तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव में आरजेडी की हार की समीक्षा शुरू कर दी है. और, हकीकत जानने के लिए आरजेडी उम्मीदवारों से भी बात कर रहे हैं. 26 नवंबर से शुरू होकर 4 दिसंबर, 2025 तक चलने वाले समीक्षा कार्यक्रम की शुरुआत मगध प्रमंडल से हो चुकी है.
पहले दिन तेजस्वी यादव मगध प्रमंडल के आरजेडी नेताओं से ऑनलाइन जुड़े थे. सुनने में आया है कि उनकी टीम ऐसे लोगों की एक लिस्ट तैयार कर रही है, जिन पर भीतरघात का शक है. और, ऐसे बागी नेताओं की भी तलाश है, जो आरजेडी और महागठबंधन के उम्मीदवारों की हार की वजह बने.
कई रिपोर्ट ऐसी भी आ रही हैं, जिनमें स्थानीय आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव की भूमिका पर उंगली उठा रहे हैं. तेजस्वी यादव के बेहद करीबी और सबसे भरोसेमंद राज्यसभा सदस्य संजय यादव पर सबसे पहले तेज प्रताप यादव ने सवाल उठाया था - और बाद बिल्कुल वैसे ही आरोप लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी लगाए थे.
तेज प्रताप यादव तो संजय यादव को 'जयचंद' कहते आए हैं. चुनाव कैंपेन के दौरान एक वायरल वीडियो में तेज प्रताप के मुंह से ये शब्द सुनने को भी मिला था - अब तो लग रहा है संजय यादव आरजेडी नेताओं के भी निशाने पर आ गए हैं.
आरजेडी का बिहार चुनाव रिजल्ट समीक्षा कार्यक्रम
बिहार आरजेडी अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल, सीनियर आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और भोला यादव उम्मीदवारों के साथ मौजूद थे, जबकि तेजस्वी यादव ऑनलाइन जुड़े थे. मगध प्रमंडल के नेताओं को मीटिंग के लिए पटना बुला लिया गया था. समीक्षा कार्यक्रम में हारे हुए उम्मीदवारों के साथ साथ चुनाव जीत चुके विधायकों को भी शामिल किया जा रहा है. दिन में 11 बजे शुरू हुई आरजेडी की समीक्षा बैठक दोपहर बाद 3 बजे तक चली.
सभी उम्मीदवारों ने अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र की लिखित रिपोर्ट नेतृत्व को सौंपी है. और, बाकी इलाकों के उम्मीदवारों को भी ऐसा ही करने को कहा गया है. समीक्षा कार्यक्रम के दौरान ही ऐसे नेताओं की भी सूची बनाई जा रही है, जिनकी आरजेडी और महागठबंधन के उम्मीदवारों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है. सूची तैयार करने के बाद, उसमें शामिल नेताओं से अलग से बात की जाएगी. पूछताछ और जांच पड़ताल के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.
समीक्षा का ये कार्यक्रम भी दो चरणों में होगा, और उसके बाद जिन नेताओं की संदिग्ध भूमिका पाई जाती है, उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा. समीक्षा बैठकों में शामिल हारे हुए उम्मीदवारों से उन नेताओं से ये जानने की कोशिश की जा रही है कि वे कौन से नेता हैं, जिन्होंने पार्टी के खिलाफ काम किया, और हार का मुंह देखना पड़ा.
ये भी जानने की कोशिश है कि ऐसे कौन नेता थे जो आरजेडी के बजाए अपने इलाके में विरोधी दलों के लिए काम कर रहे थे, और खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ा. मगध के बाद सारण और पूर्णिया प्रमंडल की बारी है. 4 दिसंबर को पहला चरण पूरा हो जाने के बाद 5 से 9 नवंबर तक आरजेडी के जिलाध्यक्षों, प्रधान महासचिव और प्रदेश पदाधिकारियों के साथ ऐसी ही बैठक होगी. बैठक में आने वाले नेताओं से भविष्य के लिए जनहित के मुद्दों पर राय मांगी जा रही है, ताकि उसी के हिसाब से आगे की रणनीति तैयार की जा सके.
कैसे मालूम होगा, हार के लिए जिम्मेदार कौन है?
तेजस्वी यादव और लालू यादव के परिवार और पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों पर बारीक नजर रखने वाले लोग, और कुछ मीडिया रिपोर्ट को खंगालने पर ये तो साफ हो जाता है कि संजय यादव की कार्यशैली भी आरजेडी की हार की एक वजह हो सकती है. बीते घटनाक्रम को देखें, परिवार और पार्टी के नेताओं के बयानों पर गौर करें और बिखरी हुई कड़ियों को जोड़कर देखें तो बहुत कुछ समझा जा सकता है - और बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी की हार को समझना संभव हो सकता है.
1. तेजस्वी यादव का सुलभ न होना: जब आरजेडी के टिकट बांटे जा रहे थे तब कई वाकये देखने को मिले. आरजेडी नेता मदन साह का वायरल वीडियो आपको याद होगा. मदन साह टिकट के लिए आरजेडी दफ्तर पहुंचे थे, लेकिन उनको अंदर जाने ही नहीं दिया गया. मदन साह ने चुनाव नतीजे आने के बाद संजय यादव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन चाणक्य बोल कर इशारा जरूर किया था.
उन्हीं दिनों टिकट की दावेदार एक महिला नेता को ये कहते सुना गया था कि तेजस्वी यादव से उनके लिए मिल पाना मुश्किल हो रहा है. महिला नेता ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा था, तेजस्वी यादव से मिलना असंभव हो गया है, और संजय यादव उन जैसे लोगों को न जानते हैं, न पहचानते हैं.
हारे हुए उम्मीदवारों से पता चला है कि चुनाव के दौरान ऐसा माहौल ही बना दिया गया था कि तेजस्वी यादव किसी से मिल न सकें. उनका कार्यक्रम इतना व्यस्त बना दिया गया था कि बाकी चीजों के लिए समय बचे ही नहीं. और, सभी को उसी व्यवस्था की कीमत चुकानी पड़ी है.
2. मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम उम्मीदवार बता दिया जाना: जो आशंका चुनावों के दौरान जताई गई थी, उम्मीदवारों से भी वैसा ही फीडबैक मिल रहा है. तब भी ये चर्चा थी कि आबादी में कम हिस्सेदारी वाले को डिप्टी सीएम का चेहरा बना दिया गया, और बड़ी हिस्सेदारी वाले को कुछ नहीं मिला.
नतीजा ये हुआ कि आरजेडी को यादव वोट तो करीब करीब पूरे मिले, लेकिन मुस्लिम वोट बंट गए. मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बनाए जाने की घोषणा से मुस्लिम समुदाय नाराज था - और ऊपर से मुकेश सहनी अपना वोट भी आरजेडी को ट्रांसफर नहीं करा पाए. फ्रेंडली फाइट तो अलग ही मामला था.
3. टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के आरोप: रिपोर्ट के मुताबिक, टिकट बंटवारे में भी खूब घालमेल हुआ है. मदन साह ने भी पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया था, और हारे हुए उम्मीदवारों की भी मिलती जुलती ही शिकायत है. कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने का भी नुकसान हुआ है.
मौजूदा विधायकों के टिकट काटा जाना कोई नई बात नहीं है. हर पार्टी में ऐसा होता है, लेकिन उससे होने वाले नुकसान के एहतियाती इंतजाम भी कइए जाते हैं. दिल्ली चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने तो पहले से ही इसके बारे में बताना शुरू कर दिया था. चुनाव भले हार गए, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने प्रयास तो किए.
और, मालूम हुआ है कि नाराज नेताओं से तेजस्वी यादव ने कोई संवाद ही नहीं किया. वजह चाहे जो भी रही हो. चाहे खुद न किया हो, या व्यवस्था ही ऐसी बना दी गई हो - लेकिन, संवादहीनता का नुकसान तो तेजस्वी यादव को ही उठाना पड़ा है. बताते हैं, टिकट कट जाने के बाद वे नेता आरजेडी उम्मीदवार को ही हराने में जुट गए थे.
ये तो तय है कि उम्मीदवारों के फीडबैक के बाद तेजस्वी यादव उन सभी लोगों के खिलाफ एक्शन लेंगे, जो जिम्मेदार लगते हैं - लेकिन क्या ऐसा ही फैसला वो संजय यादव के मामले में भी ले पाएंगे, अगर ज्यादातर उम्मीदवारों ने उनकी भी शिकायत की?