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शराबबंदी का विरोध जनसुराज की तर्ज पर क्यों नहीं कर रही आरजेडी?

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि पिछले 15 सालों में शराबबंदी के बहुत से नुकसान बिहार को झेलने पड़े हैं. फिर भी बिहार में शराबबंदी का विरोध हर कोई दबी जुबान से ही करता है. पर जब सार्वजनिक रूप से शराबबंदी के खिलाफ बोलना होता है तो लोग संतुलन बनाने की कोशिश करने लगते हैं.

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आरजेडी के घोषणापत्र में शराबबंदी को लेकर केवल समीक्षा की बात कही गई है.
आरजेडी के घोषणापत्र में शराबबंदी को लेकर केवल समीक्षा की बात कही गई है.

बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी नीति (Bihar Prohibition and Excise Act) ने राज्य की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा शुरू की गई यह नीति महिलाओं की सुरक्षा, घरेलू हिंसा में कमी और सामाजिक सुधार के नाम पर लाई गई थी.पर इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि बिहार में शराबबंदी बुरी तरह फेल रही है. बीजेपी नेता खुद इस बंदी के मूल्यांकन की बात करते रहे हैं. आरजेडी नेता खुलकर शराबबंदी का विरोध करते हैं पर किसी की हिम्मत नहीं है कि चुनावी मंच पर वो शराबबंदी को रद्द करने की मांग कर सके. 

यहां तक कि महागठबंधन की कई पन्नों के घोषणापत्र में भी शराबबंदी की समीक्षा करने की बात कही गई है.पर जिस तरह तेजस्वी वक्फ बोर्ड कानून को फाड़ कर फेंकने वाला अंदाज दिखाते हैं वो शराबबंदी के लिए नहीं दिखा रहे हैं. इस बात पर तो वह राजी हैं कि सरकार बनते ही ताड़ी पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया जाएगा पर शराबबंदी को हटाने का वादा करते वो कभी नहीं दिखते. केवल समीक्षा की ही बात की जा रही है. हालांकि जनसुराज पार्टी शराबबंदी का खुलकर विरोध कर रही है. प्रशात किशोर ने तो यहां तक कहा है कि सरकार में आने के 10 मिनट के अंदर वो शराबबंदी को कैंसल करने के लिए ऑर्डर जारी करेंगे.

शराबंदी नीति की विफलताएं स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी हैं.9 सालों में 12.79 लाख गिरफ्तारियां हुईं हैं. इन 13 लाख लोगों का जीवन बर्बाद हो चुका है. इनमें 85% SC, EBC और OBC वर्ग से संबंधित हैं. अवैध शराब का कारोबार ₹20,000 करोड़ का हो गया है, 190 मौतें (जैसे 2022 सारण हूच कांड में 70+) हुईं, और राज्य को ₹30,000 करोड़ राजस्व का नुकसान हुआ. फिर भी राज्य में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से जोर नहीं पकड़ सका है . आइये देखते हैं ऐसा क्यों है?

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महिलाओं का मजबूत समर्थन:

 नीतीश कुमार की JD(U) और NDA (BJP-JD(U)-HAM-LJP) इस नीति को महिलाओं के वोट बैंक से जोड़ते हैं.दरअसल 2024 की लैंसेट रिपोर्ट बताती है कि बिहार में घरेलू हिंसा के मामले 21 लाख महिलाओं में शून्य हो गए हैं, जो 1990 के दशक में 40% तक थे. ग्रामीण महिलाएं (जो जीविका दीदियां हैं) पहले से ही नीतीश समर्थक हैं, और यह नीति उन्हें खुश रखती है. NDA इसे सुशासन का प्रतीक बताकर महिलाओं को लुभा रहा है. जाहिर है कि कोई भी राजनीतिक दल आज महिलाओं को अपने खिलाफ करने का रिस्क नहीं ले सकता है. आधी आबादी को वोट बैंक बनाने की शुरूआत नीतीश कुमार ने ही की थी. फिर इसकी अहमियत इतनी बढ़ गई कि पूरे देश में महिला वोट बैंक बनाने का नीतीश कुमार मॉडल अपनाया गया. हालांकि शराबबंदी बिहार के अलावा कहीं नहीं की गई.

NDA की रणनीतिक चुप्पी:

 NDA, खासकर JD(U), चुनावी अभियान में शराबबंदी पर बोलने से बच रहा है. RJD प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी के अनुसार, NDA जानता है कि यह मुद्दा उन्हें फायदा नहीं देगा. इसके बजाय, NDA विकास, बुनियादी ढांचे और केंद्र की ₹70,000 करोड़ अतिरिक्त सहायता पर फोकस कर रहा है. NDA सहयोगी JDU नेता संजय झा ने कहा, यह नीति जीविका दीदियों की मांग पर लाई गई थी, और ग्रामीण मजदूरों के लिए फायदेमंद है. शायद ही बीजेपी का कोई नेता होगा जो शराबबंदी को पसंद करता हो पर राजनीतिक मजबूरी के चलते कुछ भी बोलने से बचता है. एक न्यूज चैनल में कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह से शराबबंदी पर पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट तौर से कहा कि बिहार में शराबबंदी जारी रहेगी.

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विपक्ष की आक्रामकता लेकिन सीमित प्रभाव:

 महागठबंधन (RJD-Congress-Left-VIP) और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी शराबबंदी को विफल नीति बता रहे हैं. पर महागठबंधन का घोषणापत्र इस नीति की केवल समीक्षा की बात करता है. ताड़ी (toddy) पर प्रतिबंध हटाने और गरीबों को जेल से रिहा करने की बात करता है. जन सुराज ने शराबबंदी को मिनटों में हटाने का वादा किया है, ताकि ₹28,000 करोड़ राजस्व से विश्व बैंक से ₹5-6 लाख करोड़ कर्ज लिया जा सके. इन सबके बावजूद आम लोगों में शराबबंदी को लेकर कोई हलचल नहीं है. शायद यही कारण है कि विपक्ष अन्य मुद्दों जैसे रोजगार (हर घर एक नौकरी), जाति जनगणना और वोट चोरी अभियान ज्यादा जोर देर रहा है.

सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता: 

नीति की विफलताएं स्पष्ट हैं—9 सालों में 12.79 लाख गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें 85% SC, EBC और OBC से हैं। अवैध शराब का कारोबार ₹20,000 करोड़ का हो गया है, 190 मौतें (जैसे 2022 सारण जहरीली शराब कांड में 70 से अधिक) हुईं, और राज्य को ₹30,000 करोड़ राजस्व का नुकसान हुआ है. फिर भी, यह मुद्दा वर्ग-आधारित है: पुरुष वोटर (खासकर गरीब) नाराज हैं, लेकिन महिलाओं का समर्थन इसे संतुलित रखता है. तमाम ग्राउंड रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई है कि अवैध शराब की बिक्री और पुलिस-माफिया गठजोड़ से पूरा तंत्र पटा पड़ा है.  लेकिन ये सब बातें न वोट में तब्दील हो सकती हैं और न किसी के खिलाफ माहौल ही बना सकती हैं.

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NDA में शराबबंदी को लेकर दरार 

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि शराबबंदी का विरोध NDA के लिए जोखिम भरा हो सकता है. शराबंदी को लेकर NDA में ही स्पष्ट दरारें हैं. HAM नेता जीतन राम मांझी ने इसे गरीबों पर अन्याय बताया, जबकि BJP ने स्पष्ट किया कि NDA सत्ता में आने पर इसे जारी रखेगा. सोशल मीडिया पर युवा वोटर (Gen Z) और OBC/SC समुदाय नाराजगी जता रहे हैं. पर नीतीश का सुशासन बाबू इमेज और महिलाओं का 50% से अधिक वोट बैंक इसे बचाए रखने की उम्मीद जताता है. 2020 में NDA ने 125 सीटें जीतीं, और लोकसभा में JD(U)-BJP की मजबूती इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.

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