Parshuram Jayanti 2025: आज परशुराम जयंती मनाई जा रही है. परशुराम जयंती का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और यह भगवान शिव के परम भक्त माने जाते है. भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर प्रदोष काल में हुआ था उन्हें चिरंजीवी भी माना गया है. वह अपने माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे. फिर भी, उन्होंने अपनी माता की गर्दन काट दी थी. आइए जानते हैं आखिर क्यों परशुराम जी को अपनी मां की गर्दन काटनी पड़ी और फिर क्या हुआ उनके साथ.
भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम का जीवन त्याग, आज्ञापालन और तपस्या का अद्भुत उदाहरण है. एक कथा के अनुसार, परशुराम ने पिता के आदेश पर अपनी ही मां का वध कर दिया था, जिसके बाद उन्हें कठोर तपस्या करनी पड़ी थी. कहा जाता है कि एक बार ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी सरोवर में स्नान के लिए गई थीं. वहां संयोग से राजा चित्ररथ नौका विहार कर रहे थे. राजा को देखकर रेणुका देवी के मन में क्षणिक विकार उत्पन्न हो गया. जब वे आश्रम लौटीं, तो ऋषि जमदग्नि ने उनकी मनोदशा भांप ली और अत्यंत क्रोधित हो उठे.
परशुराम ने अपनी माता की काट दी थी गर्दन
गुस्से में आकर ऋषि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे माता का वध करें. लेकिन, मोहवश कोई भी पुत्र यह कार्य करने को तैयार नहीं हुआ. अंत में, जब जमदग्नि ने सबसे छोटे पुत्र परशुराम को यह आदेश दिया, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के पिता की आज्ञा का पालन किया और माता का वध कर दिया. पिता की आज्ञा न मानने वाले अन्य पुत्रों को ऋषि जमदग्नि ने विवेकहीन होने का श्राप दिया. वहीं, आज्ञाकारी परशुराम से प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान मांगने को कहा. परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वर मांगा. उनकी इच्छा पूरी हुई और रेणुका देवी को नया जीवन मिला.
परशुराम की तेज बुद्धि और निष्ठा से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने उन्हें समस्त शास्त्रों और शस्त्रों का ज्ञाता होने का आशीर्वाद भी दिया. हालांकि, अपनी मां का वध करने के कारण परशुराम को 'मातृहत्या' का पाप लगा. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पाप से मुक्त किया और 'परशु' नामक दिव्य अस्त्र प्रदान किया. इसी कारण वे 'परशुराम' कहलाए. इसलिए, आज भी परशुराम का जीवन आज्ञापालन, तपस्या और धर्म रक्षा के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.