scorecardresearch
 

शादी और प्यार दो अलग बातें हैं! रॉकी-रानी की प्रेम कहानी के बीच जामिनी-कंवल कितने सही और कितने गलत?

कई बार जीवन भर का साथ प्रेम नहीं दे सकता है और कई बार कुछ मिनट का साथ भी प्रेम से भर देता है. मेरी आंखों के सामने इतना ही चल रहा था. एक तरफ धनलक्ष्मी जो कंवल की पत्नी थी, लेकिन इसके सिवा और कुछ भी नहीं थी. और दूसरी तरफ जामिनी जो कंवल की कुछ भी न होकर सब कुछ थी. अपनी औलाद को आंखों के सामने ख़ुद से दूर होते देखना, प्रेम को जीवन में खो देना... सब कुछ कंवल की आंखों में देखा जा सकता था.

Advertisement
X
फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का एक सीन
फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का एक सीन

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी जैसी प्रेम कहानियां शायद ही इस दुनिया में कहीं एग्जिस्ट करती हों. एक अमीर लड़के का प्यार में पड़ जाना. गिफ्ट के नाम पर गूची, एलवी की बातें करना. फ़रारी लेकर आगे पीछे डोलते रहना, एक मिडिल क्लास लड़के से नहीं कनेक्ट कर सकता. मुझसे तो बिलकुल भी नहीं, हालांकि मैं अक्सर जब बहुत उलझ जाता हूं तो ऐसी फ़िल्में देखना पसंद करता हूं जिनमें भरपूर मसाला हो. जैसे- हीरो के एक मुक्के से उसका दुश्मन चांद पर पहुंच जाए. पांव घुमा कर तूफ़ान उठा दे.  

लॉजिक और कहानी से परे फ़िल्में कई बार स्ट्रेस बस्टर की तरह होती हैं. इसी कड़ी में बीते दिनों मैंने 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' देखने का तय किया. थियेटर पूरी तरह से भरा था. मैंने अपनी सीट पकड़ ली. फिल्म की शुरुआत से ही समझ आ जाता है कि यह फिल्म यहां बैठे किसी भी शख्स से कनेक्ट नहीं कर पाएगी. क्योंकि मिडिल क्लास फैमिली से आने वाला लड़का रॉकी रंधावा की तरह नहीं हो सकता. 

आसपास के लोग सीटियां मार रहे थे, रणवीर सिंह की बॉडी देख लड़कियां शोर मचाएं तो वहीं हर किसिंग सीन के दौरान हॉल सीटियों से भर जाए. थियेटर के अंदर फिल्म और ऑडियंस दोनों एक जैसे ही थे- फुल मसाला. इस सब के बीच अचानक मुझे मेरा हीरो मिल गया. एक हिस्सा ख़त्म कर चुकी फिल्म अब मेरे लिए शुरू हुई थी. मैं मेरे हीरो की आंखों में देख रहा था.  

Advertisement

जामिनी! तुम आ गईं जामिनी... कहते हुए धर्मेंद्र अचानक से महफ़िल में एक महिला के गालों को चूम लेते हैं. फिल्म में रॉकी यानी कि रणवीर समेत परिवार के सभी लोग भागते हैं कि व्हीलचेयर पर बैठे कंवल दादा जी ने यह क्या कर दिया. कुछ ही देर में यह समझ आ जाता है कि फिल्म की कहानी में धर्मेंद्र किसी ट्रॉमा के साथ ज़िंदगी की बची हुई सांसे गिन रहे हैं.

फिल्म के एक सीन में धर्मेंद्र

 

जामिनी... धर्मेंद्र को यह नाम एक शायरी पर याद आया था. डॉक्टर भी कहते हैं कि जामिनी नाम के शख्स की तलाश करो, शायद उनके पास ही धर्मेंद्र की ज़िंदगी हो. शायद वो शख्स ही इनकी असली दवा हो. ऐसा ही होता भी है, जामिनी को देख कर सालों से व्हीलचेयर पर बैठे कंवल उठ खड़े होते हैं. सालों से एक शब्द न बोल पा रहे कंवल गाना गा रहे होते हैं- अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं! 

फिल्म में जामिनी कोई और नहीं बल्कि रानी यानी आलिया की दादी शबाना आज़मी हैं. जामिनी चटर्जी. दशकों पहले जामिनी और कंवल की मुलाक़ात शिमला में होती है. और सात दिन साथ बिताने के बाद दोनों को समझ आ चुका होता है कि उनके बीच प्यार का रिश्ता है. वो दोनों सोल मेट हैं. लेकिन दोनों ही शादी शुदा होते हैं. इसलिए अपने परिवार के लिए दोनों एक दूसरे से अलग होने का फैसला कर कभी न मिलने का वादा ले लेते हैं. 

Advertisement

मेरा हीरो इस जुदाई को नहीं सह पाता है और एक ट्रॉमा में चला जाता है. और व्हीलचेयर के सहारे अपनी ज़िंदगी के बचे हुए दिन गिनने लगता है. और अलमारी में रखी एक लाल डायरी पर नज़र बनाए रखता है जिसमें जामिनी की एक तस्वीर रखी होती है. लेकिन सवाल यह था कि एक पत्नी के होते हुए कंवल दूसरे प्रेम में कैसे आया? और इस कदर आया कि उसकी जुदाई में हमेशा-हमेशा के लिए जड़ हो गया. कभी पैरों पर खड़ा नहीं हुआ? इस सवाल के लिए सबसे ज़रूरी था कंवल की पत्नी को समझना. 

कंवल की पत्नी धनलक्ष्मी एक बड़े बिजनेस एंपायर की मालकिन थीं. जिन्होंने अपने बेटे की नसों में मर्द होने का इंजेक्शन लगाया और उसे यह समझाया कि वो अपने बाप से दूर रहे और अपनी पत्नी-बेटी पर राज करे. धनलक्ष्मी ने कंवल को न ख़ुद प्यार दिया और न कभी किसी को उनसे प्यार करने दिया. ऐसे में लाज़मी था कि अंधेरे कमरे में आती रौशनी की एक लकीर भी सूरज जैसी महसूस होने लगे. 

जामिनी और कंवल की मुलाक़ात में कंवल और जामिनी के जीवन की सबसे बड़ी कमी पूरी हुई और वो थी दोनों के जीवन में प्रेम का न होना. जामिनी अपनी पहली मुलाक़ात को बताते हुए कहती हैं कि उस दिन एक महफ़िल में फ़राज़ के एक शे'र पर हम दोनों की एक साथ 'वाह' निकली थी, मुझे उसी वक़्त लगा कि कोई है जो मेरी रूह को पहचानता है. यही प्रेम की निशानी है, रूह को पहचानना. 

Advertisement

कई बार जीवन भर का साथ प्रेम नहीं दे सकता है और कई बार कुछ मिनट का साथ भी प्रेम से भर देता है. मेरी आंखों के सामने इतना ही चल रहा था. एक तरफ धनलक्ष्मी जो कंवल की पत्नी थी, लेकिन इसके सिवा और कुछ भी नहीं थी. और दूसरी तरफ जामिनी जो कंवल की कुछ भी न होकर सब कुछ थी. अपनी औलाद को आंखों के सामने ख़ुद से दूर होते देखना, प्रेम को जीवन में खो देना... सब कुछ कंवल की आंखों में देखा जा सकता था. कंवल का जीवन बहुत नहीं था, सो उन्होंने जल्दी ही दुनिया को अलविदा कह दिया. सिनेमा के पर्दे पर पत्नी और प्रेमिका के दुःख में ज़मीन आसमान का अंतर था.

कई बार हम यह समझाने में हार जाते हैं कि शादी और प्रेम, यह दो अलग चीज़ें हैं. कई बार हम जिसके साथ सात फेरे लेते हैं ज़रूरी नहीं वो ही हमारा सोल मेट हो. कितनी ही बार हम कह नहीं पाते हैं कि हमारा रिश्ता यहीं तक था. इसके आगे हमारे लिए कुछ नहीं. कई बार हम यह कहते-कहते रह जाते हैं कि हमारे बीच अब कुछ नहीं बचा. कई बार हम जाते हुए शख्स को विदा नहीं कह पाते हैं और जीवन भर के लिए हवा में हाथ हिलाते हुए खड़े रह जाते हैं. कई बार हम अपने प्रेमी को बता ही नहीं पाते हैं कि हमें भी उससे प्यार है. अक्सर हम दो ज़िंदगियों के बीच झूलते रह जाते हैं.       

Advertisement

धनलक्ष्मी और जामिनी के बीच झूलता कंवल न तो धनलक्ष्मी से कह सका कि वो उसके साथ खुश नहीं है और न ही जामिनी से यह कह सका कि उसके बिना उसका जीवन अधूरा है. धनलक्ष्मी ने कंवल को कैद कर रखा था तो जामिनी ने कंवल के जीवन में आकर उसे आज़ाद किया. दोनों के प्रेम में बस इतना ही अंतर था. इसी लिए जितनी बार जामिनी और कंवल की मुलाकात होती, कंवल अपनी बीमारी से रिकवर होने लगते. जैसे रॉकस्टार में जॉर्डन के पास होने मात्र से हीर की नसों में खून दौड़ने लगता था. 

फिल्म के एक सीन में धर्मेन्द्र और शबाना आज़मी

हमें समझना चाहिए कि स्वतंत्रता से बड़ा कोई बंधन नहीं होता है. हम अपने आपको जिस किसी के पास/ जहां भी सबसे अधिक स्वतंत्र पाते हैं, वहां बंध जाते हैं. दुनिया भ्रमण कर लेने के बाद भी हम वहीं लौटते हैं जहां हम स्वतंत्र हैं. हम वहीं स्वस्थ हैं. यही हमारा मूल प्रेम है. जब हम स्वयं या अन्य किसी को स्वतंत्रता का बोध कराते हैं तो उसी क्षण प्रेममय हो जाते हैं. और जैसे ही किसी को क़ैद करते हैं दुनिया में सबसे अकेले व्यक्ति बन जाते हैं. हमारे पास कोई भी नहीं होता, खुद हम भी नहीं. जैसे रॉकी रानी की प्रेम कहानी में धनलक्ष्मी. 

Advertisement

यह सब लिखते-लिखते फिल्म संग्राम में समीर के लिखे गाने की एक लाइन याद आ रही है- दिल पे किसी का इख़्तियार होता कहां है, करने से दुनिया में प्यार होता कहां है.

Advertisement
Advertisement