चेतना ने मंथन किया. उन्हें लगा कि इससे निकलना चाहिए. इस तरह वे पहले गृहस्थ प्रचारक बनें. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
डॉ हेडगेवार का स्मृति मंदिर बनाने की बात आई तो गुरु गोलवलकर ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय स्मारक है, हर स्वयंसेवक की भावना इससे जुड़ी हुई है. ऐसे में देश के हर स्वयंसेवक का इसमें योगदान होगा. तय हुआ कि ‘एक स्वयंसेवक- एक रुपया’ का फॉर्मूला चलेगा. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.