बिहार के तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र उपचुनाव का रिजल्ट कई संदेश लेकर आया है. नेताओं के लिए, राजनीतिक दलों के लिए, वोटर के लिए और ईवीएम का विरोध करने वालों के लिए भी.
विधान परिषद और राज्यसभा के लिए होने वाले चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता. बल्कि बैलट पेपर से चुनाव होता है. जिस हिसाब से तिरहुत उपचुनाव में वोट रद्द हुए हैं, ईवीएम की अहमियत आसानी से समझी जा सकती है. वैसे भी ईवीएम का नहीं, अगर उसके जरिये कोई गड़बड़ी होती हो तो उसका विरोध होना चाहिये. अब तक तो यही देखने को मिला है कि ईवीएम का विरोध आधे-अधूरे मन से ही किया जाता है. महाराष्ट्र चुनाव को लेकर शरद पवार और अरविंद केजरीवाल की मीटिंग के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने की भी तैयारी चल रही है.
बताते हैं कि तिरहुत उपचुनाव में कुल 6843 वोट रद्द हुए हैं, क्योंकि मतदाताओं ने बैलट पेपर पर सही तरीके से निशान नहीं लगाया. ये होने से किसका कितना नुकसान हुआ, ये तो नहीं मालूम हो सकता है, लेकिन ये तो तय है कि बड़ा नुकसान हुआ है. कई वोटर तो निशान लगाने की जगह वैसे संदेश लिख दिये हैं, जैसे बोर्ड इम्तिहान की आंसर-शीट में पढ़ने को मिलती रही है.
तिरहुत उपचुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे निलंबित शिक्षक वंशीधर बृजवासी की जीत बिहार के सभी राजनीतिक दलों के लिए सबक है - और खासतौर पर नीतीश कुमार के लिए भी.
बृजवासी की जीत में नीतीश के लिए मैसेज
वंशीधर बृजवासी तभी चर्चा में आ गये थे जब बिहार के शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव केके पाठक के साथ वो सीधे भिड़ गये थे. टकराये भी वो शिक्षकों के हितों के लिए ही थे, फिर उनको ही सस्पेंड कर दिया गया लेकिन उनके तेवर में कभी कोई कमी नहीं आई. अपने लड़ाकू स्वभाव के लिए जाने जाने वाले वंशीधर बृजवासी ने लड़ाई जारी रखी और शिक्षक नेता बन गये.
वो सड़कों पर लगातार शिक्षकों की आवाज उठाते रहे, और उसी का नतीजा है कि एमएलसी उपचुनाव में उनको भारी समर्थन मिला है, जो उनकी जीत की सबसे बड़ी वजह बनी है.
बिहार के शिक्षक केके पाठक के खिलाफ भी आवाज उठाते रहे, लेकिन नीतीश कुमार उनकी पीठ पर हाथ रखे हुए थे. तब भी बवाल मचा था जब शिक्षकों को शराबबंदी के काम में लगा दिये जाने का सर्कुलर जारी हुआ था, हालांकि, तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने विधानसभा में किसी तरह से शासनादेश जारी किये जाने की बात से इनकार कर दिया था.
नीतीश कुमार की सरकार के बारे में शिक्षक और बिहार के स्नातक क्या सोचते हैं, तिरहुत का नतीजा तो यही बता रहा है. अब तो वही निलंबित शिक्षक विधान परिषद में भी शिक्षकों की आवाज उठाएगा - वंशीधर बृजवासी की जीत का ये मैसेज तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए है ही.
तिरहुत के रिजल्ट में बिहार के राजनीतिक दलों के लिए संदेश
बिहार की चार विधानसभा सीटों के लिए हाल ही में हुए उपचुनाव में प्रशांत किशोर के जनसुराज ने जो प्रदर्शन किया था, तिरहुत एमएलसी उपचुनाव में भी दोहराया है.
तिरहुत के मैदान में एनडीए की ओर से जेडीयू के उम्मीदवार अभिषेक झा थे, जबकि महागठबंधन की तरफ से आरजेडी के गोपी किशन और जनसुराज के डॉक्टर विनायक गौतम भी चुनाव मैदान में थे. कई शिक्षक नेता, कारोबारी, इंजीनियर और राजनीतिक दलों के बागी नेता भी चुनाव लड़ रहे थे.
नतीजों पर नजर डालें तो तिरहुत एमएलसी उपचुनाव में वंशीधर बृजवासी को 23,003 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर रहे जनसुराज के विनायक गौतम को 10,195 वोट मिले हैं. आरजेडी उम्मीदवार तीसरे और जेडीयू प्रत्याशी चौथे नंबर पर रहा. तिरहुत से एमएलसी रहे जेडीयू के देवेश चंद्र ठाकुर के लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद ये सीट खाली हुई थी. वो कई बार यहां से एमएलसी रह चुके हैं.
नीतीश कुमार के विपरीत प्रशांत किशोर के लिए तिरहुत का रिजल्ट हौसला बढ़ाने वाला है. जनसुराज का गठन हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, लेकिन लगातार दूसरी बार प्रशांत किशोर के उम्मीदवार ने मजबूत मौजूदगी दर्ज कराकर बिहार के लोगों को ध्यान खींचा है.
लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में पप्पू यादव को हराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, लेकिन फेल रहे - और तिरहुत चुनाव में भी आरजेडी उम्मीदवार का तीसरे पायदान पर पहुंच जाना भी कोई अच्छा संकेत नहीं है.
शिक्षकों का जो गुस्सा वंशीधर बृजवासी के रूप में नीतीश कुमार के खिलाफ निकला है, उसे तो तेजस्वी यादव को भुनाना चाहिये था - किसी एक चुनाव से कोई भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती है, लेकिन इशारा तो समझा ही जा सकता है.