भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास में भगवान परशुराम एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उन्हें विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है. परशुराम का जन्म त्रेता युग में भृगु ऋषि के वंशज महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था. उनका नाम 'परशुराम' इसलिए पड़ा क्योंकि वे 'परशु' (कुल्हाड़ी) धारण करने वाले राम थे (Parshuram Jayanti).
हर साल परशुराम जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाई जाती है और इसी दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है. इस बार परशुराम जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी.
भगवान परशुराम का जन्म क्षत्रियों के अत्याचार और अन्याय को समाप्त करने के उद्देश्य से हुआ था. उन्होंने तपस्या, ब्रह्मचर्य और शस्त्रविद्या में अद्भुत दक्षता प्राप्त की थी. शिवजी से उन्हें दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) और युद्ध कला का ज्ञान प्राप्त हुआ. परशुराम आजीवन ब्रह्मचारी रहे और धर्म की रक्षा के लिए जीवन समर्पित कर दिया.
परशुराम ने पृथ्वी से अत्याचारी क्षत्रियों का 21 बार संहार किया. किंतु उनके यह कार्य व्यक्तिगत क्रोध से नहीं, बल्कि अधर्म और अन्याय के विरुद्ध धर्म की स्थापना के लिए थे. माना जाता है कि उन्होंने समुद्र से भूमि निकाल कर 'कर्णाटक', 'गोवा', और 'केरल' जैसे प्रदेशों की रचना की. उन्होंने अनेक महान योद्धाओं को भी शिक्षा दी, जिनमें भीष्म पितामह, कर्ण, और द्रोणाचार्य जैसे नाम प्रसिद्ध हैं.
भगवान परशुराम न्याय, साहस, और तप के प्रतीक माने जाते हैं. उनका जीवन यह सिखाता है कि जब अधर्म बढ़ जाए, तो उसके विनाश के लिए सशक्त और धर्मपरायण प्रयास आवश्यक हैं. वे क्रोध में भी धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए. उनका व्यक्तित्व संत और योद्धा दोनों का आदर्श संयोजन है.
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा 6वें अवतार माने जाते हैं. परशुराम का उल्लेख रामायण, ब्रह्रावैवर्त पुराण और कल्कि पुराण आदि में मिलता है. एक ऋषिपुत्र होने के बावजूद भगवान परशुराम एक कुशल योद्धा भी थे और उनके शस्त्र का नाम था फरसा. लेकिन, आज भी उनका वह फरसा झारखंड के गुमला जिले के टांगीनाथ धाम में गड़ा हुआ है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन यदि राशि अनुसार भगवान परशुराम को विशेष चीजें अर्पित की जाएं तो जातक को कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है. आइए जानते हैं, किस राशि के जातकों को क्या अर्पित करना चाहिए.
परशुराम जयंती का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और यह भगवान शिव के परम भक्त माने जाते है. भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर प्रदोष काल में हुआ था. फिर भी, उन्होंने अपनी माता की गर्दन काट दी थी.