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बिहार की 12 सीटों पर महागठबंधन में जबर्दस्त फाइट, तेजस्वी-राहुल में अब 'फ्रेंडली' क्या बचा?

बिहार महागठबंधन में सीटों को लेकर लड़ाई मैदान में उतर आई है. कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियों के बीच फ्रेंडली फाइट के नाम पर असल में भीतरघात खुलकर सामने आ गया है. सिर्फ आरजेडी ही नहीं, JMM भी कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा रही है.

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क्या महागठबंधन की लड़ाई राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के शीत युद्ध का रिजल्ट है? (Photo: PTI)
क्या महागठबंधन की लड़ाई राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के शीत युद्ध का रिजल्ट है? (Photo: PTI)

महागठबंधन भी बिहार में नाम का ही रह गया है. बिल्कुल इंडिया ब्लॉक की तरह. बिहार के महागठबंधन में वैसा ही युद्ध का माहौल है, जैसा दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक में देखा गया था. जाहिर है, दिल्ली की ही तरह ये सब खतरनाक नतीजे की तरफ भी इशारा कर रहा है. 

कांग्रेस के एक उम्मीदवार के नामांकन वापस लेने के बावजूद अब भी 10 सीटों पर महागठबंधन में फ्रेंडली फाइट होने जा रही है. ये उम्मीद जरूर जताई जा रही है कि ऐसे ही और भी नामांकन वापस हुए तो ये संख्या कम हो सकती है. संख्या भले कम हो जाए, लेकिन जो सिरफुटौव्वल नजर आ रहा है, उसका रिजल्ट तो पक्ष में आने से रहा. जो भी होगा नुकसानदेह ही रहेगा.

ऐसा क्यों लगता है जैसे तेजस्वी यादव के साथ साथ राहुल गांधी ने महागठबंधन के सभी सहयोगी दलों के लिए ही गड्ढे खोद डाले हैं. हेमंत सोरेन की पार्टी JMM के निशाने पर तेजस्वी यादव तो हैं ही, उसके नेता राहुल गांधी को भी उतना ही जिम्मेदार बता रहे हैं. 

कांग्रेस ही सबके निशाने पर क्यों?

तेजस्वी यादव ने 100 सीटें महागठबंधन के सहयोगी दलों के लिए पूरी तरह छोड़ रखी है. आरजेडी ने 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. आरजेडी उम्मीदवारों के बाद बची हुई सीटों पर कांग्रेस, सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम और VIP को आपस में बांट लेना था, लेकिन लड़ाई थमी नहीं. कांग्रेस ने उन 6 सीटों पर भी उम्मीदवार उतार दिए थे, जहां आरजेडी के उम्मीदवार मैदान में थे. हालांकि, बाद में एक उम्मीदवार के नामांकन वापस लेने के बाद स्थिति थोड़ी बदली है. आरजेडी की ही तरह कांग्रेस और सीपीआई-एमएल के उम्मीदवार 4 विधानसभा सीटों पर आमने सामने हैं.  

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अब कांग्रेस 60 सीटों पर, लेफ्ट 30 सीटों पर और वीआईपी (Vikassheel Insaan Party) नेता मुकेश सहनी 15 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि तेजस्वी यादव की तरफ से कोटा सौ सीटों का ही दिया गया था. चाहने को तो AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी भी महागठबंधन में दाखिला लेना चाहते थे, लेकिन बात तो हेमंत सोरन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा से भी नहीं बन पाई - वो भी तब जबकि झारखंड में JMM के साथ आरजेडी और कांग्रेस भी हैं. 

जब बात नहीं बनी, तो JMM ने 6 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. 18 अक्टूबर की प्रेस कांफ्रेंस में जेएमएम ने अपनी सीटें भी बता दी थी. जमुई, चकाई, धमदाहा, मनिहारी, पीरपैंती और कटोरिया - लेकिन बाद में अचानक झारखंड सरकार के नगर विकास मंत्री सुदिव्य कुमार ने घोषणा कर दी, 'झारखंड मुक्ति मोर्चा बिहार चुनाव का हिस्सा नहीं होगी.'

सुद‍िव्‍य कुमार का कहना है, 'हम आहत हैं कि महागठबंधन ने चालबाजियों और धूर्तताओं के कारण जेएमएम जैसे संगठन को चुनाव से दूर कर दिया... इसके लिए हम अपने सह‍योगी कांग्रेस को भी जिम्मेदार मानते हैं.' 

तेजस्वी यादव को निशाने पर लेते हुए सुदिव्य कुमार कहते हैं, 'हेमंत सोरेन जी और जेएमएम ने हमेशा गठबंधन धर्म का पालन किया है... 2019 में जब आरजेडी का एक विधायक था, तब भी हमने उन्हें कैबिनेट में सीट दी थी... अब भी हमने उन्हें समायोजित किया... लेकिन हमें धोखा मिला.'

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और, इसी बीच एक और मामला देखा गया है. झारखंड पुलिस एक एक्शन को संयोग और प्रयोग के तराजू पर तौला जाने लगा है. असल में, झारखंड पुलिस ने आरजेडी उम्मीदवार सत्येंद्र साह को नामांकन के बाद ही गिरफ्तार कर लिया. सत्येंद्र साह को झारखंड के 2004 के डकैती के मामले में गिरफ्तार किया गया है. 

आरजेडी नेता की गिरफ्तारी पर पुलिस का दावा भी बिल्कुल एनकाउंटर जैसा है. पुलिस का कहना है कि गिरफ्तारी कोर्ट के आदेश पर हुई है - सवाल है कि गिरफ्तारी महागठबंधन में सीटें न मिलने के बाद ही क्यों हुई? क्या पुलिस ने कोर्ट का आदेश पहले रोक रखा था?

ये फ्रेंडली फाइट क्या होती है?

महागठबंधन में नाम तो फ्रेंडली-फाइट दिया जा रहा है, लेकिन झगड़ा तो दुश्मनों जैसा ही है. भला चुनाव में आपस में ही दोस्ताना मुकाबले का क्या मतलब है? ये तो लगता है दुश्मन के साथ दोस्ती निभाई जा रही है. 

बहरहाल, 'दोस्ताना मुकाबले' का अपडेट ये है कि 12 सीटों पर अब भी महागठबंधन के उम्मीदवार ही आमने सामने हैं. 6 सीटों पर लड़ाई कांग्रेस बनाम आरजेडी है, जबकि 4 सीटों पर मुकाबला कांग्रेस बनाम सीपीआई होने जा रहा है. इतना ही नहीं, दो सीटों पर मुकेश सहनी की वीआईपी और आरजेडी आमने-सामने आ गए हैं. आइये, इन सभी सीटों पर बारी-बारी से एक नजर मार ली जाए.

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सिकंदरा, कहलगांव, सुल्तानगंज, वैशाली और वारिसलीगंज विधानसभा सीटों पर आरजेडी को कांग्रेस उम्मीदवार से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. 

1. सिकंदरा में मुकाबला - उदय नारायण चौधरी (आरजेडी) बनाम विनोद चौधरी (कांग्रेस)

2. कहलगांव में मुकाबला - रजनीश भारती (आरजेडी) बनाम प्रवीण कुमार कुशवाहा (कांग्रेस)

3. सुल्तानगंज में मुकाबला - चंदन सिन्हा (आरजेडी) बनाम ललन यादव (कांग्रेस) 

4. वैशाली में मुकाबला - अजय कुशवाहा (आरजेडी) बनाम संजीव सिंह (कांग्रेस)

5. वारिसलीगंज में मुकाबला - अनीता देवी महतो (आरजेडी) सतीश कुमार (कांग्रेस)

6. नरकटियागंज में मुकाबला- दीपक यादव (आरजेडी) बनाम शाश्‍वत केदार पांडेय (कांग्रेस)

पहले लालगंज सीट पर भी कांग्रेस और आरजेडी के बीच मुकाबला था. दरअसल, कांग्रेस उम्मीदवार आदित्य कुमार ने अपना नामांकन वापस ले लिया है. 

बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान को तो ऐसी और भी उम्मीदें हैं, चीजें सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं, और 23 अक्टूबर तक... जो नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख है, स्थिति और साफ हो जाएगी.

बिहार की चार विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं, जहां मुकाबला कांग्रेस और सीपीआई के बीच है. 

1. बछवाड़ा में मुकाबला - शिव प्रकाश गरीबदास (कांग्रेस) बनाम अवधेश राय (सीपीआई)

2. करगहर में संतोष मिश्रा (कांग्रेस) बनाम महेंद्र गुप्ता (सीपीआई)

3. बिहार शरीफ में उमेद खान (कांग्रेस) बनाम शिव कुमार यादव (सीपीआई)

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4. राजापाकर में प्रतिमा दास (कांग्रेस) बनाम मोहित पासवान (सीपीआई)

इसके अलावा दो सीटों पर और महागठबंधन की कलह दिखाई दे रही है. मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने मधुबनी जिले की बाबूबरही विधानसभा सीट पर बिंदू गुलाब यादव को प्रत्याशी बनाया है, तो यहीं से आरजेडी ने अरुण कुशवाहा को टिकट दे दिया है. इसी तरह चैनपुर सीट में वीआईपी बालगोविंद बिंद के सामने आरजेडी के ब्रिज किशोर बिंद आ गए हैं.

संयुक्त कैंपेन का तो स्कोप ही नहीं है

अब जबकि इतना सब चल रहा है. जैसे गला-काट प्रतियोगिता चल रही हो. कैंपेन कैसे होगा. अब तो संयुक्त कैंपेन होने से रहा. हर नेता अपने अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांगेगा. वैसे भी सहयोगी दल के उम्मीदवार के लिए इलाके में जाकर वोट मांगने का मतलब तो बनता नहीं है.

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो लगता है जैसे बिहार चुनाव से पहले से ही दूरी बना ली हो. वोटर अधिकार यात्रा की याद दिलाते हुए जेडीयू नेता तो राहुल गांधी को पॉलिटिकल टूरिस्ट बता रहे हैं. जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर की तो पहले से ही ऐसी राय रही है - ऐसे में भला तेजस्वी यादव कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भला वोट क्यों मांगेंगे?

देखना होगा, फ्रेंडली फाइट वाली सीटों पर उम्मीदवारों के लिए बड़े नेता वोट मांगने जाते हैं या उनकी किस्मत के हवाले उनको छोड़ दिया जाता है?

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