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Valmiki Jayanti 2021: वाल्मीकि जयंती आज, जानें डाकू से महर्षि बनने की पूरी कहानी

वाल्मीकि जयंती शरद पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. पूर्णिमा तिथि के लिए पूजा का समय 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू है और आज रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा. वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के रूप में भी जाना जाता है.

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महर्षि वाल्मीकि जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है
महर्षि वाल्मीकि जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • वाल्मिकी जयंती आज
  • एक घटना ने बदल दी थी जिंदगी
  • जानें डाकू से संत बनने की कहानी

आज रामायण के रचनाकार आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती (Valmiki Jayanti 2021 date) है.  महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को हुआ था. महर्षि वाल्‍मीकि का जन्‍मदिवस देशभर में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है.  पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल के महान ऋषि वाल्‍मीकि पहले डाकू थे लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें बदलकर रख दिया. वाल्‍मीकि असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे शायद इसी वजह से लोग आज भी उनके जन्मदिवस पर कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. 

वाल्मीकि जयंती का शुभ मुहूर्त (Valmiki Jayanti Shubh Muhurt)- वाल्मीकि जयंती शरद पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. पूर्णिमा तिथि के लिए पूजा का समय 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू है और आज रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा. वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के रूप में भी जाना जाता है.

डाकू से म‍हर्षि वाल्‍मीकि बनने की कहानी- वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति की 9वीं संतान वरुण और पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. बचपन में भील समुदाय के लोग उन्हें चुराकर ले गए थे और उनकी परवरिश भील समाज में ही हुई. वाल्मीकि से पहले उनका नाम रत्नाकर हुआ करता था. रत्नाकर जंगल से गुजरने वाले लोगों से लूट-पाट करता था. एक बार जंगल से जब नारद मुनि गुजर रहे थे तो रत्नाकर ने उन्हें भी बंदी बना लिया. तभी नारद ने उनसे पूछा कि ये सब पाप तुम क्यों करते हो? इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया, 'मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूं'. नारद हैरान हुए और उन्होंने फिर उससे पूछा क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों का फल भोगने को तैयार है. रत्नाकर ने निसंकोच हां में जवाब दिया.

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तभी नारद मुनि ने कहा इतनी जल्दी जवाब देने से पहले एक बार परिवार के सदस्यों से पूछ तो लो. रत्नाकर घर लौटा और उसने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा कि क्या कोई उसके पापों का फल भोगने को आगे आ सकता है? सभी ने इनकार कर दिया. इस घटना के बाद रत्नाकर को काफी दुखी हुआ और उसने सभी गलत काम छोड़ने का फैसला कर लिया. इसके बाद वो राम के परम भक्त बन गए. वर्षों की तपस्या के बाद वो इतना शांत हो गए कि चींटियों ने उनके चारों ओर टीले बना लिए. इसलिए, इन्हें महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ होता है 'चींटी के टीले से पैदा हुआ.' 
 

 

 

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