बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार एक बात साफ लग रही थी कि मुस्लिम वोट बहकेगा नहीं , सिर्फ महागठबंधन को ही जाएगा. ये आत्मविश्वास महागठबंधन नेताओं तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ही नहीं वीआईपी और माले जैसी पार्टियों को भी था. शायद यही कारण था कि सभी ने कम से कम मुस्लिम कैंडिडेट देने पर विचार किया.उन्हें लगता था कि मुस्लिम वोट उन्हें छोड़कर कहां जाएगा, क्योंकि बीजेपी को हराने वाले वाला महागठबंधन ही है. लोकसभा चुनावों में एआईएमआईएम की हार से और ये भरोसा और बढ़ गया था. पर मुस्लिम समुदाय ने अपनी उपेक्षा को गंभीरता से लिया महागठबंधन को आईना दिखा दिया.
एनडीए ने सीमांचल की 24 में से 14 सीटें जीतीं हैं. जिसमें भाजपा को 7, जेडीयू को 5 और चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को 2 सीटें मिलीं हैं. महागठबंधन में कांग्रेस को 4 सीटें और आरजेडी को सिर्फ 1 सीट मिली यानि कि कुल 5. एआईएमआईएम को 5 सीटें मिलीं हैं जो उसके 2020 के प्रदर्शन के बराबर हैं.
जबकि 2020 में सीमांचल में एनडीए ने 12, महागठबंधन ने 7 सीटें जीती थीं.स्पष्ट है कि 2025 में एनडीए का प्रदर्शन बेहतर हुआ है.एआईएमआईएम अपनी पुरानी स्थिति पर कायम है.जबकि महागठबंधन का प्रदर्शन उस क्षेत्र में गिरा है, जिसे इस बार उसके लिए सबसे अनुकूल क्षेत्र माना जा रहा था.
सीमांचल की 5 सीटें जीतकर असदुद्दीन ओवैसी ने यह साबित कर दिया कि उनका जादू बरकरार है. विपक्ष ने उन पर बीजेपी के बी टीम होने का ठप्पा जरूर लगाया पर मुस्लिम समुदाय को अपना हित ओवैसी में ही नजर आया. आइये देखते हैं कि ऐसा क्यूं हुआ.
ओवैसी को महागठबंधन में न शामिल करना
महागठबंधन का ओवैसी को एलायंस में न शामिल करने का फैसला सबसे बड़ी चूक साबित हुआ. अक्टूबर 2025 में गठबंधन वार्ताओं में AIMIM ने 10-15 सीटें मांगीं, लेकिन तेजस्वी ने इनकार कर दिया. कारण यह बताया गया कि ओवैसी की 'मुस्लिमपरस्त' छवि से हिंदू वोट खिसकने का डर. लेकिन यह फैसला उल्टा पड़ा.
मुसलमानों में नाराजगी का पहला कारण प्रतिनिधित्व की कमी था. 17% आबादी के बावजूद महागठबंधन में कोई प्रमुख मुस्लिम चेहरा न था. मुसलमानों को लगा कि ओवैसी की पार्टी को इसलिए गठबंधन से दूर रखा जा रहा है ताकि मुस्लिमों का वोट तो लिया जा सके पर कोई पद की मांग करने का दबाव नहीं बना सके.
मुस्लिम समुदाय न इसे किसी मुस्लिम नेतृत्व को उभरने से रोकने के रूप में लिया. बात भी सही थी महागठबंधन के जितने भी टिकट मुस्लिम समुदाय को दिए गए वो ऐसे ही थे जो आरजेडी और कांग्रेस नेताओं के पिछलग्गू बने फिरते हैं.
एक यूट्यूब इंटरव्यू में ओवैसी ने कहा, महागठबंधन मुसलमानों को चप्पल उतरवाता है, लेकिन सत्ता में जगह नहीं देता.
सीमांचल के मुसलमान, जो बाढ़ और गरीबी से त्रस्त हैं, ओवैसी को 'अपना नेता' मानने लगे .
महागठबंधन ने यादवों के अनुपात में मुसलमानों को कम टिकट दिए
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने महागठबंधन की हार को उजागर किया, जहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद मात्र 25 सीटें मिलीं हैं. दरअसल तेजस्वी यादव के नेतृत्व में टिकट वितरण की रणनीति जातिगत असंतुलन की शिकार रही, खासकर यादवों (14% आबादी) को 52 टिकट (36%) देने के मुकाबले मुसलमानों (17% आबादी) को मात्र 18 टिकट दिए. कांग्रेस ने भी केवल 10 मुस्लिम कैंडिडेट खड़े किए. कांग्रेस का रेशियो फिर भी आरजेडी से बेहतर रहा . क्योंकि कुल 60 सीटों में ही 10 सीटें मुस्लिम समुदाय को दीं. यह असमानता न केवल मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करने वाली साबित हुई, बल्कि ओवैसी की AIMIM को फायदा भी पहुंचाई.
तेजस्वी का फोकस यादव वोट (90% एकजुट) पर था, लेकिन मुस्लिम वोट (80% महागठबंधन को) को हल्के में लिया. ओवैसी ने इसे भुनाया, AIMIM को 5 सीटें दिलाईं. यदि मुसलमानों को 30-35 टिकट मिलते, तो वोट शेयर 5% बढ़ सकता था.
मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम कैंडिडेट बनाना मुद्दा बन गया
महागठबंधन की एक बड़ी रणनीतिक चूक मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना साबित हुई. 28 अक्टूबर को तेजस्वी यादव ने पटना प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद को मुख्यमंत्री और सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा बनाने का ऐलान किया. सहनी, निषाद पार्टी के नेता और निषाद समुदाय (2.6% आबादी) के प्रतिनिधि, को चुनना यादव-केंद्रित आरजेडी की रणनीति का हिस्सा था. लेकिन बिहार की 17.7% मुस्लिम आबादी (2.3 करोड़) ने इसे 'अन्याय' माना, क्योंकि मुसलमानों को उम्मीद थी कि डिप्टी सीएम का ऐलान मुस्लिम समुदाय के लिए होना चाहिए था.
महागठबंधन का यह फैसला जातिगत असंतुलन का प्रतीक बना. निषाद समुदाय (सहनी- 2.6%) को डिप्टी सीएम का पद देकर आरजेडी ने ईबीसी वोट मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन मुसलमानों (17%) को अनदेखी हो गई. तेजस्वी का ऐलान 'MY' (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूले को कमजोर करने वाला था, क्योंकि मुसलमानों को 'वोट बैंक' मानकर उपेक्षित किया गया. ओवैसी ने कहा, महागठबंधन मुसलमानों को वोट देगा, लेकिन सत्ता में जगह नहीं.
ओवैसी को चरमपंथी बोलकर आरजेडी ने भद पिटवा ली
आरजेडी की सबसे बड़ी भूल ओवैसी को 'चरमपंथी' और 'मुस्लिम लीग' कहना था. एक इंटरव्यू में तेजस्वी से पूछा गया कि जब ओवैसी बिहार में सेक्युलर पार्टियों से गठबंधन करना चाह रहे थे तो उन्हें तवज्जो क्यों नहीं दी गई. इस पर तेजस्वी ने सीधा जवाब दिया कि बिहार में extremist (चरमपंथियों) के लिए कोई जगह नहीं है. फिर क्या था, ओवैसी ने उसी पल ये बयान मुसलमानों के बीच ले जाकर एक 'विक्टिम कार्ड' में बदल दिया.
यही नहीं तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद ने प्रचार के दौरान ओवैसी पर 'वोट कटवा' का ठप्पा लगाकर मुसलमानों को अपमानित महसूस कराया. यह बयानबाजी उल्टा पड़ी, और मुस्लिम वोटों का 15-20% हिस्सा AIMIM की ओर खिसक गया. आरजेडी का यह रवैया 'सेकुलरिज्म का ढोंग' साबित हुआ.लालू ने भी AIMIM को 'बीजेपी का एजेंट' ठहराया. यह रणनीति गठबंधन बचाने के लिए थी, लेकिन मुसलमानों में अपमान का भाव जाग उठा. बिहार के 17% मुसलमान, जो सीमांचल (47% मुस्लिम आबादी) में केंद्रित हैं, ने इसे 'उपेक्षा' माना. ओवैसी ने जवाब दिया, आरजेडी मुसलमानों को वोट बैंक मानती है, लेकिन कट्टरपंथी कहकर अपमानित करती है.