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आज भाजपा के पास है रियल हाई कमांड, नेतृत्‍व आगे ला रहा है 'गली बॉयज'

नितिन नबीन को बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाना उन घटनाओं की अगली कड़ी है, जिनमें 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद नेतृत्व ने एक के बाद एक मोहन यादव, भजनलाल शर्मा जैसे नए सीएम कुर्सी पर बैठा दिए. BJP में नेतृत्व के फैसलों पर कोई प्रतिरोध नहीं होता. एक्‍सपर्ट्स मानते हैं कि जो मोदी-शाह कहें, वही अंतिम.

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बीजेपी हाई कमांड का मतलब, उसके फैसले पर न बहस, न विरोध. दिल्ली में नितिन नबीन को सम्मानित करते केंद्रीय मंत्री अमित शाह. (Photo: PTI)
बीजेपी हाई कमांड का मतलब, उसके फैसले पर न बहस, न विरोध. दिल्ली में नितिन नबीन को सम्मानित करते केंद्रीय मंत्री अमित शाह. (Photo: PTI)

दिल्ली के बीजेपी दफ्तर में एक खास नजारा देखा गया. देखे जाने से ज्यादा इसे महसूस किया गया. एक दृश्य है, बीजेपी के नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन कुर्सी पर बैठे हैं, और उनके अगल-बगल बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खड़े हैं. एक्सपर्ट इसे खास तौर पर ऐसे देख रहे हैं, जैसे किसी को कहीं से उठाकर कहीं भी बिठाया जा सकता है. 

मतलब, बीजेपी नेतृत्व अब ऐसी स्थिति को प्राप्त कर चुका है कि पार्टी ही नहीं, जहां कहीं भी पार्टी की सरकार है, एक कमांड पर पूरी व्यवस्था को बदल सकता है. नितिन नबीन का केस लेटेस्ट जरूर है, लेकिन ये काफी दिनों से देखा जा रहा है. नीचे से ऊपर तक, प्रत्येक स्तर पर.

देश के जाने माने एक्सपर्ट नितिन नबीन की नियुक्ति को 'गली बॉय' पॉलिटिक्स से लेकर बीजेपी में 'रियल हाई कमांड' के मजबूत पकड़ और प्रभाव के रूप में देख रहे हैं. और, नितिन नबीन के मामले को कुछ कुछ वैसे ही मान रहे हैं, जैसे फिल्म दोस्ताना के एक गीत की लाइन है, 'बैठा दिया फलक पे, मुझे खाक से उठा के'

सारी शक्तियां मोदी-शाह के हाथ में

इंडिया टुडे टीवी के एक डिबेट में सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई समझाते हैं, जब आपके पास एक मज़बूत हाई कमांड होता है, तब आप जो चाहें वो कर सकते हैं. ये बात हमें ध्यान में रखनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि सिर्फ नितिन नबीन को आज बिना किसी विरोध के बनाया जा सकता है. गुजरात में कैबिनेट रातों-रात बदली जा सकती है, बिना किसी विरोध के. मध्य प्रदेश में मोहन यादव को कई वरिष्ठ नेताओं से ऊपर रखा जा सकता है, बिना किसी विरोध के. राजस्थान में वसुंधरा राजे को दरकिनार कर भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. पुष्कर सिंह धामी को तकरीबन गुमनामी से निकालकर मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, तो फिर नायब सैनी क्यों नहीं? वजह साफ है - क्योंकि, आपके पास एक हाई कमांड है.

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नितिन नबीन जैसे फैसले इसलिए लिए जा पाते हैं, राजदीप सरदेसाई कहते हैं, क्योंकि आज बीजेपी के पास भी एक मजबूत हाई कमांड है. आज की तारीख में कांग्रेस की स्थिति ठीक विपरीत है. आज कांग्रेस के पास कोई प्रभावी हाई कमांड नहीं है. न ऐसा मजबूत हाई कमांड है जो वास्तविक बदलाव कर सके, और जिन लोगों को दरकिनार किया गया है, उनको समायोजित भी कर सके. 

मजबूत हाई कमांड होने का यही फायदा होता है, और शो की एंकर भी अपनी राय रखती हैं, आज कई लोग कहेंगे कि कांग्रेस के पास भी वैसे मौके थे। सच ये है कि कांग्रेस आज कई लेवल पर इसलिए जूझ रही है, क्योंकि उसने मौके गंवाए.

राजदीप सरदेसाई बात को आगे बढ़ाते हैं, लेकिन ये भी स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ये है कि जब कांग्रेस अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनाना चाहती थी, तो अशोक गहलोत ने मना कर दिया. क्या इंदिरा गांधी के दौर में ऐसा कभी संभव होता कि कोई क्षेत्रीय नेता हाई कमांड के पास जाकर कहे कि माफ कीजिए, मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं बनूंगा?

बहस आगे बढ़ती है, तो कई और भी पहलू सामने आते जाते हैं - 

1. देश की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव आया है. भारतीय राजनीति का पावर सेंटर बीजेपी की ओर खिसक गया है. अब बीजेपी में भी हाई कमांड कल्चर है, जहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बातों को कोई चैलेंज नहीं कर सकता. वे जिस किसी को भी चुनते हैं, पूरा कैडर उसे स्वीकार कर लेता है. 

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2. राजदीप सरदेसाई की राय में, बीजेपी के हर मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ही रिंग मास्टर हैं. कुछ मामलों में आरएसएस के पास वीटो का अधिकार हो सकता है, लेकिन सत्ता की असली चाबी सिर्फ मोदी-शाह के पास है.

3. कांग्रेस का जिक्र करते हुए राजदीप सरदेसाई कहते हैं, गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती कांग्रेस की राजनीति बिना विरोध के युवा नेतृत्व को किसी और के गढ़ में आगे बढ़ाने में नाकाम हो जाती है. आखिर राजस्थान में सचिन पायलट को चेहरा क्यों नहीं बना सके? या उससे पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया चेहरा क्यों नहीं बन सके? क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व ओल्ड गार्ड को संभाल पाने में असफल रहा. 

4. सत्ता में होने, और न होने का भी बहुत फर्क पड़ता है. राजदीप सरदेसाई याद दिलाते हैं, यूपीए सरकार के समय मिलिंद देवड़ा, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे. तब ये सभी 30-40 साल रहे होंगे. तब पद भी उपलब्ध थे, और मंत्रालय भी. आज की तारीख में कांग्रेस किसी युवा नेता को क्या दे पाएगी? 

जब तक पुराने दिग्गजों और मठाधीशों से साफ साफ ये नहीं कहा जा सके कि अब बहुत हो गया... और पूरी तरह से नई पीढ़ी की ओर नहीं बढ़ने की कोशिश करते.

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बीजेपी अब ऑटो-पायलट मोड में आ चुकी है 

सीनियर पत्रकार नीरजा चौधरी नितिन नबीन के केस को उसी कड़ी का हिस्सा मान रही हैं, जिस तरह से 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कमान बदल दी गई. नीरजा चौधरी नितिन नबीन को अनजान व्यक्ति नहीं मानतीं. कहती हैं, उनके पास व्यापक अनुभव है. वे पांच बार के विधायक हैं. प्रशासनिक अनुभव रखते हैं. संगठन में काम किया है - लिहाजा, वो कोई नए या कच्चे हाथ नहीं माने जा सकते.

1. ये उस नए मॉडल का हिस्सा है जिसे बीजेपी जमीन पर उतार रही है. नीरजा चौधरी का कहना है, जैसा कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता कहते हैं, पार्टी अब लगभग ऑटो-पायलट मोड में है... फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी कमान कौन संभालेगा, क्योंकि पार्टी इतनी मजबूत हो चुकी है कि वो प्रभावी रूप से काम करती रहेगी.

2. बेशक, नीरजा चौधरी के मुताबिक, आज पार्टी और सरकार की व्यवस्था पर कंट्रोल की बात करें तो प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी शीर्ष पर हैं, लेकिन वास्तविक कंट्रोल मूल रूप से अमित शाह के पास है. और मुझे लगता है कि अब हम उनकी टीम को व्यवस्थित और रूप में स्थापित होते देख रहे हैं. आरएसएस की भूमिका भी रही है. 

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3. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पकड़ इसलिए भी मजबूत है क्योंकि वे चुनाव जीत रहे हैं. कांग्रेस का हाईकमान इसलिए प्रभावी नहीं दिखता क्योंकि वो चुनाव नहीं जीत पा रहा है. सब कुछ चुनावों से जुड़ा है, और कुछ नहीं.

नितिन नबीन, बीजेपी के 'गली बॉयज' का हिस्सा हैं

राजनीतिक विश्लेषक मनीषा प्रियम नितिन नबीन को बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को ‘गली बॉयज’ की जीत के रूप में देख रही हैं. और, बीजेपी को ऐसा कलेवर देने का क्रेडिट वो अमित शाह को दे रही हैं. 

1. नितिन नवीन का उभार पटना के उन ‘गली बॉयज’ की जीत है, जिन्होंने लालू विरोधी राजनीति को जिंदा रखा, सुशील मोदी जी के नेतृत्व को लेकर असहजता के बावजूद राजनीति को आगे बढ़ाया, और एक झटके में नीतीश कुमार विरोधी रुख को भी साधा - और, जिन्हें अमित शाह बीजेपी के लिए एक नए कैडर के रूप में तैयार कर रहे थे. 

ये गली बॉयज 2020 में नीतीश कुमार के नेतृत्व के बिना भी बीजेपी के सरकार बना लेने की संभावना को लेकर सक्रिय थे. और, बिहार के अलावा बाकी जगह भी बीजेपी की राजनीतिक मुहिम का मजबूती से सपोर्ट किया.

2. ये गली बॉयज और नितिन नबीन - सभी ने बेहद अहम भूमिका निभाई. मनीषा प्रियम बताती हैं कि चुनाव के दौरान किसी ने बातों बातों में नितिन नबीन के भविष्य की तरफ इशारा भी किया था. लेकिन, ये भी सच है कि कोई भी ये कल्पना नहीं कर सकता था कि नितिन नबीन को इतना बड़ा पद मिलेगा.

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3. मनीषा प्रियम कहती हैं, जाहिर है, उनके पास पूरे राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी जैसी पार्टी चलाने का अनुभव नहीं है, लेकिन उनके भीतर निर्देशों पर काम करने की ऊर्जा है. और, मुझे लगता है कि उनके पीछे एक मजबूत संगठनात्मक और राजनीतिक टीम खड़ी है. नितिन नबीन टीम के साथ काम करने के लिए फिट हैं.

 

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