अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने चेतावनी दी है कि विश्व में तेल और गैस के भंडार तेजी से खत्म हो रहे हैं. यह स्थिति आयात पर निर्भर भारत जैसे देशों के लिए एनर्जी सप्लाई (पेट्रोल, डीजल और गैस) और कीमतों के मामले में बड़ा खतरा पैदा कर रही है. IEA की नई रिपोर्ट 'तेल और गैस क्षेत्रों की कमी के प्रभाव' में कहा गया है कि भारत को ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करने के लिए विविध स्रोतों, घरेलू खोज और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों पर ध्यान देना होगा.
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भारत अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल और 45% गैस आयात करता है. तेजी से घटते वैश्विक भंडार भारत के लिए आपूर्ति में रुकावट और कीमतों में उछाल का खतरा ला रहे हैं. खासकर शेल और गहरे समुद्री स्रोतों की तेज कमी इस खतरे को और बढ़ा रही है.
IEA ने सुझाव दिया कि भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए...

विश्व के तेल और गैस क्षेत्रों से उत्पादन की प्राकृतिक कमी की दर तेज हो गई है. इसका बड़ा कारण यह है कि अब तेल और गैस उद्योग शेल (shale) और गहरे समुद्री (deep offshore) स्रोतों पर ज्यादा निर्भर है, जो पारंपरिक जमीन आधारित क्षेत्रों की तुलना में जल्दी खत्म हो जाते हैं.
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IEA के कार्यकारी निदेशक फतीह बिरोल ने कहा कि तेल और गैस की कमी की दर ऊर्जा निवेश के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है. हाल के वर्षों में यह दर तेजी से बढ़ी है. उद्योग को मौजूदा उत्पादन स्तर बनाए रखने के लिए पहले से कहीं ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है.

तेल और गैस उद्योग में हर साल होने वाला 90% निवेश केवल मौजूदा क्षेत्रों की प्राकृतिक कमी को रोकने में खर्च हो रहा है. नए डिमांड को पूरा करने के लिए बहुत कम पैसा बचता है. अगर नए निवेश नहीं हुए, तो वैश्विक तेल उत्पादन हर साल 55 लाख बैरल प्रति दिन (mb/d) कम हो जाएगा, जो 2010 में 40 लाख बैरल प्रति दिन से काफी ज्यादा है.
इसी तरह, प्राकृतिक गैस का उत्पादन हर साल 270 अरब घन मीटर (bcm) कम होगा, जो 2010 में 180 bcm था. बिरोल ने चेतावनी दी कि बिना निवेश के हर साल ब्राजील और नॉर्वे के कुल तेल उत्पादन के बराबर कमी होगी.
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IEA ने विश्व के करीब 15,000 तेल और गैस क्षेत्रों के डेटा का विश्लेषण किया. इसमें पाया गया कि अलग-अलग क्षेत्रों में कमी की दर में बहुत अंतर है.

इस बढ़ती निर्भरता का मतलब है कि अगर लगातार ड्रिलिंग और पूंजी निवेश न हो, तो आपूर्ति जल्दी कम हो सकती है. IEA का अनुमान है कि 2050 तक मौजूदा उत्पादन बनाए रखने के लिए 450 लाख बैरल तेल और 2000 अरब घन मीटर गैस नए पारंपरिक क्षेत्रों से चाहिए. यह विश्व के शीर्ष तीन उत्पादकों के कुल उत्पादन के बराबर है.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि नए तेल और गैस स्रोत विकसित करने में औसतन 20 साल लगते हैं. इसमें खोज के लिए 10 साल और मूल्यांकन, मंजूरी और निर्माण के लिए 10 साल और लगते हैं. अगर आज निवेश या खोज में देरी हुई, तो 2030 और 2040 के दशक में आपूर्ति कम हो सकती है. इससे ऊर्जा सुरक्षा, कीमतों में अस्थिरता और उत्सर्जन पर असर पड़ेगा.

बिरोल ने कहा कि वैश्विक ऊर्जा चर्चा में अक्सर डिमांड पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन आपूर्ति की गतिशीलता पर भी उतना ही ध्यान देना जरूरी है. हमें बाजार संतुलन, ऊर्जा सुरक्षा और उत्सर्जन के प्रभावों पर सावधानी से विचार करना होगा. IEA की यह रिपोर्ट भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए एक चेतावनी है.
तेल और गैस भंडारों की तेज कमी और शेल जैसे स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता से आपूर्ति और कीमतों का जोखिम बढ़ रहा है. भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए घरेलू खोज, रणनीतिक भंडार और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों पर तेजी से काम करना होगा. अगर स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव तेज हुआ, तो तेल और गैस की मांग कम हो सकती है, लेकिन अभी डिमांड मजबूत बनी हुई है. भारत को भविष्य की चुनौतियों के लिए अभी से तैयार होना होगा.