महिला आरक्षण बिल पर कांग्रेस की मजबूरी खुल कर सामने आ चुकी है. हाल फिलहाल ये लगातार दूसरा मौका है जब कांग्रेस विपक्षी गठबंधन INDIA के किसी सहयोगी दल के सामने झुकी और मजबूर नजर आ रही है.
कांग्रेस ने जो स्टैंड अब जाकर लिया है, अगर 2010 में ही ये कर लिया होता तो महिला आरक्षण बिल 13 साल पहले ही पास हो गया होता. सबसे बड़ा फायदा ये होता कि सोनिया गांधी को महिला आरक्षण जल्दी लागू करने की भावनात्मक अपील करने की जरूरत भी नहीं पड़ती - और देश में महिला आरक्षण लागू करने का श्रेय लेने के लिए बीजेपी से संघर्ष करने की नौबत नहीं आती.
संसद में सोनिया गांधी के इमोशनल भाषण के वो 8 मिनट
विशेष सत्र के तीसरे दिन भी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने संसद जाते वक्त मीडिया के सवाल का जवाब दिया. सवाल था कि क्या वो भाषण देंगी, क्योंकि ये उनका ड्रीम बिल है.
सोनिया गांधी का कहना था, "ये राजीव गांधी का बिल था." करीब 24 घंटे पहले ही सोनिया गांधी ने बिल को लेकर कहा था, 'ये हमारा है... अपना है.'
लंबे अर्से बाद संसद में बोल रहीं सोनिया गांधी ने हिंदी में लिखा हुआ भाषण पढ़ा. बोलीं, 'मैं नारी शक्ति वंदन अधिनियम के समर्थन में बोल रही हूं... महिला ने असीम धीरज के साथ खुद को हारते हुए लेकिन आखिरी बाजी में जीतते हुए देखा... भारत की स्त्री के हृदय में सागर सा धीरज है... उसने अपने साथ हुई बेइमानी की शिकायत नहीं की.'
सोनिया गांधी ने भले ही भारतीय नारी के बहाने अपने साथ हुई बेइमानी की शिकायत नहीं की, लेकिन उनके हर शब्द में कटाक्ष था. निशाने पर बीजेपी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, और बीजेपी नेता अमित शाह भी. शिकायतों की फेहरिस्त भी लंबी है. नेशनल हेराल्ड केस में जमानत लेने के लिए मजबूर होने से लेकर ED की पूछताछ तक की शिकायत - और अब महिला आरक्षण बिल का श्रेय तक छीन लेने की शिकायत.
कांग्रेस की सबसे सीनियर नेता काफी भावुक नजर आ रही थीं, 'ये मेरे लिए मार्मिक क्षण है, मेरे जीवनसाथी राजीव गांधी का ये सपना था.' और फिर सोनिया गांधी ने कांग्रेस सरकारों में महिलाओं के लिए किये गये काम भी गिना डाले.
अब तक तो यही देखने को मिला है कि कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से दूरी बनाती आयी है, लेकिन सोनिया गांधी ने लगता है उनको माफ कर दिया है, 'पहली दफा स्थानीय निकायों में स्त्री की भागीदारी तय करने वाला संविधान संशोधन मेरे जीवन साथी राजीव गांधी जी ही लाये थे, जो राज्य सभा में 7 वोट से गिर गया था... बाद में पीवी नरसिम्हा राव जी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने ही पारित कराया.'
सोनिया गांधी ने कहा, 'राजीव गांधी जी का सपना अभी तक आधा ही पूरा हुआ है... इस बिल के पारित होने के साथ ही वो पूरा हो जाएगा.'
कांग्रेस नेता ने कहा, 'मैं सरकार से मांग करती हूं कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम की सारी दिक्कतें दूर कर इसे जल्द से जल्द लागू किया जाये.'
ये बीजेपी के विरोध का फंडा है या विपक्ष के साथ बने रहने की मजबूरी
महिला आरक्षण बिल को लेकर शुरू से ही कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा था कि ये पार्टी के लिए ये कितना मायने रखता है. इसी सिलसिले में 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष लिखी राहुल गांधी की चिट्ठी को भी नये सिरे से पेश किया गया. लोक सभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपनी टूटी-फूटी हिंदी और करीब करीब वैसी अंग्रेजी में अपनी तरफ से गुजारिश की थी कि सरकार को महिला आरक्षण बिल संसद में पेश लाकर पारित कराना चाहिये - और ये भी कि ये विधेयक उनकी नेता सोनिया गांधी के लिए कितना मायने रखता है.
लेकिन संसद में बिल पेश होते ही, कांग्रेस नेता बिलकुल अलग लाइन लेने लगे. बिल को मोदी सरकार का धोखा बताया जाने लगा. 2024 की कौन कहे, 2029 तक महिलाओं को आरक्षण का फायदा न मिल पाने की बात कही जाने लगी. पहले तो लगा कि ये सब बीजेपी से बिल का क्रेडिट छीनने की सियासी तरकीब है, लेकिन बाद में मालूम हुआ कि कांग्रेस ने तो बिलकुल यूटर्न ही ले लिया है.
पूरी तस्वीर तो तब जाकर साफ हुई जब सोनिया गांधी ने कोटे में कोटे वाली समाजवादी पार्टी और आरजेडी की मांग को विपक्ष के एजेंडे के रूप में पिरो कर सदन के पटल पर रख दिया - और नयी शर्तें भी जोड़ दी.
सोनिया गांधी बोलीं, 'मैं सरकार से मांग करती हूं कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रास्ते की सारी रुकावटों को दूर कर जल्द से जल्द लागू किया जाये.'
और साथ में एक बड़ी शर्त भी जोड़ दी, ये बिल अमल में लाया जाये, लेकिन इसके साथ ही कास्ट सेंसस कराकर... एससी-एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की जाये.
कांग्रेस नेता का कहना है कि बिल लागू करने में देरी घोर नाइंसाफी है, और ऐसा करना न सिर्फ जरूरी है, बल्कि संभव भी है.
ये काम तो 13 साल पहले ही हो गया होता
संसद के विशेष सत्र में सोनिया गांधी ने आरक्षण के लिए महिलाओं के लंबे इंतजार का भी मुद्दा उठाया, महिलाएं अपने हक के लिए इंतजार कर रही हैं, लेकिन अब उनसे और भी इंतजार करने को कहा जा रहा है... दो साल... चार साल... पांच साल? कितना लंबा होगा ये इंतजार?'
अगर कांग्रेस की तरफ से महिला आरक्षण बिल में कास्ट-सेंसस का क्लॉज नहीं जोड़ा गया होता तो, सोनिया गांधी के सवाल बिलकुल वाजिब लगते - लेकिन अब ये बेमानी लगता है.
सोनिया गांधी कह रही थीं, बिल लाये जाने से खुशी तो है, लेकिन चिंता भी है... 13 साल से महिलाएं अपने नेतृत्व का इंतजार करती रही हैं... क्या ये बर्ताव उचित है?
आखिर सोनिया गांधी ये कैसे भूल जा रही हैं कि जो मांग अब उठा रही हैं, अगर 13 साल पहले ही मान ली होती तो किसी को ये दिन देखने ही नहीं पड़ते. पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए ही तो आरक्षण की मांग हो रही थी.
यही तो एक बड़ी वजह थी कि आरजेडी सांसद ने सदन के वेल में पहुंच कर बिल की कॉपी फाड़ डाली थी. संसदीय समितियों में समाजवादी पार्टी के संसद सदस्यों ने पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण दिये जाने की मांग करते हुए बिल के मसौदे का विरोध किया था.
ये तो ऐसा लगता है जैसे दिल्ली सेवा बिल पर आम आदमी पार्टी के दबाव में कांग्रेस झुक गयी, ठीक वैसे ही अब समाजवादी पार्टी और आरजेडी के आगे महिला बिल को लेकर घुटने टेक दिये.
ये भी विडंबना है कि कांग्रेस उन राजनीतिक दलों के लिए बैकफुट पर चली गयी है, जिनकी वजह से महिला बिल अब तक लटका रहा. जिन राजनीतिक दलों के डर से 2010 में राज्य सभा से पास होने के बावजूद कांग्रेस यूपीए सरकार के वक्त ये बिल लोक सभा में पेश नहीं कर सकी, अब उनके साथ ही खड़ी हो चुकी है.
अगर सोनिया गांधी ने समाजवादी पार्टी और आरजेडी की मांग अपनी सरकार में ही मान ली होती तो महिला बिल पास हो गया होता - और आज बीजेपी के साथ उसे क्रेडिट के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता.