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अखिलेश यादव क्या 'चरखा दांव' में फंसा रहे हैं राहुल गांधी को? संसद से बात निकली है तो दूर तलक जाएगी

अखिलेश यादव कांग्रेस के खिलाफ दिल्ली में आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे हैं. यूपी में मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस का सहयोग भी ले रहे हैं. लोकसभा में कांग्रेस पर हमले भी कर रहे हैं और खुद को कांग्रेस के साथ होने का दम भी भर रहे हैं. आखिर सपा प्रमुख कांग्रेस को लेकर ये कैसी पहेली बुझा रहे हैं?

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लोकसभा में बोलते अखिलेश यादव
लोकसभा में बोलते अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए आज मंगलवार को भाजपा की डबल इंजन की सरकार को जमकर घेरा. पर अखिलेश यादव यूपी के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी को अकसर घेरते रहे हैं इसलिए समाचार जगत और राजनीतिक गलियारों के लिए ये कोई खास बात नहीं थी. अखिलेश महाकुंभ में हुई मौतों, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, नदियों के जोड़ने के लिए जमीन अधिग्रहण, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और लिंक एक्सप्रेसवे की खराब क्वालिटी और  निर्माण में हुई देरी पर अपनी बात को बहुत शानदार तरीके से रख रहे थे. पर इस बीच बात-बात में उन्होंने कम से कम 3 बार सीधे कांग्रेस का जिक्र किया. इसमें 2 बार कठघरे में खड़ा किया और एक बार मनमोहन सिंह की तारीफ भी की.

उसमें से एक मुद्दा जाति जनगणना का था. जाहिर है कि यह मुद्दा आज राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए सबसे अहम बन चुका है. अखिलेश यादव ने जिस तरह जाति जनगणना अभी तक नहीं होने के लिए कांग्रेस पर हमला बोला वो उनके भाषण का सबसे खास पहलू था. सवाल उठता है कि अखिलेश बचते बचाते ही सही कांग्रेस को निशाने पर क्यों लिया? या अखिलेश यादव ने राहुल गांधी पर अपने पिता मुलायम सिंह यादव का पसंदीदा चरखा दांव चल रहे राहुल गांधी पर. कुश्‍ती का शौक रखने वाले मुलायम सिंह को यह दांव इसलिए पसंद था क्‍योंकि इसमें पहलवान अपने विरोधी की गर्दन और पैर को एकसाथ जकड़कर कस देता है. जिससे विरोधी चरखे के पहिये जैसा गोल हो जाता है और कहीं का नहीं रह जाता. आखिर उसे अपनी हार मानना पड़ती है. अखिलेश भी राहुल गांधी और कांग्रेस को सब तरफ से जकड़ते चले जा रहे हैं. एक तरफ खुलकर आम आदमी पार्टी का दिल्ली में प्रचार करे हैं, तो दूसरी तरफ लोकसभा में घेर रहे हैं. फिर धीरे से यह भी कह रहे हैं कि हम तो कांग्रेस के साथ ही हैं. 

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जाति जनगणना न होने और मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं बनने के लिए कांग्रेस जिम्‍मेदार!

सोमवार को लोकसभा में चर्चा की शुरूआत करते हुए विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जाति जनगणना का मुद्दा उठाया था. राहुल गांधी वैसे भी हर मंच और हर सभा में जाति जनगणना का वादा करते रहते हैं. अखिलेश यादव ने जाति जातिगत जनगणना का जिक्र करते हुए कहा कि देश में जातिगत जनगणना बहुत जरूरी है. पर आज तक जाति जनगणना न हो पाने के लिए उन्होंने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया. अखिलेश यादव ने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस पहले इसका विरोध करती थी, अब इसकी मांग कर रही है. अगर कांग्रेस ने इस जनगणना का पहले समर्थन किया होता तो वह अब इस मुद्दे को भाजपा के सामने उठाने की जरूरत नहीं होती. अखिलेश ने कहा कि मैं कांग्रेस से कहना चाहूंगा कि हम आपके साथी हैं और इस मुद्दे पर हम आपके साथ हैं और आगे चलकर भी साथ देंगे. अब जाति जनगणना को कोई नहीं रोक सकता है. दरअसल अखिलेश यादव जो बोल रहे थे उसे समझने के लिए इतिहास में जाना होगा. यूपीए सरकार के दौरान जाति जनगणना की डिमांड मंडल राजनीति करने वाले लालू यादव, मुलायम सिंह यादव आदि की ओर आया था. पर उस समय कांग्रेस जाति जनगणना नहीं कराना चाहती थी.

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अखिलेश यादव ने चीन के भारत से आगे निकलने की जिम्मेदारी भी कांग्रेस पर मढ़ दी. अखिलेश कहते हैं कि चीन केवल एक जगह हमारे ऊपर हमला नहीं कर रहा है, जमीन भी छीन रहा है और रोजगार भी छीन रहा है. जिस समय बाजार खोला गया (कांग्रेस सरकार वाले 90 के दशक में) उस समय हमारी अर्थव्यवस्था पर ध्‍यान नहीं दिया गया. अगर उसी समय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर जिम्मेदारी से ध्यान दिया गया होता तो शायद अध्यक्ष महोदय हम लोग चीन से आगे निकल गये होते. आज चीन आगे है, हम लोग पीछे हैं. फिर कांग्रेस को बुरा न लगे इसलिए अखिलेश बीजेपी पर हमला करते हैं. कहते हैं कि अगर कांग्रेस पार्टी का वो रास्ता था तो आपका रास्ता क्यों है? 

अखिलेश यादव और कांग्रेस की रार अब गंभीर हो चुकी है

अखिलेश की कांग्रेस से दूरी के भी मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल, हाल ही में लोकसभा में सिटिंग अरेंजमेंट के बाद अखिलेश के नाराज होने की खबरें आई थीं. जून 2024 में नतीजे आने के बाद जब मानसून सत्र चल रहा था, तब अखिलेश यादव, अवधेश प्रसाद और डिंपल यादव आठवें ब्लॉक में नेता विपक्ष राहुल गांधी के आसपास बैठते थे. बाद में सपा सांसदों को छठे ब्लॉक में जगह दी गई है. अखिलेश को इस बात पर आपत्ति थी कि कांग्रेस ने अवधेश प्रसाद को आठवें ब्लॉक से दूर और छठे ब्लॉक में पीछे क्यों बैठने पर सहमति दी. यही नहीं शीतकालीन सत्र में कांग्रेस अडानी के मसले पर सरकार को घेर रही थी, तब अखिलेश यादव की पार्टी ने नारेबाजी और प्रदर्शन से पूरी तरह दूरी बना ली थी और राहुल के साथ खड़े नहीं दिखे थे. सपा, आम आदमी पार्टी का कहना था कि वो चाहते हैं कि सदन चले. सदन की कार्यवाही में बाधा ना हो. 

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उत्‍तर प्रदेश में जब नौ सीटों पर उपचुनाव होने थे तब अखिलेश यादव ने कांग्रेस को एकतरफ रखकर सपा के 7 टिकटों की घोषणा कर दी. जबकि कांग्रेस 4-5 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी. आखिर में अखिलेश के आगे कांग्रेस को झुकना पड़ा. सपा सभी नौ सीटों पर लड़ी और अब मिल्‍कीपुर में भी सपा का ही उम्‍मीदवार चुनाव लड़ रहा है. कांग्रेस पूरी तरह साइडलाइन है. हालांकि, अखिलेश यादव ने कांग्रेस से हरियाणा चुनाव के दौरान सपा के लिए सीटें मांगी थी. जो नहीं मिली. कुल मिलाकर, दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा चुनाव के दौरान नजर आया दोस्‍ताना धीरे धीरे तल्‍खी में बदल गया.

इस बीच, यूपी के संभल मसले पर कांग्रेस ने स्टैंड लिया और राहुल गांधी-प्रियंका गांधी खुद वहां जाने पर अड़ गए तो सपा ने चुप्पी साध ली. उसके बाद जब राहुल गांधी 12 दिसंबर को हाथरस दौरे पर पहुंचे और उस दलित लड़की के परिजन से मुलाकात की, जिसके साथ 2020 में गैंगरेप किया गया था. पीड़िता ने दो हफ्ते बाद 28 सितंबर 2020 को दिल्ली में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था.जबकि सपा भी संभल और हाथरस मुद्दे को उठाती आ रही है. लेकिन यह संदेश गया कि सपा और कांग्रेस दोनों इस मुद्दे पर साथ नहीं हैं. 

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दोनों के रास्ते अलग होने की वजहें हैं

दरअसल समाजवादी पार्टी को लगता है कि कांग्रेस यूपी में उनकी जगह छीनने की कोशिश कर रही है. यह सभी जानते हैं कि दलित और मुसलमान कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स रहे हैं. अखिलेश यादव इन्हीं के बल पर उत्तर प्रदेश में चौधरी बनते हैं. कांग्रेस हर वो कोशिश कर रही है जिससे उसके परंपरागत वोटर्स उसके पास वापस आ जाए. हाथरस और संभल में कांग्रेस की अति सक्रियता का यही कारण था. जातिगत जनगणना को लेकर राहुल गांधी की अति सक्रियता भी अखिलेश को अच्छा नहीं लगता होगा. जो स्थितियां बन रही हैं उससे  साफ लगता है कि भविष्य में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रास्ते में यूपी में साथ नहीं रहने वाले हैं.

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