ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान में अपनी क्षमता का प्रदर्शन तो किया ही पर इसके जरिए जो खास बात हुई है वह यहा है यह भारत की रणनीतिक, तकनीकी और कूटनीतिक ताकत को दुनिया के सामने लाने में सफल हुआ है.इस ऑपरेशन ने न केवल पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया, बल्कि वैश्विक शक्तियों जैसे चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका (US), और तुर्किए को भी गहरे आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है.
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले के बाद 26 पर्यटक की जान का बदला लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठानी थी. भारत का मानना है पहलगाम आतंकी हमले में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों का हाथ था. 7 मई की रात को शुरू हुए इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया. महज 23 मिनट में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के प्रमुख एयरबेस, जैसे नूर खान और रहीम यार खान, को ध्वस्त कर दिया. इस ऑपरेशन में स्वदेशी हथियारों जैसे ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश एयर डिफेंस सिस्टम, और लॉइटरिंग म्यूनिशन का उपयोग किया गया, जिसने भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया. इस तरह का उन्नत तकनीक वाले हमले से केवल पाकिस्तान ही नहीं हैरान हुआ बल्कि अमेरिका, चीन जैसे वैश्विक ताकतवर देशों में बेचैनी छाई हुई है.
1. चीन: सैन्य और कूटनीतिक झटका
चीन, जो पाकिस्तान का ‘सदाबहार दोस्त’ है, ऑपरेशन सिंदूर से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, इसका प्रभाव कई लेयरों में देखा जा सकता है. सबसे पहले तो चीन को यह अहसास हुआ है कि भारत को पहले जैसा अब कमतर नहीं आंका जा सकता है. चीन समझ गया है कि अगर कभी भी आक्रामक बिहेव करते हैं तो भारत जवाबी कार्रवाई कर सकता है.
चूंकि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने चीन के एचक्यू-9 एयर डिफेंस सिस्टम और पीएल-15 मिसाइलों को निष्क्रिय कर दिया. पाकिस्तान ने इन हथियारों पर भरोसा किया था, लेकिन भारत ने इन्हें बेकार साबित कर दिया. पाकिस्तान इससे इनकार कर सकता है पर भारतीय एस-400 ने जिस तरह पाकिस्तानी मिसाइलों से देश की रक्षा की वह काबिलेतारीफ थी. इसके उलट चाइनीज सिस्टम भारत के ब्रह्मोस मिसाइलों की रक्षा करने में असफल साबित हुआ. इससे चीन के हथियारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे और उसके रक्षा निर्यात बाजार को गहरा झटका लगा. यही कारण है कि चीन की रक्षा कंपनियों, जैसे Avic Chengdu Aircraft, के शेयरों में 11% से अधिक की गिरावट देखी गई. इस गिरावट को इस रूप में देखा जा रहा है कि वैश्विक बाजार में चीनी हथियारों पर भरोसा कम हो रहा है.
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की ब्रीफिंग के लिए 70 देशों के डिफेंस अटैशे को आमंत्रित किया, लेकिन चीन को न्योता नहीं दिया. यह एक स्पष्ट संदेश था कि भारत चीन को अपनी रणनीतिक योजनाओं से बाहर रखना चाहता है. मतलब साफ है कि भारत और चीन पहले से और दूर हुए हैं. भारत के इस एक कदम से पूरे साउथ एशिया को चीन को उसकी हैसियत भारत ने दिखा दी है. जाहिर है इसका प्रभाव इस रीजन में पड़ना तय है. चीन के साथ दिक्कत यह है कि वह एक साथ अमेरिका और भारत दोनों से पंगा लेने के मूड में नहीं है. क्योंकि ऑर्थिक मोर्चे पर उसके लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है.
एक भारतीय रिसर्च ग्रुप ने खुलासा किया कि चीन ने पाकिस्तान को सैटेलाइट, रडार, और खुफिया जानकारी प्रदान की थी. इससे चीन की तटस्थता पर सवाल उठे और उसकी क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने वाली नीतियों की आलोचना हुई है. जाहिर है कि चीन अपनी इन हरकतों के बल पर दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने का सपना पूरा नहीं कर पाएगा.
चीन ने अपने मीडिया आउटलेट्स, जैसे ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ, के जरिए भारत के खिलाफ प्रचार किया. चीन के इस दुष्प्रचार का भारत ने माकूल जवाब दिया. भारत ने इन न्यूज एजेंसियों की फर्जी खबरों का खंडन करके और सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए अपनी कार्रवाई की सत्यता साबित करके चीन को बैकफुट पर भेजने का काम किया है.
2. संयुक्त राज्य अमेरिका की कूटनीतिक उलझन
संयुक्त राज्य अमेरिका, जो भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रणनीतिक संबंध रखता है, ऑपरेशन सिंदूर के बाद कूटनीतिक उलझन में फंस गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत और पाकिस्तान को समान रूप से एक तराजू पर तौलने की कोशिश की और युद्धविराम की बात की. यही नहीं उन्होंने कश्मीर समस्या के लिए मध्यस्थता की पेशकश जी. भारत ने इसे खारिज करते हुए कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकार दिया.
यही नहीं भारत ने न केवल उनके द्वारा युद्धविराम करवाने की बात को नकार दिया गया. जाहिर है कि वैश्विक लेवल पर अमेरिका और ट्रंप की चौधरी बनने वाली इमेज पर बहुत गहरा आघात लगा है. इतना ही नहीं अमेरिका के लिए मुश्किल यह भी है कि वह भारत को नाराज भी नही करना चाहता है. अमेरिका कभी नहीं चाहेगा दक्षिण एशिया में भारत उसका खुलकर विरोध करने वाला बन जाए.
अमेरिका और अन्य क्वॉड देश (जापान, ऑस्ट्रेलिया) ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान केवल बयानबाजी की, लेकिन भारत का खुलकर समर्थन नहीं किया. इससे भारत में यह धारणा मजबूत हुई कि अमेरिका अपने हितों के लिए दोहरा रवैया अपनाता है. जाहिर है कि अमेरिका को यह चिंता खाए जा रही है कि भारत अगर क्वाड से दूर होने की कोशिश करे तो यह संगठन बहुत कमजोर जो जाएगा. दूसरे भारत के चीन और रूस के गठबंधन में जाने की आशा बलवती होगी.
भारतीय हथियारों ब्रह्मोस, S 400 आदि के प्रभाव से भी अमेरिका चिंतित हुआ है. दरअसल रूस से प्राप्त S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के शानदार प्रदर्शन ने अमेरिका को असहज किया. अमेरिका ने भारत को S-400 खरीदने के लिए पहले धमकी दी थी, लेकिन इस ऑपरेशन ने रूसी हथियारों की प्रभावशीलता को साबित कर दिया.
ऑपरेशन में स्वदेशी हथियारों और तकनीकों का उपयोग, जैसे ब्रह्मोस, आकाश, और लॉइटरिंग म्यूनिशन, ने भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया है. अमेरिका की नींद इसलिए भी उड़ी हुई है क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और सैन्य क्षमता को उजागर किया, जिसे नियंत्रित करना अमेरिका के लिए मुश्किल हो सकता है.
3. तुर्किेए: सहयोगी की भूमिका और बायकॉट का सामना
तुर्किेए ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, जिसके कारण उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा सकता है. तुर्किेए ने पाकिस्तान को 350 से अधिक ड्रोन, जैसे Bayraktar TB2 और Anka, प्रदान किए. इसके अलावा, तुर्किेए के सैन्य सलाहकार और दो सैन्य अधिकारी भी पाकिस्तान में तैनात थे, जिनमें से दो की मौत की खबरें आई है.
तुर्किेए के ड्रोन्स को जिस तरह भारतीय सेना ने मार गिराया और उनकी मलबे की तस्वीरें तस्वीरें सार्वजनिक कीं हैं उससे तुर्किेए बहुत से देशों को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया है. तुर्किए के पाकिस्तान समर्थन ने भारत में आक्रोश पैदा किया है. भारतीय नागरिकों और व्यापारियों ने तुर्किए के उत्पादों, विशेष रूप से तुर्किए सेबों का बहिष्कार शुरू कर दिया. देश भर से ऐसी खबरें आईं हैं कि इस साल तुर्किए जाने वाले लोगों ने अपनी बुकिंग कैंसल कराई है. तुर्किेए की नींद इसलिए भी उड़ी हुई है क्योंकि उसकी क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने वाली नीति ने उसे भारत जैसे उभरते हुए शक्ति केंद्र के सामने कमजोर कर दिया. जाहिर है कि भारत भी तुर्किए के खास दुश्मनों के साथ वही व्यवहार करेगा जो उसने पाकिस्तान के साथ किया है.