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बिहार चुनाव के हिसाब से BJP के लिए माता सीता मंदिर अयोध्या आंदोलन जैसा ही

सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में बनने जा रहे माता सीता मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बिहार में बीजेपी की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है. अयोध्या आंदोलन की तर्ज पर आगे बढ़ाया जा रहा ये मुद्दा महज मिथिलांचल नहीं, पूरे बिहार में राजनीतिक असर बढ़ाने का जरिया बनाने की कोशिश है.

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सीता माता मंदिर निर्माण कराने का चुनावी पुण्‍य कमाने के लिए बीजेपी और जेडीयू नीतीश कुमार-सम्राट चौधरी की मौजूदगी में बराबर से यत्‍न कर रहे हैं. भूमिपूजन कार्यक्रम में अमित शाह की मौजूदगी इसे पूरे बिहार तक पहुंचाने की कोशिश होगी.(फोटो-पीटीआई)
सीता माता मंदिर निर्माण कराने का चुनावी पुण्‍य कमाने के लिए बीजेपी और जेडीयू नीतीश कुमार-सम्राट चौधरी की मौजूदगी में बराबर से यत्‍न कर रहे हैं. भूमिपूजन कार्यक्रम में अमित शाह की मौजूदगी इसे पूरे बिहार तक पहुंचाने की कोशिश होगी.(फोटो-पीटीआई)

महीना अगस्त का ही है, तारीख बस अलग है. 8 अगस्त को बिहार के सीतामढ़ी में माता सीता मंदिर के लिए भूमिपूजन होने जा रहा है. पांच साल पहले अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन 5 अगस्त, 2020 को हुआ था. अयोध्या में भूमिपूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था, बिहार में माता सीता मंदिर के लिए भूमिपूजन केंद्रीय मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करने जा रहे हैं. 

बिहार चुनाव के हिसाब से देखें तो माता सीता मंदिर के निर्माण में भी अयोध्या आंदोलन की ही छवि महूसस की जा सकती है. माना जाता है कि अयोध्या आंदोलन ने ही बीजेपी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने के बाद देश की सबसे बड़ी और मजबूत पार्टी बना दिया है. 

हालांकि, बीते साल के लोकसभा चुनाव में यूपी के नतीजों को देखें तो अब ये प्रयोग बहुत उत्साहवर्धक नहीं लग रहा है - लेकिन, बिहार चुनाव में विपक्षी महागठबंधन के हमलों को की धार कुंद करने में नये मंदिर आंदोलन की बड़ी भूमिका हो सकती है, जिसका बीजेपी को कुछ न कुछ फायदा तो मिल ही सकता है. 

माता सीता मंदिर के निर्माण के बाद बीजेपी को चुनावी फायदा मिलने के साथ ही, संघ के खिलाफ भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हमलावर रुख नरम पड़ सकता है. राहुल गांधी तो पहले भी 'जय श्रीराम' की जगह 'जय सियाराम' का नारा लगाने की चुनौती दे चुके हैं - आगे से ऐसा करने के पहले दो बार सोचना भी होगा. 

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केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तो अभी से बिहार में विपक्ष को घेरना शुरू कर दिया है. माता सीता मंदिर के निर्माण को ऐतिहासिक कदम बताते हुए गिरिराज सिंह ने कहा है, ये वैसे लोगों के मुंह पर बड़ा तमाचा है जो प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को नहीं स्वीकारते थे, खासकर कांग्रेस. 

11 महीने में बन जाएगा माता सीता मंदिर

सीतामढ़ी के पनौराधाम में 67 एकड़ में भव्‍य मंदिर परिसर का निर्माण महज 11 महीने में होना है. मंदिर बनकर तैयार होने तक बिहार में नई सरकार बन चुकी होगी. बीजेपी का दावा है कि एनडीए की ही सरकार बनेगी, और एनडीए के नेता ये भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे - दूसरी तरफ, विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक, कांग्रेस को छोड़कर, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने में लगा हुआ है. कांग्रेस ने अभी तक 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री चेहरे को मंजूरी नहीं दी है.

गिरिराज सिंह का कहना है कि साल भर पहले अमित शाह ने ही सीतामढ़ी में माता सीता मंदिर बनाये जाने की घोषणा की थी. थोड़ा पीछे जाकर देखें, तो मालूम होता है सितंबर, 2023 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में माता सीता के जन्मस्थान के विकास के लिए 72 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी - ध्यान रहे, तब आरजेडी और कांग्रेस भी बिहार सरकार का हिस्सा थे, और तेजस्वी यादव तब बिहार डिप्टी सीएम हुआ करते थे. 

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मंदिर परिसर में 151 फीट ऊंचा भव्य मंदिर तैयार किया जाना है, जहां मां जानकी कुंड का सौन्दर्यीकरण भी कराया जाना है. नये परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा पर्यटन के हिसाब से भी कई तरह की सुविधाओं के निर्माण की योजना है. मंदिर के चारों तरफ एक विशेष परिक्रमा पथ होगा. साथ ही, यज्ञ मंडप, संग्रहालय, ऑडिटोरियम, कैफेटेरिया, धर्मशाला, सीता वाटिका, लवकुश वाटिका जैसे दर्शनीय क्षेत्र भी होंगे.

बिहार चुनाव में नया मंदिर मुद्दा

 राहुल गांधी बीजेपी पर सिर्फ राम की पूजा करने और सीता को छोड़ देने का आरोप लगाते रहे हैं. खासतौर पर वो संघ पर हमलावर होते हैं, और दावा करते हैं कि बीजेपी में तो महिलाएं हैं भी संघ तो पूरी तरह नारी शक्ति की उपेक्षा करता है. लेकिन, देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के नेपाल दौरे में ही जनकपुर के सीता मंदिर जाना चाहते थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वीरांगना रानियों की जयंती के बहाने कांग्रेस नेता के आरोपों का जवाब देने की कोशिश कर रहा है - और आने वाले बिहार चुनाव में इसकी गूंज सुनाई देने वाली है. 

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने किसी पंडित जी से बातचीत का हवाला देते हुए कहा था, उनके संगठन में सीता नहीं आ सकतीं... उन्होंने उन्हें बाहर कर दिया... ये बहुत गहरी बात मध्य प्रदेश के एक पंडित जी ने सड़क पर मुझसे कही.'

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राहुल गांधी ने तब कहा था, पंडित जी ने मुझसे कहा कि आप अपनी स्पीच में पूछिये कि बीजेपी के लोग जय श्रीराम करते हैं मगर कभी जय सियाराम या हे राम क्यों नहीं करते? मुझे बहुत अच्छा लगा... बहुत गहरी बात बोली. राहुल गांधी ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जिस भावना से भगवान श्रीराम ने अपनी जिंदगी जी, आरएसएस और बीजेपी के लोग उस भावना से जिंदगी नहीं जीते. 

तभी राहुल गांधी ने संघ और बीजेपी को सलाह दी थी, हमारे जो आरएसएस के मित्र हैं... मैं उनसे कहना चाहता हूं... जय श्रीराम, जय सियाराम और हे राम... तीनों का प्रयोग कीजिये - और सीता जी का अपमान मत कीजिये. और कहा था, हम सीता को याद करते हैं... समाज में जो सीता की जगह होनी चाहिये उसका आदर करते हैं... जय सियाराम, जय सीताराम और जय श्रीराम... हम राम भगवान की जय करते हैं.

चार साल बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2018 में जानकी मंदिर पहुंचे तो विजिटर बुक में लिखा था, ‘जनकपुर धाम जाने की मेरी लंबे समय की इच्छा पूरी हो गई है... यह मेरे लिए इस तीर्थस्थल पर आने का एक यादगार अनुभव है जो नेपाल और भारत के लोगों के दिल में एक विशेष स्थान रखता है.’

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नेपाल के जनकपुर में ये मंदिर 1911 में बन कर तैयार हुआ. शहर का नाम राजा जनक के नाम पर ही रखा गया है, और उनकी बेटी सीता के चलते जानकी मंदिर. जानकी मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु ने करवाया था. 

अमित शाह तो गुजरात में 'शाश्वत मिथिला महोत्सव–2025' के दौरान मिथिलांचल का महत्व समझा चुके हैं. और करीब करीब उन दिनों ही, RSS के सीनियर नेता दत्तात्रेय होसबले ने रानी अबक्का की 500वीं जयंती पर उनको कुशल प्रशासक और महान रणनीतिकार बताया था. लोकसभा चुनावों से पहले रानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती मनाई गई थी.

माता सीता मंदिर के बहाने बीजेपी का पहला फोकस तो मिथिलांचल ही है, लेकिन अयोध्या मंदिर के पूरक के तौर पर पेश कर प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की पूरी कोशिश लगती है. लालू यादव का गढ़ कभी रहा होगा, अब तो मिथिलांचल में एनडीए की खासी घुसपैठ हो चुकी है. 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजे मिसाल हैं. सीतामढ़ी मिथिलांचल में आता है, और उसके अलावा दरभंगा, मधुबनी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, वैशाली जैसे जिले भी हैं. और, इस तरह बिहार की 243 में से 60 सीटें मिथिलांचल से ही आती हैं, जिनमें से 40 सीटों पर फिलहाल एनडीए यानी बीजेपी और जेडीयू का कब्जा है. अकेले सीतामढ़ी की बात करें, तो पांच में से तीन विधानसभा सीटें बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के पास हैं. हां, दो विधानसभा सीटों पर लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल का भी कब्जा है. 

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अब तो अमित शाह की कोशिश 2020 का प्रदर्शन दोहराने तक ही नहीं, उससे कहीं ज्यादा सीटें जीतने पर जोर है, और मंदिर निर्माण के प्रभाव का दायरा भी मिथिलांचल से बिहार के कोने कोने तक पहुंचाने का है. ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के  माध्यम से राष्ट्रवाद के एजेंडे की दस्तक तो पहले ही मिल चुकी है, अब माता सीत मंदिर निर्माण के जरिए हिंदुत्व की राह आगे बढ़ने की कोशिश होगी. दरभंगा एयरपोर्ट से लेकर मखाना बोर्ड तक तो पहले ही मिल चुका है, अब सीतामढ़ी से दिल्ली के लिए अमित शाह अमृत भारत ट्रेन को भी हरी झंडी दिखाने जा रहे हैं.

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