नीतीश कुमार पहले भी नीति आयोग की बैठक स्किप कर चुके हैं. लेकिन, तब और अब के राजनीतिक समीकरण बिल्कुल अलग हैं. ममता बनर्जी का नीति आयोग की बैठक में न आना अलग मामला है. ऐसा भी हुआ है कि ममता बनर्जी बैठक के बीच ही ये कहते हुए छोड़ कर निकल गई हैं कि बोलने नहीं दिया जाता. राहुल गांधी भी अक्सर बोलने न देने का आरोप लगाते रहे हैं.
24 मई को नीति आयोग की 10वीं बैठक बुलाई गई थी.ये ऑपरेशन सिंदूर के बाद, प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों के साथ ऐसी कोई पहली बैठक थी. ममता बनर्जी को लेकर तो नहीं, लेकिन नीतीश कुमार के न पहुंचने पर सबको हैरानी हुई. ज्यादा हैरानी इसलिए भी क्योंकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन भी नीति आयोग की मीटिंग में शामिल हुए.
नीति आयोग नहीं, एनडीए मुख्यमंत्रियों की बैठक में शामिल
नीतीश कुमार पटना से ही तय करके निकले थे कि वो नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होंगे. तब भी जब वो दिल्ली में मौजूद रहेंगे. लगातार दो दिन तक. नीति आयोग की बैठक से दूरी बनाने के सवाल उठने पर नीतीश कुमार ने कहा भी, हम नीति आयोग की बैठक के लिए नहीं आये हैं... प्रधानमंत्री और एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने आये हैं... एनडीए की बैठक का समय बढ़ा दिया गया है, और उसी बैठक में भाग लेंगे.
नीति आयोग की तरफ से सोशल साइट X पर प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देते हुए कहा गया है, 'हमें विकास की गति बढ़ानी होगी… अगर केंद्र और सभी राज्य मिलकर टीम इंडिया की तरह काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है.
सही बात है. लेकिन, नीतीश कुमार ऐसी बैठक से दूरी क्यों बनाये, जबकि बिहार को तो विकास की ज्यादा ही जरूरत है. नीतीश कुमार तो बरसों से बिहार के लिए स्पेशल पैकेज मांगते रहे हैं. ये बात अलग है कि बार बार पाला बदलने के बाद भी केंद्र सरकार की तरफ से बिहार को वो नहीं मिल सका है. हां, चुनावी साल में आम बजट में मखाना आयोग जैसी सौगातें जरूर मिल चुकी हैं.
एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक ऑपरेशन सिंदूर, जाति जनगणना और नीतीश कुमार के पसंदीदा टॉपिक सुशासन पर विस्तार से चर्चा हुई.
केंद्र की एनडीए सरकार में नीतीश कुमार भी एक मजबूत खंभा हैं, और प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी पारी के भी एक साल पूरे होने वाले हैं, जिसके जश्न के लिए प्रमुख कार्यक्रमों की तैयारियों पर भी विचार-विमर्श हुआ.
और, खास बात ये भी है कि अगले ही महीने देश में लागू इमरजेंसी के भी 50 साल पूरे हो रहे हैं, और ये तो कांग्रेस को घेरने के लिए बड़ा मौका होता है. लिहाजा एनडीए की बैठक में ये भी तय हुआ कि सभी एनडीए शासित राज्यों में इस मौके पर खास कार्यक्रम होंगे, ताकि लोगों को कांग्रेस शासन में लगे आपातकाल की भयावहता की याद दिलाई जा सके.
क्या नीतीश कुमार बीजेपी की तरफ से बेफिक्र हो चुके हैं?
नीतीश कुमार की मुलाकात वैसे तो पहलगाम आतंकी हमले के बाद मधुबनी की रैली में हुई थी. वहां भी नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से अपना वादा दोहराया था, अब कहीं नहीं जाएंगे... चले गये थे, अब गलती नहीं करेंगे. और, उस दिन तो अपने ही साथी ललन सिंह को लपेट लिये थे, ये बोलकर कि उनके कहने पर ही एनडीए छोड़कर महागठबंधन में चले गये थे. मोदी के सामने बैठके उनके कैबिनेट साथी ललन सिंह बस मुंह देखते रह गये थे. बोलते भी तो क्या.
तो क्या नीतीश कुमार अब बेफिक्र हो गये हैं. एनडीए छोड़ने की तोहमत ललन सिंह पर डाल देने के बाद अब नीतीश कुमार को कहने की जरूरत नहीं होगी कि अब वो कहीं नहीं जाएंगे. तब भी ये बात नहीं कहेंगे जब इस हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी बिहार दौरे पर होंगे. 29 मई को पटना एयरपोर्ट के टर्मिनल भवन और कई प्रोजेक्ट के उद्घाटन के मौके पर. और अगले दिन रोहतास के बिक्रमगंज में भी.
हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की मुलाकात की काफी चर्चा रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से पहले चिराग पासवान मिलने के लिए मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे, और बताया कि अब नीतीश कुमार से कोई शिकायत नहीं रह गई है. अगर कोई बात होगी तो आगे से वो सीधे बात कर लेंगे, किसी और को माध्यम बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
सवाल ये उठता है क क्या नीतीश कुमार को बीजेपी पर पक्का यकीन हो गया है? क्या अब वो समझने लगे हैं कि नीति आयोग जैसे बैठकों में नहीं भी जायें तो फर्क नहीं पड़ने वाला है.