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The Great Indian Family: बॉलीवुड की फैमिली फिल्मों से गायब हुआ 'परिवार'

विक्की कौशल और मानुषी छिल्लर की फिल्म 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' 22 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. मेकर्स की तरफ से दावा किया जा रहा है कि ये फिल्म लोगों को फैमिली वैल्यू समझाने का काम करेगी. लेकिन बड़ा सवाल कि क्या हालिया रिलीज फैमिली फिल्में ऐसा कर पा रही हैं. परिवार के नाम पर कहीं रोमांस, कहीं ड्रामा, तो कहीं मसाला कंटेंट परोसा जा रहा है.

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फिल्म 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' 22 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है.
फिल्म 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' 22 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है.

यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' 22 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. जैसा कि फिल्म के टाइटल के जरिए शो किया जा रहा है ये परिवारिक कहानी के ईद-गिर्द बुनी गई है. हालही में फिल्म का ट्रेलर भी रिलीज किया गया है. इसमें फिल्म का मुख्य किरदार निभा रहे अभिनेता विक्की कौशल अपने परिवार की कहानी खुद सुनाते हुए नजर आ रहे हैं. ट्रेलर में माता-पिता, भाई-बहन के साथ अन्य संगे-संबंधी भी दिखाए गए हैं. फिल्म के मेकर्स की तरफ से ये भी दावा किया जा रहा है कि ये फैमिली वैल्यू को समझाने का काम करने वाली है. लेकिन ट्रेलर में कहानी को झलक दिखती है, उसे देखकर तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिल्म पारिवारिक से ज्यादा सामाजिक मुद्दों पर आधारित लग रही है. इसे हिंदू-मुस्लिम यानी धार्मिक दृष्टिकोण से दिखाने की कोशिश की गई है. इसके साथ ही रोमांस का तड़का भी लगाया गया है.

फिल्म 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' की कहानी विजय कृष्ण आचार्य ने लिखी है. फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने ही किया है. विजय जाने-माने पटकथा और संवाद लेख रहे हैं. उन्होंने 'धूम' फ्रेंचाइजी की तीन फिल्मों के साथ आमिर खान की फिल्म 'ठग ऑफ हिंदोस्तान' और अभिषेक बच्चन की 'रावण' की कहानी भी लिखी है. 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक जिले बलरामपुर की पृष्ठभूमि पर अपनी फिल्म का ताना-बाना बुना है. फिल्म में विक्की कौशल के साथ मानुषी छिल्लर, कुमुद मिश्रा, यशपाल शर्मा, मनोज पहावा, सादिया सिद्दीकी, अलका अमीन और आशुतोष उज्जवल अहम भूमिका में हैं. फिल्म के ट्रेलर में दिखाया गया है कि एक ब्राह्मण परिवार में पला-बढ़ा लड़का जो अपने शहर में भजन कुमार के नाम से जाना जाता है, वो अचानक मुस्लिम निकल जाता है. इसके बाद शहर, समाज और परिवार की तरह से मिलने वाली प्रतिक्रिया को दिखाया गया है.

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बॉलीवुड फैमिली फिल्मों की परिभाषा बदल चुकी है

'द ग्रेट इंडियन फैमिली' को भले ही फैमिली फिल्म कहा जा रहा है, लेकिन उसमें फैमिली वैल्यू जैसी बात नहीं दिखती. ट्रेलर देखकर तो यही कहा जा सकता, फिल्म की रिलीज के बाद कहानी विस्तार में पता चल पाएगी, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि हाल के दिनों या यूं कहें कि पिछले एक दशक के दौरान रिलीज हुई फैमिली फिल्मों की परिभाषा बदल चुकी है. अब फैमिली फिल्म का मतलब ये माना जाता है कि जिसे आप अपने परिवार के साथ देख सकते हैं. लेकिन केवल इतना ही सही नहीं है. ऐसी फिल्में फैमिली वैल्यू बताने का काम भी करती रही हैं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तो एक दौर रहा, जब केवल फैमिल फिल्में ही बनाई जाती थी. 1990 से 2000 के दौरान कई ऐसी फिल्में रिलीज हुईं, जिन्होंने लोगों को संयुक्त परिवार की अहमियत बताई. परिवार के विभिन्न लोगों की जरूरत समझाई. उस वक्त इन फिल्मों ने कई परिवारों को टूटने से पहले बचा लिया था.

90 के दशक में रिलीज फिल्मों की फैमिली वैल्यू 

90 के दशक में रिलीज हुई 'घर द्वार', 'संसार', 'घर परिवार', 'स्वर्ग' और 'घर हो तो ऐसा' जैसी फिल्मों को देखकर परिवार की कीमत पता चलती है. साल 1985 में रिलीज हुई कल्पतरु के निर्देशन में बनी फिल्म 'घर द्वार' खूब देखी गई थी. उस वक्त शायद ही कोई सिनेप्रेमी हो जो इस फिल्म को न देखा हो. परिवार के एक सदस्य की वजह से बिखरे संयुक्त परिवार का क्या हाल होता है, इसमें बखूबी दिखाया गया है. तनुजा, राज किरण और सचिन पिलगांवकर ने अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को अमर कर दिया. इस फिल्म का एक गाना, ''स्वर्ग से सुंदर सपनों से प्यारा है अपना घर द्वार, हम पर रहे बरसता सदा तुम्हारा प्यार तुम्हारा प्यार न रूठे कभी घर द्वार न छूटे'', बहुत मशहूर हुआ था. आज कई लोगों को ये गाना गुनगुनाते हुए सुन सकते हैं, खासकर 90 के दशक में बड़े हो रहे लोग. इसी तरह 1987 में रिलीज हुई 'संसार' ने भी पारिवारिक मूल्यों को पढ़ाने का काम किया था.

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'संसार' से 'स्वर्ग' तक, कहानी-संगीत ने मनमोहा

रामा राव तातिनेनी के निर्देशन में बनी फिल्म 'संसार' में रेखा, राजबब्बर, अनुपम खेर और अरुणा ईरानी लीड रोल में थे. कई फिल्मों में बहुओं को निगेटिव रोल में दिखाया जाता रहा है. सास-बहू के झगड़े तो आज भी दिखाए जाते हैं. लेकिन इस फिल्म ने परिवार में बहू की कीमत बताई थी. फिल्म में रेखा की किरदार उमा शर्मा अपने बिखरे परिवार को जोड़ने का काम करती है. डेविड धवन के निर्देशन में बनी फिल्म 'स्वर्ग' 1990 में रिलीज हुई थी. इसमें राजेश खन्ना, गोविंदा, माधवी, परेश रावल और जूही चावला लीड रोल में थे. ये ऐसा वक्त जब राजेश खन्ना के सितारे धीरे-धीरे अस्त हो रहे थे, लेकिन गोविंदा अपने करियर के पीक की ओर जा रहे थे. दोनों कलाकारों ने फिल्म में जबरदस्त अभिनय किया था. फिल्म 'स्वर्ग' की कहानी और गाने बहुत लोकप्रिय हुए थे. एक गाना "ऐ मेरे दोस्त लौट के आजा" आज भी सुना जाता है. इसे राजेश खन्ना पर फिल्माया गया था.

हम आपके हैं कौन

'हम आपके हैं कौन' के साथ शुरू हुआ नया दौर

इसी दौर में ऋषि कपूर और मिनाक्षी शेषाद्री की फिल्म 'घर परिवार' (1991) भी रिलीज हुई थी. इसमें राजेश खन्ना, प्रेम चोपड़ा, मौसमी चटर्जी, कादर खान और राज किरण अहम भूमिकाओं में थे. 1991 में रिलीज हुई इस फिल्म का निर्देशन मोहनजी प्रसाद ने किया था. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक बड़ा भाई अपनी पत्नी के साथ मिलकर अपने दो सौतेले भाइयों को पालता है. उन्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाता है. लेकिन शादी के बाद उनकी पत्नियां उनके साथ रहने से मना कर देती हैं. ऐसे में परिवार टूट जाता है. पारिवारिक जुड़ाव और बिखराव की कहानियों पर आधारित फिल्मों के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक नया दौर शुरू हुआ. साल 1994 में सूरज बड़जात्या की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' रिलीज हुई. इसमें सलमान खान, माधुरी दीक्षित, मोहनीश बहल, रेणुका शहाणे, अनुपम खेर, आलोक नाथ और रीमा लागू जैसे कलाकार लीड रोल में थे.

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'बागबान' ने मनोरंजन के साथ जागरूक भी किया

फिल्म 'हम आपके हैं कौन' ने परिवार को एक नए नजरिए के साथ पेश किया. परिवार के लिए त्याग कितना मायने रखता है, ये इस फिल्म में दिखाया गया है. इसमें सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों, संस्कृति, परंपरओं के साथ रोमांस भी देखने को मिलता है. लेकिन यहां रोमांस पारिवारिक मूल्यों के दायरे में हैं. आज की तरह बोल्ड नहीं है. इसके बाद साल 1999 में रिलीज हुई 'हम साथ-साथ हैं', 2001 में रिलीज हुई 'कभी खुशी कभी गम' और 2003 में रिलीज हुई 'बागबान' जैसी फिल्मों ने अलग-अलग तरह से परिवार को पारिभाषित करने का काम किया है. इनमें फिल्मों में 'बागबान' ने लोगों को जागरूक करने का भी काम किया था. इस फिल्म को देखने के बाद कई अभिभावकों ने अपने लिए वैकल्पिक व्यवस्था भी बनाई थी. भावुकता सबकुछ बच्चों के लिए करने के साथ अपने भविष्य के लिए सोचना शुरू किया. इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ा था.

बॉलीवुड को अपने पुराने दिनों से सीख लेनी होगी

वर्तमान समय की बात करें तो बॉलीवुड ने फैमिली फिल्मों की परिभाषा पूरी तरह बदल दी है. अब फैमिली फिल्म के नाम पर 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी', 'जरा हटके जरा बचके', 'तू झूठी मैं मक्कार', 'रक्षा बंधन', 'सुई धागा' और 'लव यू फैमिली' जैसी फिल्मों को परोसा जा रहा है. फिल्म के टाइटल में फैमिली जैसे शब्द रख लेने से वो पारिवारिक नहीं हो जाती, इसके लिए उस तरह के विषय का चुनाव करना पड़ता है. जैसा 90 के दशक के फिल्मों में देखने को मिलता था. सिनेमा समाज का आईना होता है. हमेशा दोनों एक-दूसरे से प्रभावित होते रहे हैं. लेकिन इसका मतलब कत्तई नहीं है कि क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर कुछ परोसा जाए. बॉलीवुड कुछ इसी तरह की गलती धर्म को लेकर करता रहा है. बहुतेरे हिंदी फिल्मों में हिंदू धर्म पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निशाना साधा गया है. लेकिन विरोध के बाद अब बदलाव शुरू हो चुका है. बॉलीवुड को अपने पुराने दिनों से सीख लेने की जरूरत है.

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