CM Mohan Yadav at AajTak Dharm Sansad: धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक संवाद के केंद्र उज्जैन में आजतक की विशेष धर्म संसद का आयोजन हुआ. 'महाकाल के मोहन' सत्र में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शामिल हुए. उन्होंने उज्जैन के इस महान धार्मिक स्थल का आध्यात्मिक महत्व और संदेश साझा करते हुए कहा कि जिसका अंत नहीं वही सनातन है.
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने समझाया कि जीवन में स्थिरता और सन्तान की सच्ची पहचान केवल उनके द्वारा दी गई आध्यात्मिक विरासत में है, जो समाप्त नहीं होती. वे कहते हैं कि जैसे महाकाल शिव अनंत हैं, उसी तरह सन्तान भी तभी सच्चे रूप में अमर होते हैं जब वे अपने अंदर उस अनंत ऊर्जा और आध्यात्मिकता को जगाते हैं.
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उज्जैन के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि 300 साल पहले तक उज्जैन से ही दुनिया का मानक समय तय होता था, इसलिए इसे 'काल की नगरी' कहा जाता है.
बार्सिलोना और उज्जैन पर क्या बोले मुख्यमंत्री मोहन यादव?
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि बार्सिलोना और उज्जैन में काफी समानता है. बार्सिलोना की विशेषता है कि उन्होंने भी उज्जैन की तरह अपने विरासत से विकास को जोड़. जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते हैं. वो अपने संस्कृति गर्व कर रहे हैं और विकास के हर संभावनाओं पर काम कर रहे हैं. वही भारत भी कर रहा है. जो भारत की विशेषता है. वही उज्जैन की भी विशेषता है. तो हम भाई-भाई ही हुए. अलग थोड़े हुए. हमारा और उनका ये साझा एजेंडा है. बार्सिलोना अपने अतीत के गौरवशाली चीजों को सामने लाना चाहता है. हमारे भारत में भी विरासत की विकास की बात होती है.
ख़बरों में स्कूल, सड़क या फिर प्रशासन की त्रुटियों को देखने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव को कैसा लगता है?
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि टीवी पर कूल, सड़क या फिर प्रशासन की त्रुटियों जो दिखाईं जाती हैं उन्हें स्वीकार करना चाहिए. हमें खुली आंखों से देखना चाहिए और अपनी गलतियों को मान लेना चाहिए और स्वीकार करके आगे बढ़ जाना चाहिए.
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उन्होंने 'बीती ताई बिसार दे आगे की सुध ले' का महत्व समझाया. उन्होंने सनातन संस्कृति और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया' के सिद्धांत का उल्लेख किया, जिसमें सबके सुख और कल्याण की कामना की जाती है. मुख्यमंत्री ने वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा पर भी बात की, जहां परिवार में अच्छी बातें बांटी जाती हैं और कमजोरियां समय के साथ दूर होती जाती हैं. उन्होंने कहा कि जिसका अंत नहीं वही सनातन है, जो अच्छाई की लंबी लाइन आगे बढ़ाना चाहता है.
देवी-देवताओं की जयंती क्यों मनाई जाती है?
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बताया कि देवी-देवताओं की जयंती क्यों मनाई जाती है. उन्होंने कहा कि जो जन्म लेता है वो सब शरीर छोड़ेगा लेकिन ये उसके पीछे हमारी सनातन संस्कृति की दृष्टि भी है.भगवान राम भी आए, भगवान कृष्ण भी आए तो राम जी की रामनवमीं मनाई जाती है. भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी मनाई जाती है.
ये जो उत्सव प्रधान संस्कृति हमारी है जयंतियां मना करके कि जो आया उसका आनंद वाला पक्ष देखे, अच्छी बातें देखे, उससे सीखने लायक सारी सीखें आने के बाद जानने का तो परमात्मा ने जिसका जन्म हुआ वो सब जायेगा. यही तो महाकाल की यात्रा यही काल की यात्रा है. तो जो अच्छा हुआ उसको सीखें, बांटे और सबको दें. इसीलिए हम कहते हैं जियो और जीने दो. हमारी संस्कृति तो सिखाती है 'सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्' सबके सुख के कल्याण की कामना करना.
एक सूर्य एक पृथ्वी है तो हम उस विशेषता से जुड़कर बात करते हैं तो जब हम एक अर्थ में कुटुंब की बात करते हैं, वसुदेव कुटुंब की बात करते हैं तो कुटुंब में तो हम उनको अच्छी बात ही बांटेंगे ना. हम कोई अपनी अच्छाई जो हो सकती उसमें अच्छाई धारण करने में कुछ कमजोरी होगी. वो कमजोरी समय के साथ निकलती जाती है. इसीलिए जिसका अंत नहीं वही तो सनातन है. ये सनातन संस्कृति है जो अच्छा ही की लंबी लाइन आगे बढ़ना चाहता है.
भारतीय सनातन संस्कृति को लोग देखना चाहते हैं
भारत आज आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो रहा है. लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया अब भारत की अच्छाइयों से परिचित होना चाहती है. लोग भारतीय संस्कृति, जीवनशैली और मूल्यों को समझने में रुचि ले रहे हैं. यह एक सकारात्मक संकेत है कि वैश्विक समुदाय भारत से सिर्फ़ व्यापार नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक आत्मा से भी जुड़ना चाहता है.
भारतीय संस्कृति का बढ़ता आकर्षण
भारतीय सनातन संस्कृति की ओर लोगों का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है. लोग जानना चाहते हैं कि भारत का पारंपरिक जीवन कैसा है, भारतीय समाज के विविध पक्ष क्या हैं और भारत की आत्मा किस भावना में बसती है. यही कारण है कि आज भारत का वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान बढ़ रहा है.
नीतियों में संस्कृति को प्राथमिकता
हमारी राज्य सरकार और भारत सरकार, दोनों ने माननीय मोदी जी के नेतृत्व में जब अपनी नीतियों पर ज़ोर दिया, तो केवल आर्थिक प्रगति ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक चेतना को भी प्राथमिकता दी. जब हम विदेशी दौरे पर जाते हैं और अपने व्यापार की बात करते हैं, तो साथ ही यह भी प्रयास करते हैं कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और जीवनशैली को भी दुनिया के सामने रखा जाए.
भारत-स्पेन सांस्कृतिक वर्ष की घोषणा
भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि वर्ष 2026 को भारत-स्पेन सांस्कृतिक वर्ष के रूप में मनाया जाएगा. यह न केवल एक सांस्कृतिक साझेदारी को मजबूत करेगा, बल्कि हमारे गौरवशाली अतीत को भी दुनिया के सामने लाएगा. लोग भारत की सांस्कृतिक धरोहर को करीब से जानना चाहते हैं—हमारी कलाएं, संगीत, नृत्य, परंपराएं—ये सब वैश्विक आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं.
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खेलों में भारत की बढ़ती पहचान
खेलों के क्षेत्र में भी भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक पहचान बनाई है. स्पेन जैसे देशों में प्रसिद्ध फुटबॉल क्लब—जैसे ला लीगा—के साथ हमारे बच्चों का जुड़ाव हो रहा है. ये युवा खिलाड़ी फुटबॉल में भविष्य की संभावनाएं तलाश रहे हैं. स्पेन में खेलों की बेहतरीन सुविधाएं और क्लब मौजूद हैं और हमारा प्रयास है कि भारत के युवाओं को वहां अवसर मिले.
व्यापार और खाद्य उद्योग में संभावनाएं
व्यापार और खेल के साथ-साथ, फूड इंडस्ट्री और अन्य क्षेत्रों में भी संभावनाएं हैं, जिन पर हमने ध्यान केंद्रित किया है. हमारा उद्देश्य है कि हर क्षेत्र—चाहे वह संस्कृति हो, खेल हो, या व्यवसाय—भारत की पहचान को वैश्विक मंच पर मजबूत करे.